Tuesday, May 6, 2025

15>||शाक्त की शक्ति का रहस्य॥

15>||शाक्त की शक्ति का रहस्य॥


ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे॥

॥ या देवी सर्वभूतेषू शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||


शक्ति से सृजन होता है और शक्ति से ही विध्वंस। वेद कहते हैं शक्ति से ही यह ब्रह्मांड चलायमान है।...शरीर या मन में यदि शक्ति नहीं है तो शरीर और मन का क्या उपयोग। शक्ति के बल पर ही हम संसार में विद्यमान हैं। शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है।


माँ पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर माँ प्रकृति है। जहाँ भी सृजन की शक्ति है वहाँ प्रकृति ही मानी गई है इसीलिए माँ को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है।

अनादिकाल की परम्परा ने माँ के रूप और उनके जीवन रहस्य को बहुत ही विरोधाभासिक बना दिया है। वेदों में ब्रह्मांड की शक्ति को चिद् या प्रकृति कहा गया है। वेदों में दुर्गा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। गीता में इसे परा कहा गया है। इसी तरह प्रत्येक ग्रंथों में इस शक्ति को अलग-अलग नाम दिया गया है, लेकिन इसका शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती से कोई संबंध नहीं। फिर भी पुराणकारों ने सभी का संबंध दुर्गा से जोड़ दिया।

इस समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं सिद्धियाँ और शक्तियाँ। स्वयं हमारे भीतर भी कई तरह की शक्तियाँ हैं। ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, मन:शक्ति और क्रियाशक्ति आदि। अनंत हैं शक्तियाँ। वेद में इसे चित्त शक्ति कहा गया है जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है। यह शक्ति सभी के भीतर होती है।

माँ पार्वती : माँ पार्वती का मूल नाम सती है। ये सती शब्द बिगड़कर शक्ति हो गया। शक्ति का अब अर्थ ताकत होता है। पुराणों अनुसार माँ पार्वती के पिता का नाम दक्ष प्रजा‍पति और माता का नाम मेनका है। पति का नाम शिव और पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश हैं।


इन्हें हिमालय की पुत्री अर्थात उमा हैमवती भी कहा जाता है। राजा दक्ष प्रजापति को हिमालय इसीलिए कहा जाता है कि उनका राज्य हिमालय क्षेत्र में ही था। दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करके जनता को कुतंत्र से मुक्त कराया था। उनकी यह पवित्र गाथा मर्केण्डेय पुराण में मिलती है।

भैरव, गणेश और हनुमान : अकसर जिक्र होता है कि माँ दुर्गा के साथ भगवान भैरव, गणेश और हनुमानजी हमेशा रहते हैं। प्राचीन दुर्गा मंदिरों में आपको भैरव और हनुमानजी की मूर्तियाँ अवश्य मिलेंगी। दरअसल भगवान भैरव दुर्गा की सेना के सेनापति माने जाते हैं और उनके साथ हनुमानजी का होना इस बात का प्रमाण है कि राम और शिव का काल एक ही रहा होगा। फिर भी यह शोध का विषय है।

नवदुर्गा : मार्कण्डेय पुराण में परमगोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों की रक्षार्थ बताया गया है। जो देवी की नौ मूर्तियाँ-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है।

शाक्त धर्म का उद्देश्य :
सभी का उद्देश्य मोक्ष है फिर भी शक्ति का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है। शक्ति ही धर्म है। शक्ति ही सत्य है। शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की हम सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियाँ प्राप्त करते रहते हैं।

शाक्त सम्प्रदाय : हिंदुओं के दो प्राचीन सम्प्रदाय हैं- शैव और वैष्णव। शाक्त सम्प्रदाय को शैव संप्रदाय के अंतर्गत माना जाता है। शाक्तों का मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण है इसीलिए वे देवी दुर्गा को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं।

सिंधु घाटी की सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। शाक्त सम्प्रदाय प्राचीन सम्प्रदाय है। गुप्तकाल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रीय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ।

शाक्त सम्प्रदाय में दुर्गा के संबंध में 'श्री दुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें 108 देवीपीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी 51-52 शक्तिपीठों का खास महत्व है।
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Saturday, May 3, 2025

14>*शाबरमंत्र + সন্তান সম্বন্ধে কিছু প্রয়োগ ***( 1 to 14

 >*शाबरमंत्र + সন্তান সম্বন্ধে কিছু প্রয়োগ ***( 1 to 14 )


1----------संतान सम्बन्धी कुछ प्रयोग
2----------सर्वकार्य साधक शाबरमंत्र
3----------ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र
4-----------तंत्र निवारण प्रयोग
5-----------तंत्र में बलि की प्रमुख्यता क्यों?
6-----------भूत, प्रेत और मसान बाधा के लिए एक अनुभूत प्रयोग
7-----------काला जादू”
8-----------Aअघोर पंथ सनातन धर्म का एक संप्रदाय है।
9-----------अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है।
10----------अघोरपंथ =अघोरपीठ बाबा कीनाराम स्थल
11----------अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया के बारे में जान उनसे डरने लगेंगे आप!
12----------अघोर पंथियों के 10 तांत्रिक पीठ
13----------कैसे आती है अघोरियों में इतनी शक्ति, मुर्दे भी देते है उनके सवालो के जवाब?
14-----------शिव के उपासक होते हैं अघोरी साधु, जानिए 12 अन्य रहस्यमय तथ्य

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शाबरमंत्र
1>संतान सम्बन्धी कुछ प्रयोग

 आजकल संतान का खराब हो जाना आम समस्या हो गई उसी के लिय आज कुछ प्रयोग लिख रहा हूँ|

🌷जब ये निश्चय हो जाय की स्त्री गर्भ से है तो उसके बाजू पर लाल धागा बाँध दे जो चमकीला न हो और बच्चे के जन्म के बाद वो धागा बच्चे को बाँध दें और माता को नया धागा बाँध दें| ये धागा फिर अगले अठारह महीनों तक बंधा रहने दे|

🌷ये रक्षा बंधन कहलाता है | इस से मिस्ग्रेज होने या जन्म लेकर बच्चे की मृत्यु होने की सम्भावना काफी हद तक कम हो जाती है|

🌷ये सन्तान की आयु विरधी करता है|

केतु के अधिपति गणेश जी है इसिलिय सन्तान के विघ्न से रक्षा के लिय गणेश जी की पूजा करे|अपने परोसे गये भोजन में से तिन भाग निकालकर एक भाग गाय को एक कुत्तों को और एक भाग कवों को डाले | संतान सुख के लिय ये सबसे उत्तम उपाय है|

🌷जब प्रसव समय नजदीक हो तो एक बर्तन में दूध डालकर और कुछ चीनीकिसी पुडिया आदि में डालकर जच्चा का हाथ लगवाकर रख लें| प्रसव आसानी से हो जाएगा | जन्म के बाद वो बर्तन किसी मन्दिर में दूध और चीनी समेत रख आये|

🌷यदि वर्षफल में राहू मंदा हो और संतान से सम्बन्धित दिक्कत होने की सम्भावना हो तो एक सफेद रंग की बोतल में पानी और जो डालकर घर में रखे| बच्चा खराब नही होगा और प्रसव आसानी से होगा |

🌷यदि किसी के बच्चे न बचते हो तो जन्मदिन पर मिठाई न बांटे बलिक नमकीन बांटे|
🌷कुतिया एक समय में कई बच्चे पैदा करती है जिसमे से कुछ मर जाते है| ऐसे में किसी कुतिया का केवल एक ही पिला नर जीवित बच्चे और बिना सन्तान वाला इंसान उसे पाल लें तो उसके सन्तान होने के योग प्रबल हो जाते है|
🌷मित्रों ये साधरण से दिखने वाले कारगर उपाय है जिन्हें करकेआप लाभ प्राप्त कर सकते हैं .
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2>. सर्वकार्य साधक शाबरमंत्र


कई बार व्यक्ति की समृद्धि अचानक रुष्ट हो जाती है,सारे बने बनाये कार्य बिगड जाते है,जीवन की सारी खुशिया नाराज सी लगती हैं,जिस भी काम में हाथ डालो असफलता ही हाथ लगती है.घर का कोई सदस्य जब चाहे तब घर से भाग जाता है,या हमेशा गुमसुम सा पागलों सा व्यवहार करता हो,तब ये प्रयोग जीवन की विभिन्न समस्याओं का न सिर्फ समाधान करता है अपितु पूरी तरह उन्हें नष्ट ही कर देता और आने वाले पूरे जीवन में भी आपको सपरिवार तंत्र बाधा और स्थान दोष ,दिशा दोष से मुक्त कर अभय ही दे देता हैं.

जीवन मे कितनी विकट स्थिति हो ओर कितनी ही परेशानी हो

अगर आप इस मन्त्र का हर रोज केवल 10 मिंट जाप करते हो तो कोई भी संकट नहीं रहेगा.

घर मे क्लेश हो यो उपरी बढ़ा हो आप खुद को असुरक्षित मह्सुश करते हो। या ओर कोई परेशानी हो तो भी घर मे सुख समृधि के लिये इस मन्त्र का जाप करे .. .

शाबरमंत्रशक्ति का एक बहुत ही शक्तिशाली मन्त्र :

मन्त्र :
ओम नमो आदेश गुरु का।

वज्र वज्रि वज्र किवाड़ वज्र से बांधा दशो द्वार, जो घात घाले उलट वेद वाही को खात ,

पहली चोकी गणपति की, दूजी चोकी हनुमंत की ,तीजी चोकी भैरव की ,

चौथी चोकी रोम रोम रक्षा करने को नृसिंह जी आयें ,

शब्द साचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।।

. इस मन्त्र की महिमा अपरंपार है ..... चाहो तो आजमा कर देख लो ....... पूरे शाबर मन्त्र साहित्य मे शायद ही कोई इस मन्त्र से शक्ति शाली मन्त्र हो इस मन्त्र के 100 से अधिक प्रयोग हैं.
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3>.ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र


ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त

ऋषिः ऋषयः, मातृका छंदः, श्री बटुक भैरव

देवता, ममेप्सित कामना सिध्यर्थे विनियोगः

ॐ काल भैरु बटुक भैरु ! भूत भैरु ! महा भैरव

महा भी विनाशनम देवता सर्व सिद्दिर्भवेत .

शोक दुःख क्षय करं निरंजनम, निराकरम

नारायणं, भक्ति पूर्णं त्वं महेशं. सर्व

कामना सिद्दिर्भवेत. काल भैरव, भूषण वाहनं

काल हन्ता रूपम च, भैरव गुनी.

महात्मनः योगिनाम महा देव स्वरूपं. सर्व

-सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव

महा भय विनाशनम देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.

ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं योगं, त्वं तत्त्वं, त्वं

बीजम, महात्मानम, त्वं शक्तिः, शक्ति धारणं

त्वं महा देव स्वरूपं. सर्व सिद्धिर्भवेत. ॐ काल भैरु,

बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.

ॐ कालभैरव ! त्वं नागेश्वरम नाग हारम च त्वं वन्दे

परमेश्वरम, ब्रह्म ज्ञानं, ब्रह्म ध्यानं, ब्रह्म योगं,

ब्रह्म तत्त्वं, ब्रह्म बीजम महात्मनः, ॐ काल भैरु,

बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.

त्रिशूल चक्र, गदा पानी पिनाक धृक ! ॐ काल

भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.

ॐ काल भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपम,

विना दीपं, सर्व शत्रु विनाशनम सर्व

सिद्दिर्भवेत विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय

कारकम, महाभैवे नमः. सर्व दुष्ट विनाशनम सेवकम

सर्व सिद्धि कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,

महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व

सिद्दिर्भवेत.

ॐ काल भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी , त्वं महा-

ध्यानी, महा-योगी, महा-बलि, तपेश्वर !

देही में सर्व सिद्धि . त्वं भैरवं भीम नादम च

नादनम. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव

महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.

ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ! अमुकम मारय मारय,

उच्चचाटय उच्चचाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु.

सर्वार्थ्कस्य सिद्धि रूपम, त्वं महा कालम ! काल

भक्षणं, महा देव स्वरूपं त्वं. सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल

भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.

ॐ काल भैरव ! त्वं गोविन्दं गोकुलानंदम !

गोपालं गो वर्धनम धारणं त्वं! वन्दे परमेश्वरम.

नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम शिव रूपं च. साधकं

सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,

महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व

सिद्दिर्भवेत.

ॐ काल भैरव ! त्वं राम लक्ष्मणं, त्वं श्रीपतिम

सुन्दरम, त्वं गरुड़ वाहनं, त्वं शत्रु हन्ता च, त्वं यमस्य

रूपं, सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक

भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता!

सर्व सिद्दिर्भवेत.

ॐ काल भैरव ! त्वं ब्रह्म विष्णु महेश्वरम, त्वं जगत

कारणं, सृस्ती स्तिथि संहार कारकम रक्त बीज

महा सेन्यम, महा विद्या, महा भय विनाशनम .

ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय

विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.

ॐ काल भैरव ! त्वं आहार मध्य, मांसं च, सर्व दुष्ट

विनाशनम, साधकं सर्व सिद्धि प्रदा.

ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर अघोर, महा अघोर,

सर्व अघोर, भैरव काल ! ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत

भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व

सिद्दिर्भवेत.

ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं, ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं, ॐ आं

क्रीं क्रीं क्रीं, ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रूं रूं रूं, क्रूम क्रूम

क्रूम, मोहन ! सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ आं

ह्रीं ह्रीं ह्रीं अमुकम उच्चचाटय उच्चचाटय, मारय

मारय, प्रूम् प्रूम्, प्रें प्रें , खं खं, दुष्टें, हन हन अमुकम

फट स्वाहा, ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,

महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व

सिद्दिर्भवेत.

ॐ बटुक बटुक योगं च बटुक नाथ महेश्वरः. बटुके वट

वृक्षे वटुकअं प्रत्यक्ष सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु बटुक भैरु

भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व

सिद्दयेत.

ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव !

मेरो वैरी तेरो आहार रे ! काडी कलेजा चखन

करो कट कट. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव

महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.

ॐ नमो हँकारी वीर ज्वाला मुखी ! तू दुष्टें बंध

करो बिना अपराध जो मोही सतावे, तेकर

करेजा चिधि परे, मुख वाट लोहू आवे. को जाने?

चन्द्र सूर्य जाने की आदि पुरुष जाने. काम रूप

कामाक्षा देवी. त्रिवाचा सत्य फुरे,

ईश्वरो वाचा . ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !

महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व

सिद्दयेत.

ॐ कालभैरव त्वं डाकिनी शाकिनी भूत

पिसाचा सर्व दुष्ट निवारनम कुरु कुरु साधका-

नाम रक्ष रक्ष. देही में ह्रदये सर्व सिद्धिम. त्वं

भैरव भैरवीभयो, त्वं महा भय विनाशनम कुरु . ॐ

काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय

विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.

ॐ आं ह्रीं. पश्चिम दिशा में सोने का मठ, सोने

का किवार, सोने का ताला, सोने की कुंजी,

सोने का घंटा, सोने की संकुली.

पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.

दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.

तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,

चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,

पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,

जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल

बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,

जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,

तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,

श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.

त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु

बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता सर्व सिद्दयेत.

ॐ आं ह्रीं. उत्तर दिशा में रूपे का मठ, रूपे

का किवार, रूपे का ताला,रूपे की कुंजी, रूपे

का घंटा, रूपे की संकुली. पहली संकुली अष्ट

कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह

कुली जाती को बांधो.

तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,

चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,

पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,

जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल

बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,

जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,

तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,

श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.

त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु

बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता सर्व सिद्दयेत.

ॐ आं ह्रीं. पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे

का किवार, तामे का ताला,तामे की कुंजी,

तामे का घंटा, तामे की संकुली.

पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.

दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.

तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,

चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,

पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,

जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल

बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,

जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,

तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,

श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.

त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु

बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता सर्व सिद्दयेत.

ॐ आं ह्रीं. दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ,

तामे का किवार,

अस्थि का ताला,अस्थि की कुंजी,

अस्थि का घंटा, अस्थि की संकुली.

पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.

दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.

तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,

चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,

पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,

जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल

बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,

जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,

तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,

श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.

त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु

बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता सर्व सिद्दयेत.

ॐ काल भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं

मृत्युलोकं, चतुर भुजम, चतुर मुखं, चतुर बाहुम, शत्रु

हन्ता त्वं भैरव ! भक्ति पूर्ण कलेवरम. ॐ काल भैरु

बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .

ॐ काल भैरव ! तुम जहाँ जहाँ जाहू, जहाँ दुश्मन

बेठो होए, तो बैठे को मारो, चालत होए

तो चलते को मारो, सोवत होए तो सोते

को मरो, पूजा करत होए तो पूजा में मारो,

जहाँ होए तहां मरो वयाग्रह ले भैरव दुष्ट

को भक्शो. सर्प ले भैरव दुष्ट को दसो. खडग ले

भैरव दुष्ट को शिर गिरेवान से मारो. दुष्तन

करेजा फटे. त्रिशूल ले भैरव शत्रु चिधि परे. मुख

वाट लोहू आवे. को जाने? चन्द्र सूरज जाने

की आदि पुरुष जाने. कामरूप कामाक्षा देवी.

त्रिवाचा सत्य फुरे मंत्र ईश्वरी वाचा. ॐ काल

भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम

देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .

ॐ काल भैरव ! त्वं. वाचा चुके उमा सूखे, दुश्मन मरे

अपने घर में. दुहाई भैरव की. जो मूर वचन झूठा होए

तो ब्रह्म का कपाल टूटे, शिवजी के तीनो नेत्र

फूटें. मेरे भक्ति, गुरु की शक्ति फुरे मंत्र

ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !

महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व

सिद्धिर भवेत् .

ॐ काल भैरव ! त्वं.भूतस्य भूत नाथासचा,भूतात्म

ा भूत भावनः, त्वं भैरव सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ

काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय

विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .

ॐ काल भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं

योगी, त्वं जंगम स्थावरम त्वं सेवित सर्व काम

सिद्धिर भवेत्. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !

महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व

सिद्धिर भवेत् .

ॐ काल भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरम, ब्रह्म रूपम,

प्रसन्नो भव. गुनी महात्मानं महादेव स्वरूपं सर्व

सिद्दिर भवेत्.


प्रयोग :


१. सायंकाल दक्षिणाभिमुख होकर पीपल


की डाल वाम हस्त में लेकर, नित्य २१ बार पाठ


करने से शत्रु क्षय होता है.


२. रात्रि में पश्चिमाभिमुख होकर उपरोक्त


क्रिया सिर्फ पीपल की डाल दक्षिण हस्त में


लेकर पुष्टि कर्मों की सिद्धि प्राप्त होती है,


२१ बार जपें.


३. ब्रह्म महूर्त में पश्चिमाभिमुख तथा दक्षिण हस्त


में कुश की पवित्री लेकर ७ पाठ करने से समस्त


उपद्रवों की शांति होती है.


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4>तंत्र निवारण प्रयोग

यह प्रयोग बहुत ही तीक्ष्ण और प्रभावसालि है।। इसके करने से दूकान मकान या किसी भी व्यक्ति पे किया अभिचार ख़त्म हो जाता है।।रात शमशान गया तो किसी और काम से मगर इस मंत्र को सिद्ध कर डाला।। एक बुराई करने गया था वहा एक
अच्छा मंत्र मिल गया।।

किसी भी दिन लाल वस्त्र धारण करे उत्तर दिशा में मुँह करके रात्री 10 बजे के बाद ये प्रयोग करे।।रुद्राक्ष की माला और इसमें 108 रक्त गूंजा की जरुरत पड़ती है।।21 माला का प्राबधान है ।।पहले गुरु पूजन करे गणेश पूजन कर 21 माला मंत्र जाप करे।।जब जाप खत्म हो जाए तो अग्नि जलाकर 108 आहुति रक्त गूंजा की आहुति दे।। और अगले सारी सामग्री किसी बहते पानी में या कुए नदी तालाब में बहा दे ।।इस मंत्र को करने में बहुत बेचैनी हो सकती घबराहट हो सकती है लेकिन घबराये ना बस गुरु का नाम लेकर करे सबका कल्याण होगा
मंत्र---

ॐ क्रीं धू फट ।।
ॐ kreeng dhoom fat।।
मात्र यही मंत्र है

इस मन्त्र को शिद्ध करने के बाद प्रयोग किस प्रकार करना हे केवल अपने लिए करना हे या फिर सिद्ध करने के बाद दूसरे दुखी इंसान की भी मदद कर सकते हे ।

और यदि दूसरे के लिए कर सकते हे तो किस प्रकार करना हे कृपया बताए गुरूजी जिज्ञासा ख़त्म करे।
जय महाकाली
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5>तंत्र में बलि की प्रमुख्यता क्यों?

हिंदू धर्म में सिर्फ़ वाम मार्ग ही ऐसा मार्ग है जिसमें त्याग की बात कम कही गई

है और बलि पर अधिक से अधिक ज़ोर दिया गया है। यहाँ मैं बलि और त्याग में

जो एक महीन अन्तर है वह पहले व्यक्त करता हूँ।
त्याग का मतलब है किस को छोड़ देना परन्तु अगर मौका मिले तो फ़िर से त्याग
की गई वस्तु वापस अपनाई जा सकती है। सनातन धर्म के अधिकतर संप्रदाय में त्याग को महत्त्व दिया गया है। परन्तु सिर्फ़ वाम मार्ग में बलि को प्राथमिकता
दी गई है। बलि क्यों?? बलि का मतलब होता है किसी का अंत। इसलिए तंत्र में
बलि की महत्वता है। क्योंकि बलि की गई वस्तु वापस नही आ सकती है। त्याग
की गई वस्तु को वापस अपनाया जा सकता है पर बलि देने के बाद हम उस वस्तु को
पहले के सामान कभी भी अपना नही सकते।
आम साधक बलि का सही भावार्थ नही समझ पाते हैं। बलि को हमेशा किसी प्राणी के अंत से ही देखा जाता है। परन्तु सही रूप में बलि तो हमें अपने अन्दर छिपे
दोष और अवगुणों का देना चाहिए। वाम मार्ग में तथा तंत्र में एक सही साधक हमेशा
अपने अवगुणों की ही बलि देता है। हमेशा भटके हुए साधक, जिन्हे तंत्र का पूरा
ज्ञान नही है वह दुसरे जीवों की बलि दे कर समझते हैं की उन्होंने इश्वर को
प्रसन्न कर दिया। पर माँ काली का कहना है की उन्हे साधक के अवगुणों की बलि
चाहिए ना की मूक जीवों की। त्यागी व्यक्ति को हमेशा यह भय रहता है की कही वह अपनी त्याग की गई वस्तु,
आदत को वापस न अपना लें। इसलिए त्यागी संत या साधक पूरी तरह से निर्भय
नही हो पाते हैं। परन्तु तांत्रिक साधक जब बलि दे देता है तो वह भयहीन हो जाता
है। इसलिए वह बलि देने के बाद माँ के और समीप हो जाते है।
यदि एक उच्च कोटि का साधक बनना है तो बलि देने की आदत जरुरी है। बलि
का मतलब यहाँ हिंसा से कभी भी नही है। एक सफल साधक साधना में लीनं होने के लिए निम्न प्रकार की बलि देता है:
१> निजी मोह की बलि देता है।
२> निजी वासना की बलि देता है।
३> लज्जा की बलि देता है।
४> क्रोध की बलि देता है।
इसलिए त्याग से उत्तम बलि देना होता है। जो मनुष्य गृहस्थ आश्रम में है तथा सामान्य भक्ति करते हैं वह अपने जीवन में अगर कुछ हद तक मोह,वासना,ईष्या, और
क्रोध की बलि दें तो वह इश्वर के समीप जा सकते है और उनका जीवन सफल होता
है।

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6>भूत, प्रेत और मसान बाधा के लिए एक अनुभूत प्रयोग

मित्रो अक्सर बहुत सारे ग्रुप्स में लोगो को भूत प्रेत या मसान बाधा से सम्बंधित प्रश्न पूछते देखता हूँ । आज उसके लिए ही एक ऐसा अनुभूत प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ जो यदि अपने ठीक से किया तो कुछ ही दिनों में पीड़ित व्यक्ति इन बाधाओं से मुक्त हो जायेगा नहीं तो जब तक आपको कोई सही व्यक्ति उपचार करने के लिए नहीं मिल जाता यानि कोई असली साधक या तांत्रिक तब तक ये फर्स्ट ऐड का काम अवश्य करेगा इसकी १००% गारंटी है ।

अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें और यदि पीड़ित ज्यादा कष्ट में हो तो किसी भी दिन कर सकते हैं । इसके लिए हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। । घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।

हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी लेकर गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावा लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस बत्ती को तिल के तेल थोडा सा चमेली का तेल मिलकर दिए में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूप भी जलाएं ।

जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी सिद्ध होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे या प्रसाद चढ़ाएंगे सुन्दरकाण्ड का पाठ कराएँगे आदि । फिर हनुमान जी की पंचोपचार पूजा करें फिर जो आटे का दिया अपने बनाया था वो जलाएं , गुग्गुल की धूप दें गुलाब के पुष्प हनुमानजी को अर्पित करें । अब अपनी सुरक्षा के लिए एकादश मुख हनुमान कवच का पाठ करें और फिर शुद्ध उच्चारण से यानि जोर जोर से बोलते हुए हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है अर्थात १०८ जप करने हैं । कुछ भी हो जाये पाठ बीच में छोड़कर उठाना नहीं है साथ में एक लोटे में जल रख लें । जप पूर्ण होने के पश्चात् इस जल के छींटे पीड़ित व्यक्ति पर डालें, उसे पिलायें, पूरे घर में डालें और घर के सब सदस्य इसे पियें इसमें समय अवश्य लगेगा पर इसका असर अतुलनीय है । बजरंगबली की कृपा हुई तो पीड़ित व्यक्ति या आपका घर उस पीड़ा से मुक्त हो जायेगा यदि कहीं कुछ कमी रह गयी हो फिर भी ये इतना असर करेगा की आपकी समस्या में फर्स्ट ऐड का कम करेगा इसके बाद जब तक कोई उचित ज्ञानी व्यक्ति न मिल जाये प्रतिदिन बजरंग बन का तीन बार नियमित पाठ करते रहें ।

गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।

यदि किसी असाध्य रोग से ग्रसित हों या कोई भी पीड़ा या कष्ट जिसका समाधान न मिल रहा हो उसके लिए ये प्रयोग अवश्य करें ।

इस प्रयोग से सम्बंधित किसी जानकारी या अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी अथवा समस्या निराकरण के लिए
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7>काला जादू”

अफ्रीका के जुलू कबीले में शताब्दियों पहले से एनर्जी को अपनी इच्छानुसार चला सकने की कला मौज़ूद रही है। अगर आपका इस कबीले की पुरानी पीढ़ी से कभी संयोगवश मुलाकात हो जाए तो आप उनकी इस अनोखी कला से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकेंगे। क्या करते हैं इस कबीले के लोग, जिससे उनसे मिलने वाला इंसान अचरज में पड़ जाता है?
“काला जादू” हां सही सुना आपने काला जादू करते हैं यहां के लोग। लेकिन ये काला जादू उनके लिए कोई करिश्मा नहीं केवल मौज़-मज़े की बात है। ये बात दिगर है कि बाहरी दुनिया से यहां आने वाले लोग इसके पूर्ण असर में आकर इसे कला न मान कोई दैवीय शक्ति समझ बैठते हैं।

काले जादू के संदर्भ में हमसे कई लोग पूछते हैं। उनकी जिज्ञासा कई बार बड़ी भोली होती है, जैसे कि क्या ऐसी कोई विधा वाकई मौज़ूद है? क्या काले जादू के इस्तेमाल से किसी की जान ली सकती है या फिर काले जादू से वशीकरण-सम्मोहन किया जा सकता है आदि-आदि.....

ऐसे सभी जिज्ञासुओं को हमारा एक जवाब हमेशा मिलता रहा है कि आप काला जादू को किसी करिश्मे की तरह देखने की बजाय एक बेहतरीन कला की तरह देखो तभी जाकर आप इसके लाभ को समझ सकोगे अन्यथा की स्थिति में आप केवल भ्रमित होकर अपना नुकसान कर बैठोगे।

ऊर्जा चक्रण एक वर्तुल की तरह होता है जिसे आप अपने प्रयासों से गति दे सकते हैं। अपनी इच्छानुसार इस वर्तुल को संचालित करने के लिए कुछ विशिष्ट क्रिया विधियों की अनिवार्यता होती है। एनर्जी के फ्लो को आप अपनी सहूलियत से कैसे प्रवाहित करने में सफल हो सकते है, यही सबसे बड़ी कला है।

एक और महत्वपूर्ण बात इस मुद्दे के बाबत हमें अवश्य जाननी चाहिए। ऊर्जा कभी सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती वरन् इसे संचालित करने की मंशा निगेटिव या पॉजिटिव होती है। जैसे आप विद्युत या अग्नि को कभी निगेटिव या पॉजिटिव नहीं मान सकते ठीक वैसे ही काले जादू को भी आप निगेटिव या पॉजिटिव कैसे मान लेंगे?

यह पूरी तरह इस्तेमाल करने वाले की नीयत पर निर्भर करता है कि वह इन्हें किस प्रकार के उपयोग में लाता है। डाइनामाइट के अन्वेषक एल्फ्रेड नोबल के नाम पर शांति का नोबल प्राइज़ प्रदान किया जाता है। लेकिन उनके इस आविष्कार का व्यापक स्तर पर दुरुपयोग हुआ। हर तरह के विनाश के लिए इस महान खोज का इस्तेमाल हुआ तथा आज भी हो रहा है। किंतु इसका उपयोग कुछ रचनात्मक कार्यों के लिए भी हुआ, और यही उद्देश्य इसके आविष्कारक का भी था।

ठीक इसी भांति काला जादू भी है, जिसका नकारात्मक व सकारात्मक दोनों ही रूपों में प्रयोग हो सकता है। ये पूरी तरह इसके एक्सपर्ट की मंशा पर निर्भर करता है कि वह इससे क्या हासिल करना चाहता है। इसके साथ एक और जरूरी बात ये जुड़ी है कि इनका ज्यादातर अंश मनोवैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित है। यानि यदि आप पूर्ण जागरण अवस्था में हों तो आपको काले जादू का कोई भी चमत्कारिक भाग नहीं दिखेगा। लेकिन आपकी तन्द्रा यानि उनींदी अवस्था इसके चमत्कार से आपको अभीभूत करने में सक्षम है।

इसी सिलसिले में एक बात आपको और मालूम होनी चाहिए कि काले जादू के नाम पर हाथ की सफाई की कला से भी आपको विस्मित किया जा सकता है। बंगाल का काला जादू हाथ की सफाई यानि एक अलग तरह का आर्ट है, जिसका तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि से कोई संबंध नहीं होता है। इसके लिए जितने भी उपक्रम आजमाए जाते हैं, वे केवल दर्शकों को बांध कर अपनी कला को सार्थकता तक पहुंचाने के लिए होते हैं।
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8>Aअघोर पंथ सनातन धर्म का एक संप्रदाय है।

अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी। अघोरियों की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली होती है। अघोरियों की रहस्यमयी जिंदगी की कुछ खास बातें:

अघोरी मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधन और शव साधना में प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है। तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। श्मशान में पूजा की जाती है। यहां गंगा जल और प्रसाद के रूप में मांस-मदिरा की जगह दूध से बना मावा चढ़ाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि अघोरी साधना बल से मुर्दों से भी बात कर सकते हैं। अघोरी गाय का मांस छोड़ कर मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक खा लेते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है। इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं। इसीलिए साधना में विध्न पडऩे का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उनके मन से अच्छे बुरे का भाव निकल जाता है।

कहा जाता है कि आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान
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9अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है।

इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। ये भारत के प्राचीनतम धर्म "शैव" (शिव साधक) से संबधित हैं। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति अपने विचित्र व्यवहार, एकांतप्रियता और रहस्यमय क्रियाओं की वजह से जाने जाते हैं। अघोर संप्रदाय की सामाजिक उदासीनता और निर्लिप्ति के कारण इसे उतना प्रचार नहीं मिला है

अघोर पंथ की उत्पत्ति और इतिहास[संपादित करें]
शैव सम्प्रदाय का विकास तथा अघोर पन्थ

अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।

अघोर दर्शन और साधना[संपादित करें]

अघोर साधनाएं मुख्यतः श्मशान घाटों और निर्जन स्थानों पर की जाती है। शव साधना एक विशेष क्रिया है जिसके द्वारा स्वयं के अस्तित्व के विभिन्न चरणों की प्रतीकात्मक रूप में अनुभव किया जाता है। अघोर विश्वास के अनुसार अघोर शब्द मूलतः दो शब्दों 'अ' और 'घोर' से मिल कर बना है जिसका अर्थ है जो कि घोर न हो अर्थात सहज और सरल हो। प्रत्येक मानव जन्मजात रूप से अघोर अर्थात सहज होता है। बालक ज्यों ज्यों बड़ा होता है त्यों वह अंतर करना सीख जाता है और बाद में उसके अंदर विभिन्न बुराइयां और असहजताएं घर कर लेती हैं और वह अपने मूल प्रकृति यानी अघोर रूप में नहीं रह जाता। अघोर साधना के द्वारा पुनः अपने सहज और मूल रूप में आ सकते हैं और इस मूल रूप का ज्ञान होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के तौर पर प्रयोग भी करते हैं। चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना इत्यादि सामान्य कार्य हैं। अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं।

भारत के कुछ प्रमुख अघोर स्थान[संपादित करें]
भारत मैं सबसे ज्यादा अघोरी असम के कामख्या मंदिर में रहते है हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जब माता सती भस्म हुई थी तो उनकी योनि इसी स्थान पर गिरी थी, असम के अलावा ये अघोरी बाबा पश्चिम बंगाल के तारापीठ, नासिक के अर्धज्योतिर्लिंग और उज्जैन के महाकाल के आस पास देखें जाते है ऐसा भी कहा जाता है की इन स्थानो पर सबसे जल्दी सिद्धिया हासिल होती है इनके अलावा वाराणसी या काशी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं। भगवान शिव की स्वयं की नगरी होने के कारण यहां विभिन्न अघोर साधकों ने तपस्या भी की है। यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ भी है। काशी के अतिरिक्त गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। जूनागढ़ को अवधूत भगवान दत्तात्रेय के तपस्या स्थल के रूप में जानते हैं।
अघोर पंथ, नर भक्षण और भ्रांतियां[संपादित करें]

अघोर संप्रदाय के साधक मृतक के मांस के भक्षण के लिए भी जाने जाते हैं। मृतक का मांस जहां एक ओर सामान्य जनता में अस्पृश्य होता है वहीं इसे अघोर एक प्राकृतिक पदार्थ के रूप में देखते हैं और इसे उदरस्थ कर एक प्राकृतिक चक्र को संतुलित करने का कार्य करते हैं। मृत मांस भक्षण के पीछे उनकी समदर्शी दृष्टि विकसित करने की भावना भी काम करती है। कुछ प्रमाणों के अनुसार अघोर साधक मृत मांस से शुद्ध शाकाहारी मिठाइयां बनाने की क्षमता भी रखते हैं। लोक मानस में अघोर संप्रदाय के बारे में अनेक भ्रांतिया और रहस्य कथाएं भी प्रचलित हैं। अघोर विज्ञान में इन सब भ्रांतियों को खारिज कर के इन क्रियाओं और विश्वासों को विशुद्ध विज्ञान के रूप में तार्किक ढ़ंग से प्रतिष्ठित किया गया है
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10=अघोरपंथ
अघोरपीठ बाबा कीनाराम स्थल

पुष्प दन्त जी ने ‘शिव महिम्न’ में कहा है- “अधोरान्ना परो मंत्रों नास्ति तत्वं, गुरौः परम।” अघोर कोई तंत्र-मंत्र या तांत्रिक क्रिया नहीं है। यह तो गुरु के माध्यम से आत्मा का परमात्मा से मिलन की साधना है। यह धर्म, सम्प्रदाय, परम्परा या पंथ नहीं है, यह मनुष्य की एक मानसिक स्थिति की अवस्था है जिसे प्राप्त कर मनुष्य मृत्यु लोक के माया के कुचक्र से मुक्त होकर परमात्मा को स्वयं में समाहित कर लेता है। अघोर का अर्थ है अनघोर। अर्थात जो घोर, कठिन, जटिल न होकर सभी के लिए सहज, सरल, मधुर और सुगम हो। अघोरेश्वर बाबा भगवान राम ने कहा है “जो अघ को दूर कर दे वह अघोर है।” अघ का अर्थ है पाप। अतः अघोर व्यक्ति को पाप से मुक्त कर पवित्र बना देता है। मनुष्य के इस अवस्था में पहुंचने पर विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भाषाओं में अनेक नामों से सुशोभित या सम्बोधित किया जाता है जैसे- औघड़, अवधूत, कापालिक, औलिया, मलंग इत्यादि। अघोर साधना करने और समझने की प्रक्रिया है न कि इसे तर्क से ग्रहण किया जा सकता है। अघोरेश्वर साधक संशय से दूर रहते हैं। वह संसार के सभी प्राणियों से परस्पर स्नेह रखते हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य होता है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ के माध्यम से पराशक्ति परमात्मा से मिलन। इनकी कोई भेषभूषा नहीं होती और न ही कोई जातिधर्म। साधना पथ पर जो भी मिला उसे ग्रहण कर लिया। अघोरी घृणित से घृणित कार्य करने वाले और चरित्र वाले को स्नेहपूर्वक अपने पास घेर कर रखते हैं ताकि वह समाज को इससे बचा सकें। अघोर साधकों के रहन-सहन, खान-पान के प्रति सामान्य मनुष्य के मन की जो सोच है, वह मात्र एक भ्रम है। अघोरी साधक ऐसा इसलिए करते है ताकि वह संसार में ही सांसारिक मोह माया से दूर रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। अघोर साधना के लिए ब्रह्मचर्य एवं वाणी पर नियत्रंण आवश्यक है। भगवान शिव ही अघोर साधना के प्रथम गुरू है। पिड़ितों के पीड़ा पर रूदन करने वाले और अत्याचारियों को अपने रौद्र रूप से रूलाने के कारण ही शिव ‘रूद्र’ कहलाये। यह रूद्र रूप अघोर का है। लिंगपुराण के अनुसार शिव के पांच रूपों में एक अघोर का स्वरूप है। ब्रह्माण्ड को पाप से मुक्त करने के लिए शिव ने यह रूप धारण किया। काशी में अघोर साधना को केन्द्र शिवाला स्थित क्रीं-कुण्ड है। शिवाला अर्थात शिव का आलय। जहां शिव औघड़ दानी के रूप में सदैव विराजमान रहते हैं। प्राचीन समय में यहा ‘हिंग्वाताल’ नाम का एक सरोवर था। बनारस गजेटियर 1883 के बन्दोबस्ती नक्सा में भी भदैनी मुहल्ले में ‘हिंग्वाताल’ को दर्शाया गया है। सरोवर का नाम क्रि-कुण्ड माँ हिंग्लाज के बीज मंत्र क्रीं से अभिमंत्रित होने के कारण पड़ा। ऐसा माना जाता है कि सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र रोहित को इसी सरोवर के तट पर सर्प ने कांटा था। अघोर साधना का यह केन्द्र कीनाराम के कारण प्रसिद्ध हुआ। इस अघोर साधना केन्द्र को कीनाराम-स्थल भी कहते है। सम्वत 1684 में चन्दौली जिले के रामगढ में कीनाराम का जन्म हुआ था, माँ हिंग्लॉज देवी की आज्ञा से काशी के शिवाला क्षेत्र में स्थित क्रीं-कुण्ड को उन्होने अपनी साधना का केन्द्र बनाया। श्री आदिगुरु दत्तात्रेय जी ने ही औघड़ बाबा कालूराम के स्वरूप में कीनाराम को अघोर साधना की दीक्षा प्रदान की थी।

क्रीं-कुण्ड के मुख्य द्वार से प्रतीत होता है कि यह तंत्र साधना का केन्द्र है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। कीनाराम स्थल के मुख्यद्वार के उपर दो नर-मुण्ड स्थापित किये गये है, ऐसा माना जाता है की जब कीनाराम माँ हिंग्लॉज देवी के आज्ञा से काशी में आये तो हरिश्चन्द्र घाट पर आदिगुरू दत्तात्रेय जी औघड़ कालूराम जी के स्वरूप में पहले से ही विराजमान थे और अपने चारों ओर नरमुण्डों को चना खिला रहे थे, कीनाराम को समझते देर न लगी की यह मेरी परीक्षा है और उन्होंने उन नर मुण्डों को चना खाने से रोक दिया। इन्हीं किंवदंतियों के स्मृति में यह नर मुण्ड स्थापित किये गये हैं, जबकी मुख्य द्वार पर दोनों ओर एक के उपर एक तीन नर मुण्ड का निर्माण हुआ है जो अभेद का प्रतीक है और कार्य के अनुसार तीन स्वरूप में दर्शाये गये हैं। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर सामने लाल पत्थर से निर्मित विशाल मंदिरनुमा समाधि है, जिसमें जाने के लिये गुफानुमा रास्ता है। गुफा के अन्दर मां हिंग्लॉज देवी की यन्त्रवत उपस्थिति है, जिसके बगल में कीनाराम की समाधि स्थित है। यहां तक पहुंचने के सकरे मार्ग के एक तरफ कालूराम जी की समाधि और दूसरी तरफ औघड़ बाबा राजेश्वर राम जी की सफेद प्रतिमा स्थापित है। यह मार्ग वर्ष में दो बार ही खुलता है। पहला लोलार्क षष्ठी को और दूसरी बार अभिषेक और निर्वाण दिवस(दस फरवरी) पर। क्रीं-कुण्ड परिसर में ही दाहिनी तरफ एक प्राचीन कुआं है, जिसके जल को ग्रहण करने से सभी तरह के रोग दूर होते हैं। इस कुंए पर कीनाराम के पदचिह्न स्थापित किये गये हैं। कहा जाता है कि कीनाराम जी इसी कुयें में कुद कर अदृश्य हो गये थे, भक्तों के अनुरोध पर उन्होंने कहां- ‘तुम जाओं मैं आऊगां’। इसी के प्रतीक स्वरूप यह पदचिह्न स्थापित किया गया है। परिसर में एक सफेद आसन स्थित है जिस पर महाराज कीनाराम विशेष अवसरों पर आसन ग्रहण करते थे। कीनाराम के समाधि ग्रहण करने के पश्चात इस आसन को तत्कालीन गुरु ने इसे बारादरी में स्थिर कर दिया। इस आसन से उत्तर दिशा की ओर ही क्रीं-कुण्ड है। रविवार और मंगलवार को मिलाकर कुल पांच दिन कुण्ड में स्नान करने के पश्चात वस्त्रों को त्यागकर वहां स्थित समाधि का तीन बार परिक्रमा करने के बाद विभूति ग्रहण करने से व्यक्ति को विपत्ति, आपदा और भवबाधा से मुक्ति मिलती है। श्माशान घाट से लाई गई लकड़ियों से यहां सदैव घुनि की अखण्ड अलख जलती रहती है। इस धुनि को साक्षात आग्नेय रूद्र का स्वरूप माना जाता है, इस धुनि की राख (विभूति) ही यहां का एकमात्र प्रसाद है। क्रि-कुण्ड परिसर में दक्षिण की ओर विशाल और भव्य समाधि कीनाराम के साथ ही ग्यारह अघोर पीठाधीशों के समाधियो की श्रृंखला है जिसे एकाशद रूद्र का स्वरूप माना जाता है। इन समाधियों के उपरी भाग पर भगलिंगात्मक यंत्र बना हुआ है जिसकी अर्चना करने से सिद्धियां प्राप्त होती है। इस अघोर साधना केन्द्र में मछली, चावल एवं शराब का प्रसाद ही चढाया जाता है तथा प्रत्येक शनिवार को श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप इसे वितरीत भी किया जाता है।

सिद्धपीठ औघड़नाथ का तकिया

कबीरचौरा मुहल्ले में स्थित औघड़ नाथ की तकिया प्रसिद्ध अघोर सिद्ध पीठ है। इस पीठ पर गुरु गोरखनाथ के समकालीन अवघूत महाराज ब्रम्हनाथ जी ने सिद्धि प्राप्त कर समाधि ग्रहण की थी। उनके पश्चात उन्ही के परम्परा के तेरह औघड़ संतों ने यहाँ सिद्धि प्राप्त की, इन तेरह औघड़ संतों की भी समाधिया परिसर में स्थापित हैं। यही के एक औघड़ संत मसाननाथ नाम से जाने जाते थे, जिनके समय मे मसान से लकड़ियाँ लाकर यहा पर धुनि जलाई जाती थी। इस सिद्धपीठ परिसर में ही एक अद्भुत कुआँ है, जिसके चारों किनारे के पानी का स्वाद अलग-अलग है तथा इस पानी का सेवन करने से पेट से जुड़ी सभी तरह की बिमारिया दूर हो जाती है। इस सिद्धपीठ में दूर-दूर से श्रद्धालुओं का आवागमन होता रहता है।

सिद्धपीठ सर्वेश्वरी समूह आश्रम

सन 1961 में अघोरेश्वर भगवान राम ने राजघाट पुल के पास, पड़ाव पर सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की। बाबा अवधूत भगवान राम ने अघोर परम्परा में एक नया अध्याय आरम्भ किया, यज्ञ- अनुष्ठान, मंत्र-जाप के साथ ही मानव कल्याणार्थ कार्य के स्थान को भी सिद्धपीठ बताया। उनका विचार था कि औघड़ी साधना को समाजोन्मुखी बनाया जाय। लगभग चौदह-पन्द्रह वर्ष की अवस्था में काशी के अघोर साधना के केन्द्र क्रीं-कुण्ड में तत्कालीन पीठाधीश्वर राजेश्वर राम से अघोर दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात साधना के लिये अनेक गुफाओं, कन्दराओं, श्मशानों पर भ्रमण किया। इन यात्राओं से उन्हें समझ में आया कि लोग अघोरियों से भय रखते है, अतः अघोर साधना से समाज को बहुत कम लाभ ही मिल पाता है। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक स्थितियों के अनुसार तथा अघोर साधकों एवं साधना को समाज के समीप लाने के लिये सर्वेश्वरी समूह की स्थापना कर समाज के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होने सर्वेश्वरी समूह के आश्रम में उन सभी क्रिया-कलापों जैसे- शराब,भांग,गाँजा के सेवन व अघोरियों के विकट और उद्दंड स्वभाव प्रदर्शित करने तक को प्रतिबन्धित कर दिया जिससे समाज अघोरियो से भय रखता था, इसके स्थान पर कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिये एक चिकित्सालय की स्थापना की, जहाँ देशी उपचारों के आधार पर जड़ी-बुटियों के द्वारा इलाज किया जाता है। इस चिकित्सालय में इतने अधिक कुष्ठ रोगियों का सफल इलाज किया गया है कि इसका नाम गिनिज एवं लिम्का बुक में शामिल हो गया है। इसके साथ ही इस समूह द्वारा समाज में व्याप्त दहेज एवं अन्य विभिन्न आडम्बरों से मुक्ति के लिये सार्थक प्रयास किये जाते हैं। सर्वेश्वरी समूह के देश-विदेश में लगभग 130 शाखाएँ सक्रिय हैं। वर्तमान में इस पीठ के पीठाधीश्वर औघड़ गुरूपद सम्भवराम जी हैं, जो सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष भी हैं। पड़ाव स्थित सर्वेश्वरी समूह के पास ही अघोरेश्वर भगवान राम की समाधि है, सर्वेश्वरी समूह आश्रम में आने के पश्चात श्रद्धालु समाधि का दर्शन करना नही भूलते हैं।
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11=अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया के बारे में जान उनसे डरने लगेंगे आप!

अघोरी हमेशा ही आम लोगों के लिए एक रहस्यमयी व्यक्तित्व होते है, वैसे तो उनकी उत्पति की कोई व्याख्या हमारे पास नही है, लेकिन भगवन शिव का एक रूप अघोरी भी है तब से उनके अनुयायी इस रूप में उनके स्वरुप में रहते है. उनकी जीवन चर्या और दिनचर्या बेहद ही अजीब और रहस्यमयी होती है, जो की उनके नाम से ही छलकती है.

हालाँकि उन्हें कुम्भ के मेले और आम लोगों में देख कर हमें वो भोले भले लगते है, हालाँकि उनकी वेशभूषा से बच्चे हो या बड़े सब डर जाते है लेकिन वो स्वाभाव से बेहद सरल होते है. वो लोग झुण्ड में रहते है बावजूद इसके उनमे आपस में कभी भी किसी तरह का द्वेष भाव या झगड़ा भारत के इतिहास में देखा और सुना नही गया है.

अब आपको उनके दिनचर्या की वो खास बातें बताते है जो आपको डरा देगी, जिस तरह माँ काली ने गुस्से में अपने पति शिव पर ही पैर रख दिया था और उनका गुस्सा तब शांत हुआ था वैसे ही अघोरी मृत शव पे खड़े होके फिर साधना करते है. मुर्दे को प्रसाद स्वरुप मांसाहार और दारू चढ़ाई जाती है कई मामलो में वो शमशान में पूजा करते है पर वंहा कुछ मीठा चढ़ाया जाता है.

हमारे पहले के लेखों में आप दुनिया के भयंकर रिवाज में आप इसके बारे में पढ़ चुके है की वो शव कंहा से लाते है.
उनकी साधना से वो इतने बलशाली हो जाते है जिसकी हम लोग कल्पना भी नही कर सकते है, लोग तो इतना तक कहते है की वो मुर्दो से भी बातें करने में सक्षम हो जाते है. आप उनकी शक्तियों को भूल के भी आजमाने की कोशिश न करें नही तो आप बड़ी मुसीबत में फंस सकते है.

वो अनजान और वीरान जगहों जैसे की शमशान में ही रहते है, उनके आस पास सिर्फ कुक्कर(कुत्ता) जानवर ही देखा जा सकता है. उनकी ऑंखें लाल ही रहती है जो उन्हें और भी डरावना बनाती है, वो स्वाभाव से जिद्दी होते है और वो अपनी हर बात मनवाने की ताकत भी रखते है.

बीफ पर देश में घमासान है लेकिन जान ले की खुद अघोरी भी गाय का मांस नही खाते है, लेकिन वो इंसानो तक का मांस खा जाते है जिनसे उन्हें काफी बल मिलता है और उनका मौत का भय जाता रहता है. रक्षशो की तरह ही वो लोग दिन में सोते है और रात में अपनी साधना में तल्लीन रहते है.

सबसे ज्यादा ये अघोरी असम के कामख्या मंदिर( जन्हा सती के भस्म होने पर उनकी योनि गिरी थी), पश्चिम बंगाल के तारापीठ, नासिक के अर्धज्योतिर्लिंग और उज्जैन के महाकाल के आस पास ही देखें जाते है. कहा जाता है की इन स्थानो पर सबसे जल्दी सिद्धिया हासिल होती है, हालाँकि हमने थोड़े में ज्यादा बताया है लेकिन उनके रहश्यमयी संसार का ज्ञान खुद उनको ही है किसी भी आम इंसान को नही.

12>अघोर पंथियों के 10 तांत्रिक पीठ

अघोर पंथ को शैव और शाक्त संप्रदाय की एक तांत्रिक शाखा माना गया है। अघोर पंथ की उत्पत्ति काल के बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। वाराणसी या काशी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं।

मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं की इस पंथ की स्थापना की थी। अघोर पंथ का प्रारंभिक गढ़ शिव की नगरी काशी को माना गया है, लेकिन आगे चलकर यह शक्तिपीठों में साधना करने लगे। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख अघोर तीर्थ के बारे में...

सबसे कठिन साधना का स्थल, अगले पन्ने पर...

तारापीठ :

तारापीठ को तांत्रिकों, मांत्रिकों, शाक्तों, शैवों, कापालिकों, औघड़ों आदि सबमें समान रूप से प्रमुख और पूजनीय माना गया है। इस स्थान पर सती पार्वती की आंखें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर गिरी थीं इसलिए यह शक्तिपीठ बन गया।

यह स्थल तारा साधन के लिए जगत प्रसिद्ध रहा है। यहां सती के रूप में तारा मां का मंदिर है और पार्श्व में महाश्मशान। सबसे पहले इस मंदिर की स्थापना महर्षि वशिष्ठ ने की थी। पुरातन काल में उन्होंने यहां कठोर साधना की थी।

मान्यता है कि वशिष्ठजी मां तारा को प्रसन्न नहीं कर पाए थे। कारण कि चीनाचार को छोड़कर अन्य किसी साधना विधि से भगवती तारा प्रसन्न नहीं होतीं। माना जाता है कि यह साधना भगवान बुद्ध जानते थे। बौधों में वज्रयानी साधक इस विद्या के जानकार बतलाए जाते हैं। अघोर साधुओं को भी इस विद्या की सटीक जानकारी है।

प्रमुख अघोराचार्य में बामा चट्टोपाध्याय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्हें बामाखेपा कहा जाता था।

शताब्दियों से साधकों, सिद्धों में प्रसिद्ध यह स्थल पश्चिम बंगाल के बीरभूम अंचल में रामपुर हाट रेलवे स्टेशन के पास द्वारका नदी के किनारे स्थित है। कोलकाता से तारापीठ की दूरी लगभग 265 किलोमीटर है। यह स्थल रेल एवं सड़क मार्ग दोनों से जुड़ा है।

दूसरा प्रमुख तीर्थ 'नानी का हज',

हिंगलाज धाम :

हिंगलाज धाम अघोर पंथ के प्रमुख स्थलों में शामिल है। हिंगलाज धाम वर्तमान में विभाजित भारत के हिस्से पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में स्थित है। यह स्थान सिंधु नदी के मुहाने से 120 किलोमीटर और समुद्र से 20 किलोमीटर तथा कराची नगर के उत्तर-पश्चिम में 125 किलोमीटर की दूरी पर हिंगोल नदी के किनारे स्थित है।

माता के 52 शक्तिपीठों में इस पीठ को भी गिना जाता है। यहां हिंगलाज स्थल पर सती का सिरोभाग कट कर गिरा था। यह अचल मरुस्थल होने के कारण इस स्थल को मरुतीर्थ भी कहा जाता है। इसे भावसार क्षत्रियों की कुलदेवी माना जाता है।
अब यह क्षेत्र मुसलमानों के अधिकार में चला गया है। यहां के स्थानीय मुसलमान हिंगलाज पीठ को 'बीबी नानी का मंदर' कहते हैं। अप्रैल के महीने में स्थानीय मुसलमान समूह बनाकर हिंगलाज की यात्रा करते हैं और इस स्थान पर आकर लाल कपड़ा चढ़ाते हैं, अगरबत्ती जलाते है और शिरीनी का भोग लगाते हैं। वे इस यात्रा को 'नानी का हज' कहते हैं।

हिंगलाज देवी की गुफा रंगीन पत्थरों से निर्मित है। माना जाता है कि इस गुफा का निर्माण यक्षों द्वारा किया गया था, इसीलिए रंगों का संयोजन इतना भव्य बन पड़ा है। पास ही एक भैरवजी का भी स्थान है। भैरवजी को यहां पर 'भीमालोचन' कहा जाता है।

* यह हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में चले जाने के बाद वाराणसी की एक गुफा क्रीं कुण्ड में बाबा कीनाराम हिंगलाज माता की प्रतिमूर्ति स्थापित की गई है।

* इन दो स्थलों के अलावा हिंगलाज देवी एक और स्थान पर विराजती हैं, वह स्थान उड़ीसा प्रदेश के तालचेर नामक नगर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

जनश्रुति की मानें तो विदर्भ क्षेत्र के राजा नल माता हिंगलाज के परम भक्त थे। अतः माता हिंगलाज अग्नि रूप में जगन्नाथ मंदिर के रंधनशाला में भी विराजमान हैं। उन्हीं अग्निरूपा माता हिंगलाज का मंदिर तालचेर के पास स्थापित है।

 महिषासुर के वध के बाद जहां ठहरी थी माता...
विंध्याचल : 

विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला जगप्रसिद्ध है। यहां पर विंध्यवासिनी माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थल में तीन मुख्य मंदिर हैं- विंध्यवासिनी, कालीखोह और अष्टभुजा। इन मंदिरों की स्थिति त्रिकोण यंत्रवत है। इनकी त्रिकोण परिक्रमा भी की जाती है।

यहां छोटे-बड़े सैकड़ों मंदिर हैं और तीन प्रमुख कुंड हैं। प्रथम है सीताकुंड जहां से ऊपर सीढ़ियों से यात्रा शुरू होती है। यात्रा में पहले अष्टभुजा मंदिर है, जहां माता सरस्वती की मूर्ति विराजमान है। उससे ऊपर कालीखोह है, जहां माता काली विराजमान हैं। फिर आता है और ऊपर विंध्याचल का मुख्य मंदिर माता विंध्यवासिनी मंदिर।

स्थान का महत्व : 

कहा जाता है कि महिषासुर वध के पश्चात माता दुर्गा इसी स्थान पर निवास हेतु ठहर गई थीं। भगवान राम ने यहां तप किया था और वे अपनी पत्नी सीता के साथ यहां आए थे। इस पर्वत में अनेक गुफाएं हैं जिनमें रहकर साधक साधना करते हैं। आज भी अनेक साधक, सिद्ध, महात्मा, अवधूत, कापालिक आदि से यहां भेंट हो सकती है।

भैरवकुंड के पास यहां की एक गुफा में अघोरेश्वर रहते थे। गुफा के भीतर भक्तों, श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ अघोरेश्वर की चरण पादुका एक चट्टान में जड़ दी गई है। यहां कई साधक आकर नाना प्रकार की साधनाएं करते और अघोरेश्वर की कृपा से सिद्धि पाकर कृतकृत्य होते हैं।

विंध्याचल पर्वत से किलोमीटर की दूरी पर मिरजापुर में रेलवे स्टेशन है। सड़क मार्ग से यह स्थान बनारस, इलाहाबाद, मऊनाथभंजन, रीवा और औरंगाबाद से जुड़ा हुआ है। बनारस से 70 किलोमीटर तथा इलाहाबाद से 83 किलोमीटर की दूरी पर विंध्याचल धाम स्थित है।

 भगवान दत्तात्रेय की जन्म स्थली...
चित्रकूट :

अघोर पथ के अन्यतम आचार्य दत्तात्रेय की जन्मस्थली चित्रकूट सभी के लिए तीर्थस्थल है। औघड़ों की कीनारामी परंपरा की उ‍त्पत्ति यहीं से मानी गई है। यहीं पर मां अनुसूया का आश्रम और सिद्ध अघोराचार्य शरभंग का आश्रम भी है।
यहां का स्फटिक शिला नामक महाश्मशान अघोरपंथियों का प्रमुख स्थल है। इसके पार्श्व में स्थित घोरा देवी का मंदिर अघोर पंथियों का साधना स्थल है। यहां एक अघोरी किला भी है, जो अब खंडहर बन चुका है।

 प्रसिद्ध अघोर तीर्थ...

कालीमठ: 
हिमालय की तराइयों में नैनीताल से आगे गुप्तकाशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल है। यहां अनेक साधक रहते हैं। यहां से 5,000 हजार फीट ऊपर एक पहाड़ी पर काल शिला नामक स्थल है, जहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल है। कालशिला में भी अघोरियों का वास है।
माना जाता है कि कालीमठ में भगवान राम ने एक बहुत बड़ा खड्ग स्थापित किया है।
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जगन्नाथ पुरी:

जगतप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर और विमला देवी मंदिर, जहां सती का पाद खंड गिरा था, के बीच में एक चक्र साधना वेदी स्थित है जिसे वशिष्ठ कहते हैं।

इसके अलावा पुरी का स्वर्गद्वार श्मशान एक पावन अघोर स्थल है। इस श्मशान के पार्श्व में मां तारा मंदिर के खंडहर में ऋषि वशिष्ठ के साथ अनेक साधकों की चक्रार्चन करती हुई प्रतिमाएं स्थापित हैं।
जगन्नाथ मंदिर में भी श्रीकृष्णजी को शुभ भैरवी चक्र में साधना करते दिखलाया गया है।

मदुरई का कपालेश्वर मंदिर...

मदुरई :दक्षिण भारत में औघड़ों का कपालेश्वर का मंदिर है। आश्रम के प्रांगण में एक अघोराचार्य की मुख्य समाधि है और भी समाधियां हैं। मंदिर में कपालेश्वर की पूजा औघड़ विधि-विधान से की जाती है।

सबसे प्रसिद्ध कोलकाता का काली मठ...

कोलकाता का काली मंदिर : रामकृष्ण परमहंस की आराध्या देवी मां कालिका का कोलकाता में विश्वप्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास स्थित इस मंदिर को दक्षिणेश्वर काली मंदिर कहते हैं। इस पूरे क्षेत्र को कालीघाट कहते हैं। इस स्थान पर सती देह की दाहिने पैर की 4 अंगुलियां गिरी थीं इसलिए यह सती के 52 शक्तिपीठों में शामिल है।
यह स्थान प्राचीन समय से ही शक्तिपीठ माना जाता था, लेकिन इस स्थान पर 1847 में जान बाजार की महारानी रासमणि ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 25 एकड़ क्षेत्र में फैले इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1855 पूरा हुआ।

नेपाल में अघोर कुटी...
नेपाल : नेपाल में तराई के इलाके में कई गुप्त औघड़ स्थान पुराने काल से ही स्थित हैं। अघोरेश्वर भगवान राम के शिष्य बाबा सिंह शावक रामजी ने काठमांडू में अघोर कुटी स्थापित की है।
उन्होंने तथा उनके बाद बाबा मंगलधन रामजी ने समाजसेवा को नया आयाम दिया है। कीनारामी परंपरा के इस आश्रम को नेपाल में बड़ी ही श्रद्धा से देखा जाता है।

अफगानिस्तान में लालजी पीर...

अफगानिस्तान : अफगानिस्तान के पूर्व शासक शाह जहीर शाह के पूर्वजों ने काबुल शहर के मध्य भाग में कई एकड़ में फैला जमीन का एक टुकड़ा कीनारामी परंपरा के संतों को दान में दिया था। इसी जमीन पर आश्रम, बाग आदि निर्मित हैं। औघड़ रतनलालजी यहां पीर के रूप में आदर पाते हैं। उनकी समाधि तथा अन्य अनेक औघड़ों की समाधियां इस स्थल पर आज भी श्रद्धा-नमन के लिए स्थित हैं।

उपरोक्त स्थलों के अलावा अन्य जगहों पर भी जैसे रामेश्वरम, कन्याकुमारी, मैसूर, हैदराबाद, बड़ौदा, बोधगया आदि अनेक औघड़, अघोरेश्वर लोगों की साधना स्थली, आश्रम, कुटिया पाई जाती हैं।
जानिए अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया की कुछ अनजानी और रोचक बातें-

अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। ये भारत के प्राचीनतम धर्म “शैव” (शिव साधक) से संबधित हैं। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है। शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं। अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी। अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है। उनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं। अघोरी उसे कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानी बहुत सरल और सहज हो। जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है।

अघोरियों की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं। अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं जो सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं। साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी आज आप जानेंगे, जहां अघोरी मुख्य रूप से अपनी साधना करते हैं। जानिए अघोरियों के बारे में रोचक बातें-

1. अघोरी मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।
शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

अघोरी शव साधना के लिए शव कहाँ से लाते है?

हिन्दू धर्म में आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है। पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।

2. बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं। ये बातें पढऩे-सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।
अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं, अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो बहुत गुस्सा हो, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।
3. अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं, जो उनकी सेवा करते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं, वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं।

4. अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों को खाते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है। इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है।
श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं। इसीलिए साधना में विध्न पडऩे का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उनके मन से अच्छे बुरे का भाव निकल जाता है, इसलिए वे प्यास लगने पर खुद का मूत्र भी पी लेते हैं।

5. अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे हुए होते हैं। वे अपने आप में मस्त रहने वाले, अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते। ना ही ज्यादा बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं।

6. आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान।

तारापीठ

यह मंदिर पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में एक छोटा शहर है। यहां तारा देवी का मंदिर है। इस मंदिर में मां काली का एक रूप तारा मां की प्रतिमा स्थापित है। रामपुर हाट से तारापीठ की दूरी लगभग 6 किलोमीटर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है।
तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे महाश्मशान घाट के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। यहां आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है। इस श्मशान में दूर-दूर से साधक साधनाएं करने आते हैं।
कामाख्या पीठ
असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है।
पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह स्थान तांत्रिकों के लिए स्वर्ग के समान है। यहां स्थित श्मशान में भारत के विभिन्न स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने आते हैं।

नासिक

त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में है। यहां के ब्रह्म गिरि पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये सात सौ सीढिय़ां बनी हुई हैं।

इन सीढिय़ों पर चढऩे के बाद रामकुण्ड और लक्ष्मण कुण्ड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं। भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। यहां स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है।

उज्जैन
महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है। इस कारण तंत्र शास्त्र में भी शिव के इस शहर को बहुत जल्दी फल देने वाला माना गया है। यहां के श्मशान में दूर-दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं।
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वाराणसी या काशी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं।

भगवान शिव की स्वयं की नगरी होने के कारण यहां विभिन्न अघोर साधकों ने तपस्या भी की है। यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ भी है। काशी के अतिरिक्त गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। जूनागढ़ को अवधूत भगवान दत्तात्रेय के तपस्या स्थल के रूप में जानते हैं।

अघोरी श्‍मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं -
श्‍मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। ऐसी साधनाएँ अक्सर तारापीठ के श्‍मशान, कामाख्या पीठ के श्‍मशान, त्र्यम्‍बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्‍मशान में होती है।

अघोरपन्थ की तीन शाखाएँ प्रसिद्ध हैं -
औघड़, सरभंगी, घुरे। इनमें से पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुए, जो किनाराम बाबा के गुरु थे। कुछ लोग इस पन्थ को गुरु गोरखनाथ के भी पहले से प्रचलित बतलाते हैं और इसका सम्बन्ध शैव मत के पाशुपत अथवा कालामुख सम्प्रदाय के साथ जोड़ते हैं।

बाबा किनाराम अघोरी वर्तमान बनारस ज़िले के समगढ़ गाँव में उत्पन्न हुए थे

और बाल्यकाल से ही विरक्त भाव में रहते थे। बाबा किनाराम ने 'विवेकसार' , 'गीतावली', 'रामगीता' आदि की रचना की। इनमें से प्रथम को इन्होंने उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे बैठकर लिखा था। इनका देहान्त संवत 1826 में हुआ।
'विवेकसार' इस पन्थ का एक प्रमुख ग्रन्थ है,

जिसमें बाबा किनाराम ने 'आत्माराम' की वन्दना और अपने आत्मानुभव की चर्चा की है। उसके अनुसार सत्य पुरुष व निरंजन है, जो सर्वत्र व्यापक और व्याप्त रूपों में वर्तमान है और जिसका अस्तित्व सहज रूप है। ग्रन्थ में उन अंगों का भी वर्णन है, जिनमें से प्रथम तीन में सृष्टि रहस्य, काया परिचयय, पिंड ब्रह्मांड, अनाहतनाद एवं निरंजन का विवरण है।

अगले तीन में योगसाधना,

निरालंब की स्थिति, आत्मविचार, सहज समाधि आदि की चर्चा की गई है तथा शेष दो में सम्पूर्ण विश्व के ही आत्मस्वरूप होने और आत्मस्थिति के लिए दया, विवेक आदि के अनुसार चलने के विषय में कहा गया है। बाबा किनाराम ने इस पन्थ के प्रचारार्थ रामगढ़, देवल, हरिहरपुर तथा कृमिकुंड पर क्रमश: चार मठों की स्थापना की। जिनमें से चौथा प्रधान केनद्र है।

असम, जिसे कभी कामरूप प्रदेश के नाम से भी जाना जाता था,

ऐसा ही एक स्थान है जहां रात के अंधेरे में शमशाम भूमि पर तंत्र साधना कर पारलौकिक शक्तियों का आह्वान किया जाता है। यहां होने वाली तंत्र साधनाएं पूरे भारत में प्रचलित हैं। यूं तो अभी भी कुछ समुदायों में मातृ सत्तात्मक व्यवस्था चलती है लेकिन कामरूप में इस व्यवस्था की महिलाएं तंत्र विद्या में बेहद निपुण हुआ करती थीं।

तारापीठ :

तारापीठ को तांत्रिकों, मांत्रिकों, शाक्तों, शैवों, कापालिकों, औघड़ों आदि सबमें समान रूप से प्रमुख और पूजनीय माना गया है। इस स्थान पर सती पार्वती की आंखें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर गिरी थीं इसलिए यह शक्तिपीठ बन गया।

हिंगलाज धाम :
हिंगलाज धाम अघोर पंथ के प्रमुख स्थलों में शामिल है। हिंगलाज धाम वर्तमान में विभाजित भारत के हिस्से पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में स्थित है। यह स्थान सिंधु नदी के मुहाने से 120 किलोमीटर और समुद्र से 20 किलोमीटर तथा कराची नगर के उत्तर-पश्चिम में 125 किलोमीटर की दूरी पर हिंगोल नदी के किनारे स्थित है। माता के 52 शक्तिपीठों में इस पीठ को भी गिना जाता है। यहां हिंगलाज स्थल पर सती का सिरोभाग कट कर गिरा था। यह अचल मरुस्थल होने के कारण इस स्थल को मरुतीर्थ भी कहा जाता है। इसे भावसार क्षत्रियों की कुलदेवी माना जाता है।

विंध्याचल :

विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला जगप्रसिद्ध है। यहां पर विंध्यवासिनी माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थल में तीन मुख्य मंदिर हैं- विंध्यवासिनी, कालीखोह और अष्टभुजा। इन मंदिरों की स्थिति त्रिकोण यंत्रवत है। इनकी त्रिकोण परिक्रमा भी की जाती है। कहा जाता है कि महिषासुर वध के पश्चात माता दुर्गा इसी स्थान पर निवास हेतु ठहर गई थीं। भगवान राम ने यहां तप किया था और वे अपनी पत्नी सीता के साथ यहां आए थे। इस पर्वत में अनेक गुफाएं हैं जिनमें रहकर साधक साधना करते हैं। आज भी अनेक साधक, सिद्ध, महात्मा, अवधूत, कापालिक आदि से यहां भेंट हो सकती है।

चित्रकूट :

अघोर पथ के अन्यतम आचार्य दत्तात्रेय की जन्मस्थली चित्रकूट सभी के लिए तीर्थस्थल है। औघड़ों की कीनारामी परंपरा की उ‍त्पत्ति यहीं से मानी गई है। यहीं पर मां अनुसूया का आश्रम और सिद्ध अघोराचार्य शरभंग का आश्रम भी है। यहां का स्फटिक शिला नामक महाश्मशान अघोरपंथियों का प्रमुख स्थल है।

कालीमठ :

हिमालय की तराइयों में नैनीताल से आगे गुप्तकाशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल है। यहां अनेक साधक रहते हैं। यहां से 5,000 हजार फीट ऊपर एक पहाड़ी पर काल शिला नामक स्थल है, जहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल है। कालशिला में भी अघोरियों का वास है। माना जाता है कि कालीमठ में भगवान राम ने एक बहुत बड़ा खड्ग स्थापित किया है।

कोलकाता का काली मंदिर : रामकृष्ण परमहंस की आराध्या देवी मां कालिका का कोलकाता में विश्वप्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास स्थित इस मंदिर को दक्षिणेश्वर काली मंदिर कहते हैं। इस पूरे क्षेत्र को कालीघाट कहते हैं। इस स्थान पर सती देह की दाहिने पैर की 4 अंगुलियां गिरी थीं इसलिए यह सती के 52 शक्तिपीठों में शामिल है।
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13=कैसे आती है अघोरियों में इतनी शक्ति, मुर्दे भी देते है उनके सवालो के जवाब?

अघोरी हमेशा ही आम लोगों के लिए एक रहस्यमयी व्यक्तित्व होते है, वैसे तो उनकी उत्पति की कोई व्याख्या हमारे पास नही है, लेकिन भगवन शिव का एक रूप अघोरी भी है तब से उनके अनुयायी इस रूप में उनके स्वरुप में रहते है. उनकी जीवन चर्या और दिनचर्या बेहद ही अजीब और रहस्यमयी होती है, जो की उनके नाम से ही छलकती है.

हालाँकि उन्हें कुम्भ के मेले और आम लोगों में देख कर हमें वो भोले भले लगते है, हालाँकि उनकी वेशभूषा से बच्चे हो या बड़े सब डर जाते है लेकिन वो स्वाभाव से बेहद सरल होते है. वो लोग झुण्ड में रहते है बावजूद इसके उनमे आपस में कभी भी किसी तरह का द्वेष भाव या झगड़ा भारत के इतिहास में देखा और सुना नही गया है.

अब आपको उनके दिनचर्या की वो खास बातें बताते है जो आपको डरा देगी, जिस तरह माँ काली ने गुस्से में अपने पति शिव पर ही पैर रख दिया था और उनका गुस्सा तब शांत हुआ था वैसे ही अघोरी मृत शव पे खड़े होके फिर साधना करते है. मुर्दे को प्रसाद स्वरुप मांसाहार और दारू चढ़ाई जाती है कई मामलो में वो शमशान में पूजा करते है पर वंहा कुछ मीठा चढ़ाया जाता है.

उनकी साधना से वो इतने बलशाली हो जाते है जिसकी हम लोग कल्पना भी नही कर सकते है, लोग तो इतना तक कहते है की वो मुर्दो से भी बातें करने में सक्षम हो जाते है. आप उनकी शक्तियों को भूल के भी आजमाने की कोशिश न करें नही तो आप बड़ी मुसीबत में फंस सकते है.

वो अनजान और वीरान जगहों जैसे की शमशान में ही रहते है, उनके आस पास सिर्फ कुक्कर(कुत्ता) जानवर ही देखा जा सकता है. उनकी ऑंखें लाल ही रहती है जो उन्हें और भी डरावना बनाती है, वो स्वाभाव से जिद्दी होते है और वो अपनी हर बात मनवाने की ताकत भी रखते है

बीफ पर देश में घमासान है लेकिन जान ले की खुद अघोरी भी गाय का मांस नही खाते है, लेकिन वो इंसानो तक का मांस खा जाते है जिनसे उन्हें काफी बल मिलता है और उनका मौत का भय जाता रहता है. रक्षशो की तरह ही वो लोग दिन में सोते है और रात में अपनी साधना में तल्लीन रहते है.

सबसे ज्यादा ये अघोरी असम के कामख्या मंदिर( जन्हा सती के भस्म होने पर उनकी योनि गिरी थी), पश्चिम बंगाल के तारापीठ, नासिक के अर्धज्योतिर्लिंग और उज्जैन के महाकाल के आस पास ही देखें जाते है. कहा जाता है की इन स्थानो पर सबसे जल्दी सिद्धिया हासिल होती है, हालाँकि हमने थोड़े में ज्यादा बताया है लेकिन उनके रहश्यमयी संसार का ज्ञान खुद उनको ही है किसी भी आम इंसान को नही
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14>शिव के उपासक होते हैं अघोरी साधु, जानिए 12 अन्य रहस्यमय तथ्य

अघोर पंथ हिन्दू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, लेकिन इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष माना जाता है।
इस पंथ का पालन करने वाले साधुओं की जीवनचर्या अप्रचलित और सभ्य समाज से अलग होती है। यही वजह है कि लोगों में इनके प्रति जिज्ञासा का भाव अधिक होता है। जानिए इनके कुछ हैरान कर देने वाले अन्य तथ्य।
1. शिव भक्ति
अघोरी साधुओं को शैव संप्रदाय का माना जाता है, यानी कि वे शिव जी के उपासक हैं। उनका मानना है कि शिव ही वह एकमात्र ताकत है, जो इस दुनिया को अपने नियंत्रण में रखता है और निर्वाण का आखिरी सारथी है।
2. सार्वलौकिक दवा
अघोरियों का मानना है कि उनके पास इंसान की सारी बीमारियों और रोगों का इलाज है। वे लाशों में से असाधारण तेल निकालकर उनसे दवाइयां बनाते हैं, जिन्हें अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
3. कठोर परिस्थितियों में जीवन
अघोरी साधु दुनिया के सबसे कठोर और सख्त प्राणियों में से हैं। निर्जन-भूमि की झुलसाने वाली गर्मी हो या बर्फ से ढकी हुई कड़कड़ाती हिमालय की ठंड, वे हर मौसम में कपड़ों के बिना जीते हैं।
4. कोई विकर्षण नहीं
अघोरियों का मलिन रहने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है। उनका मानना है कि परमात्मा के पास पहुंचने के लिए उन्हें छोटी-छोटी चीज़ों से विकर्षित नहीं होना चाहिए, जैसे की सफाई रखना और बदन ढकना। यही कारण है कि वे बाल कटाने को भी आवश्यक नहीं समझते हैं।
5. लाशों पर ध्यान करना
मन्त्र उच्चारण से मोहावस्था की स्थिति में आने के बाद, अघोरी श्मशान में ध्यान लीन हो जाते है। उनका मानना है कि इसी से उन्हें मोक्ष का मार्ग प्राप्त होगा।
6. वस्त्र हीनता
अघोरी साधु बहुत ही कम कपड़े पहनते हैं और अपने नंगे शरीर से शर्माते नहीं हैं। वे दुनिया के सारे सांसारिक सुखों को ईश्वर से मिलन के लिए त्याग देते हैं और मानते हैं कि वस्त्र-हीनता भी उसी ईश्वर को पाने का एक ज़रिया है।
7. किसी से लिए कोई घृणा नहीं
अघोरी सांसारिक घृणाओं से कोसों दूर रहते हैं। अपने कर्म के आधार पर भगवान शिव के द्वारा दी गई सभी चीज़ों को सद्भावना के साथ स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार मोक्ष पाने के लिए यह करना आवश्यक है।
8. वस्त्र और आभूषण
अघोरी भले ही कपड़ों का त्याग कर देते हैं, परन्तु वे अपने शरीर को जलती चिता से बनी हुई राख से ढकते हैं। वे इंसान की हड्डी और कपाल को आभूषण की तरह पहनते हैं।
9. यौन अनुष्ठान
वे स्त्रियों के साथ सम्भोग करते तो हैं, लेकिन उनकी मर्ज़ी के बगैर उन्हें छूते भी नहीं। उनके साथ यौन क्रियाएं वे सिर्फ शमशान भूमि में लाशों के ऊपर करते हैं। यौन संबंध जब बनाए जाते हैं, उस वक्त ढोल बजाए जाते हैं। वे यह आनंद के लिए नहीं, बल्कि मोहावस्था की स्थिति में आने के लिए करते हैं।
10. नरमांस-भक्षण तथा मांस-भक्षण
अघोरियों को मनुष्य का मांस-कच्चा एवं पका हुआ खाते देखा गया है। यह प्रथा आश्चर्यजनक और ग़ैरकानूनी होने के बावजूद वाराणसी के गांठ पर खुलेआम प्रचलित है।
11. तांत्रिक शक्तियां
कहा जाता है कि ज़्यादातर अघोरियों के पास तांत्रिक शक्तियां होती हैं। वे काले जादू में माहिर होते हैं और जब वे मंत्रों का जाप आरंभ कर दे, तब उनमें अलौकिक शक्तियां आ जाती हैं।
12. गांजे का उपयोग
अघोरियों को खुले आम गांजे का दम लेते देखा जा सकता है। वे गांजे को नशे में चूर होने के लिए नहीं, बल्कि भक्ति और ध्यान में मदमस्त होकर परमेश्वर के निकट पहुंचने के लिए उपयोग करते हैं।
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13> মন্ত্র- তন্ত্র শুভ সময়+ डाकिनी :: एक प्रचंड शक्ति

 >***मंत्र-तंत्र के शुभ समय ***( 1 to 8 )


1---------जानें मंत्र-तंत्र के राजमंत्र साधना में शुभ समय का रखें ध्यान
2-------- तन्त्र समाधान देता है.उलझाता नहीं इसका दुरूपयोग हानि देता है फायदा नही .
3---------हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है
4--------डाकिनी :: एक प्रचंड शक्ति
5--------दुःख दारिद्रय निवारक चमत्कारी उपाय ==64 योगिनी तंत्र:-
6--------चंडिका प्रयोग
7---------तंत्र, मंत्र, यंत्र और योग साधना का लाभ..
8---------काले जादू और बुरी नजर से बचाती है ये साधारण लगने वाली चीजे
9----------गुंजा=श्वेत कुच, लाल कुच


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তন্ত্র = মন্ত্র

1>जानें मंत्र-तंत्र के राजमंत्र साधना में शुभ समय का रखें ध्यान

मंत्र शब्द का अर्थ असीमित है। वैदिक ऋचाओं के प्रत्येक छन्द भी मंत्र कहे जाते हैं। तथा देवी-देवताओं की स्तुतियों व यज्ञ हवन में निश्चित किए गए शब्द समूहों को भी मंत्र कहा जाता है। तंत्र शास्त्र में मंत्र का अर्थ भिन्न है। तंत्र शास्त्रानुसार मंत्र उसे कहते हैं जो शब्द पद या पद समूह जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है वह उस देवता या शक्ति का मंत्र कहा जाता है।

विद्वानों द्वारा मंत्र की परिभाषाएँ निम्न प्रकार भी की गई हैं।

1. धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं।

2. देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की कृपा को मंत्र कहते हैं। (तंत्रानुसार)

3. दिव्य-शक्तियों की कृपा को प्राप्त करने में उपयोगी शब्द शक्ति को मंत्र कहते हैं।

4. अदृश्य गुप्त शक्ति को जागृत करके अपने अनुकूल बनाने वाली विधा को मंत्र कहते हैं। (तंत्रानुसार)

5. इस प्रकार गुप्त शक्ति को विकसित करने वाली विधा को मंत्र कहते हैं।

मंत्र साधना के समय

मंत्र साधना के लिए निम्नलिखित विशेष समय, माह, तिथि एवं नक्षत्र का ध्यान रखना चाहिए।

1. उत्तम माह - साधना हेतु कार्तिक, अश्विन, वैशाख माघ, मार्गशीर्ष, फाल्गुन एवं श्रावण मास उत्तम होता है।

2. उत्तम तिथि - मंत्र जाप हेतु पूर्णिमा़, पंचमी, द्वितीया, सप्तमी, दशमी एवं ‍त्रयोदशी तिथि उत्तम होती है।

3. उत्तम पक्ष - शुक्ल पक्ष में शुभ चंद्र व शुभ दिन देखकर मंत्र जाप करना चाहिए।

4. शुभ दिन - रविवार, शुक्रवार, बुधवार एवं गुरुवार मंत्र साधना के लिए उत्तम होते हैं।

5. उत्तम नक्षत्र - पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, श्रवण रेवती, अनुराधा एवं रोहिणी ‍नक्षत्र मंत्र सिद्धि हेतु उत्तम होते हैं।

मंत्र साधना में साधन आसन एवं माला की विशेषताएँ

आसन - मंत्र जाप के समय कुशासन, मृग चर्म, बाघम्बर और ऊन का बना आसन उत्तम होता है।

माला - रुद्राक्ष, जयन्तीफल, तुलसी, स्फटिक, हाथीदाँत, लाल मूँगा, चंदन एवं कमल की माला से जाप सिद्ध होते हैं। रुद्राक्ष की माला सर्वश्रेष्ठ होती है।
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2> तन्त्र समाधान देता है.उलझाता नहीं इसका दुरूपयोग हानि देता है फायदा नही ..

प्रयोग मात्र विश्वास पर आधारित.....
सरल लेकिन शक्तिशाली गोपनीय मंत्र

तंत्र विद्या गोपनीय और रहस्यमयी होती है। हर किसी को यह फलीभूत भी नहीं होती। तामसिक प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों को इससे दूर रहने की ही सलाह दी गई है। जो लोग सात्विकता के साथ इन्हें आजमाते हैं उन्हें यह अवश्य लाभ प्रदान करती है। कुछ मंत्र स्वयं की रक्षा के लिए वर्णित हैं, तो कुछ मंत्र आकर्षण शक्ति बढ़ाने के लिए। प्रस्तुत है कुछ चमत्कारी अचूक मंत्र-

शक्तिशाली आत्मरक्षा मंत्र

'ॐ क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं फट्'

प्रयोग विधि- उपरोक्त मंत्र का नित्य 500 बार जप करने से साधक को समस्त सुख प्राप्त होते हैं और आत्मभय दूर होकर व्यक्ति ‍'निर्भय' हो जाता है।

स्त्री सौभाग्यवर्धक मंत्र

ॐ ह्रीं कपालिनि कुल कुण्डलिनि मे सिद्धि देहि भाग्यं देहि देहि स्वाहा।।

प्रयोग विधि- यह मंत्र कृष्ण पक्ष की चौदस से प्रारंभ करके अगले महीने की कृष्ण पक्ष की तेरस तक- यानी एक मास तक नित्य एक हजार एक बार जाप करने से स्त्रियों की समस्त आधि-व्याधियां दूर होती हैं और स्त्री पति, पुत्र, परिवार आदि की प्रिय हो जाती है।

चोर भयहरण मंत्र

ॐ करालिनि स्वाहा ॐ कपालिनि स्वाहा चोर बंधय ठ: ठ: ठ:।।

प्रयोग विधि- यह मंत्र 108 बार जाप करने से सिद्धि होती है। प्रयोग के समय 7 बार मंत्र पढ़कर थोड़ी सी मिट्टी द्वार पर की भूमि में गाड़ दे तो भवन में चोर घुसने का भय नहीं रहता।।

धन सहित चोर पकड़ने का मंत्र

ॐ ध्रूमाजक हुंकार स्फटिका दह दह ॐ

प्रयोग विधि- मंगलवार या रविवार क दिन कर्मटिका वृक्ष के नीचे मृगासन पर बैठकर गोधूली की लकड़ी जलाएं। सरसों तथा गुग्गल से उपरोक्त मंत्र पढ़ते हुए हवन करने से चोरी किए धन सहित चोर वापस आ जाता है।यह साधको की मान्यता है ..


वशीकरण मंत्र


सबसे पहला मंत्र मोहन और सम्मोहन के सबसे बड़े देवता अर्थात् श्रीकृष्ण का है. मंत्र है-

ॐ क्लीं कृष्णाय नमः

अगर आप किसी व्यक्ति को ध्यान में रखकर और सकंल्प के साथ कहते हैं कि - हे प्रभु! आपकी कृपा से यह व्यक्ति मेरे वश में हो जाये क्योंकि मुझे स्वयं को सही साबित करने का और कोई साधन नही है. ऐसा संकल्प लेकर भगवान श्रीकृष्ण के संमुख कहेंगे तो निश्चित ही आपको लाभ मिलेगा. जिस किसी व्यक्ति को सम्मोहित करना चाहते हैं, अपनी तरफ़ करना चाहते हैं हो जायेगा.

दूसरा मंत्र भगवान नारायण का है-

ॐ नमो नारायणाय सर्व लोकन मम वश्य कुरु कुरु स्वहा.

अर्थात् हे प्रभु नारायण आपकी कृपा से सर्वलोक को वशीकरण करने की शक्ति मुझमे आ जाये. (सर्वलोक की जगह उस व्यक्ति का भी नाम लिया जा सकता है जिसे सम्मोहित करना हो) वह अवश्य आपके प्रति आकर्षित होगा.
तीसरा मंत्र दुर्गासप्तशती से है-

ज्ञानिनामपि चेतान्शी देवी भगवति हि सा

बलादाsकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्क्षति.

इस अत्यधिक चमत्कारिक मंत्र का 40 दिन तक नियमित रुप से 108 बार जाप करना है. यह मंत्र इतना प्रभावशाली है कि इसका जाप होते ही कितना भी ज्ञानी, विद्वान व्यक्ति क्यों न हो आपके नियंत्रण में आ जायेगा.


चौथा भी एक प्रयोग ही है. इसके लिये -

कही भी जाते समय मोर की कलगी पीले रेशमी वस्त्र में बाँधकर अपने साथ रख लें.

इससे सम्मोहन और आकर्षण की शक्ति बढ़ती है. अथवा

श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर माथे पर तिलक लगायें.

इससे भी आपके अन्दर जो सम्मोहन की शक्ति है, उसमे निरन्तर वृद्धि होती है.

पांचवा एक प्रयोग है जिसको करने से केवल एक व्यक्ति ही नही पूरी-पूरी सभा को सम्मोहित किया जा सकता है. इसके लिये आपको करना यह है कि-

तुलसी के चूर्ण में सहदेई के रस को मिलाकर माथे पर तिलक करें.

यदि ऐसा तिलक करके आप किसी सभा अथवा पार्टी में जाते हैं तो सभी आपसे इम्प्रेस रहेंगे. यदि आप किसी एक व्यक्ति को ही आकर्षित करना चाहते हैं तो भी उसके संमुख यही टीका लगाकर जायें. वह अवश्य आपके नियंत्रण में आ जायेगा.
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3>हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है जैसे हनुमान प्रश्नावली चक्र, नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र, राम श्लोकी प्रश्नावली, श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र आदि। इन यंत्रों की सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। इन्ही में से एक श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के बारे में आज आपको बता रहे है।

हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है अर्थात सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले श्रीगणेश की ही पूजा की जाती है। श्रीगणेश की पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के माध्यम से आप अपने जीवन की परेशानियों व सवालों का हल आसानी से पा सकते हैं। यह बहुत ही चमत्कारी यंत्र है।

उपयोग विधि

जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और भगवान श्रीगणेश का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के फलादेश को ही अपने अपने प्रश्न का उत्तर समझें।

1- आप जब भी समय मिले राम नाम का जप करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
2- आप जो कार्य करना चाह रहे हैं, उसमें हानि होने की संभावना है। कोई दूसरा कार्य करने के बारे में विचार           करें। गाय को चारा खिलाएं।
3- आपकी चिंता दूर होने का समय आ गया है। कष्ट मिटेंगे और सफलता मिलेगी। आप रोज पीपल की पूजा            करें।
4- आपको लाभ प्राप्त होगा। परिवार में वृद्धि होगी। सुख संपत्ति प्राप्त होने के योग भी बन रहे हैं। आप कुल              देवता की पूजा करें।
5- आप शनिदेव की आराधना करें। व्यापारिक यात्रा पर जाना पड़े तो घबराएं नहीं। लाभ ही होगा।
6- रोज सुबह भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। महीने के अंत तक आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
7- पैसों की तंगी शीघ्र ही दूर होगी। परिवार में वृद्धि होगी। स्त्री से धन प्राप्त होगा।
8- आपको धन और संतान दोनों की प्राप्ति के योग बन रहे हैं। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से आपको           लाभ होगा।
9- आपकी ग्रह दिशा अनुकूल चल रही है। जो वस्तु आपसे दूर चली गई है वह पुन: प्राप्त होगी।
10- शीघ्र ही आपको कोई प्रसन्नता का समाचार मिलने वाला है। आपकी मनोकामना भी पूरी होगी। प्रतिदिन              पूजन करें।
11- यदि आपको व्यापार में हानि हो रही है तो कोई दूसरा व्यापार करें। पीपल पर रोज जल चढ़ाएं। सफलता             मिलेगी।
12- राज्य की ओर से लाभ मिलेगा। पूर्व दिशा आपके लिए शुभ है। इस दिशा में यात्रा का योग बन सकता है।              मान-सम्मान प्राप्त होगा।
13- कुछ ही दिनों बाद आपका श्रेष्ठ समय आने वाला है। कपड़े का व्यवसाय करेंगे तो बेहतर रहेगा। सब कुछ            अनुकूल रहेगा।
14- जो इच्छा आपके मन में है वह पूरी होगी। राज्य की ओर से लाभ प्राप्ति का योग बन रहा है। मित्र या भाई से          मिलाप होगा।
15- आपके सपने में स्वयं को गांव जाता देंखे तो शुभ समाचार मिलेगा। पुत्र से लाभ मिलेगा। धन प्राप्ति के योग            भी बन रहे हैं।
16- आप देवी मां पूजा करें। मां ही सपने में आकर आपका मार्गदर्शन करेंगी। सफलता मिलेगी।
17- आपको अच्छा समय आ गया है। चिंता दूर होगी। धन एवं सुख प्राप्त होगा।
18- यात्रा पर जा सकते हैं। यात्रा मंगल, सुखद व लाभकारी रहेगी। कुलदेवी का पूजन करें।
19- आपके समस्या दूर होने में अभी करीब डेढ़ साल का समय शेष है। जो कार्य करें माता-पिता से पूछकर करें।         कुल देवता व ब्राह्मण की सेवा करें।
20- शनिवार को शनिदेव का पूजन करें। गुम हुई वस्तु मिल जाएगी। धन संबंधी समस्या भी दूर हो जाएगी।
21- आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। आप श्रीगणेश का पूजन         करें।
22- यदि आपके घर में क्लेश रहता है तो रोज भगवान की पूजा करें तथा माता-पिता की सेवा करें। आपको शांति        का अनुभव होगा।
23- आपकी समस्याएं शीघ्र ही दूर होंगी। आप सिर्फ आपके काम में मन लगाएं और भगवान शंकर की पूजा              करें।
24- आपके ग्रह अनुकूल नहीं है इसलिए आप रोज नवग्रहों की पूजा करें। इससे आपकी समस्याएं कम होंगी              और लाभ मिलेगा।
25- पैसों की तंगी के कारण आपके घर में क्लेश हो रहा है। कुछ दिनों बाद आपकी यह समस्या दूर जाएगी।              आप मां लक्ष्मी का पूजन रोज करें।
26- यदि आपके मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं तो उनका त्याग करें और घर में भगवान सत्यनारायण का            कथा करवाएं। लाभ मिलेगा।
27- आप जो कार्य इस समय कर रहे हैं वह आपके लिए बेहतर नहीं है इसलिए किसी दूसरे कार्य के बारे में                विचार करें। कुलदेवता का पूजन करें।
28- आप पीपल के वृक्ष की पूजा करें व दीपक लगाएं। आपके घर में तनाव नहीं होगा और धन लाभ भी होगा।
29- आप प्रतिदिन भगवान विष्णु, शंकर व ब्रह्मा की पूजा करें। इससे आपको मनचाही सफलता मिलेगी और घर        में सुख-शांति रहेगी।
30- रविवार का व्रत एवं सूर्य पूजा करने से लाभ मिलेगा। व्यापार या नौकरी में थोड़ी सावधानी बरतें। आपको              सफलता मिलेगी।
31- आपको व्यापार में लाभ होगा। घर में खुशहाली का माहौल रहेगा और सबकुछ भी ठीक रहेगा। आप छोटे             बच्चों को मिठाई बांटें।
32- आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं। सब कुछ ठीक हो रहा है। आपकी चिंता दूर होगी। गाय को चारा खिलाएं।
33- माता-पिता की सेवा करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं व भगवान श्रीराम की पूजा करें। आपकी हर अभिलाषा            पूरी होगी।
34- मनोकामनाएं पूरी होंगी। धन-धान्य एवं परिवार में वृद्धि होगी। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।
35- परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है। जो भी करें सोच-समझ कर और अपने बुजुर्गो की राय लेकर ही करें।          आप भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें।
36- आप रोज भगवान श्रीगणेश को दुर्वा चढ़ाएं और पूजन करें। आपकी हर मुश्किल दूर हो जाएंगी। धैर्य बनाएं           रखें।
37- आप जो कार्य कर रहे हैं वह जारी रखें। आगे जाकर आपको इसी में लाभ प्राप्त होगा। भगवान विष्णु का              पूजन करें।
38- लगातार धन हानि से चिंता हो रही है तो घबराइए मत। कुछ ही दिनों में आपके लिए अनुकूल समय आने              वाला है। मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करें।
39- आप भगवान सत्यनारायण की कथा करवाएं तभी आपके कष्टों का निवारण संभव है। आपको सफलता भी          मिलेगी।
40- आपके लिए हनुमानजी का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। खेती और व्यापार में लाभ होगा तथा हर क्षेत्र में सफलता        मिलेगी।
41- आपको धन की प्राप्ति होगी। कुटुंब में वृद्धि होगी एवं चिंताएं दूर होंगी। कुलदेवी का पूजन करें।
42- आपको शीघ्र सफलता मिलने वाली है। माता-पिता व मित्रों का सहयोग मिलेगा। खर्च कम करें और गरीबों            का दान करें।
43- रुका हुआ कार्य पूरा होगा। धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। सोच-समझकर                  फैसला लें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।
44- धार्मिक कार्यों में मन लगाएं तथा प्रतिदिन पूजा करें। इससे आपको लाभ होगा और बिगड़ते काम बन                  जाएंगे।
45- धैर्य बनाएं रखें। बेकार की चिंता में समय न गवाएं। आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। ईश्वर का               चिंतन करें।
46- धार्मिक यात्रा पर जाना पड़ सकता है। इसमें लाभ मिलने की संभावना है। रोज गायत्री मंत्र का जप करें।
47- प्रतिदिन सूर्य को अध्र्य दें और पूजन करें। आपको शत्रुओं का भय नहीं सताएगा। आपकी मनोकामना पूरी            होगी।
48- आप जो कार्य कर रहे हैं वही करते रहें। पुराने मित्रों से मुलाकात होगी जो आपके लिए फायदेमंद रहेगी।               पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
49- अगर आपकी समस्या आर्थिक है तो आप रोज श्रीसूक्त का पाठ करें और लक्ष्मीजी का पूजा करें। आपकी             समस्या दूर होगी।
50- आपका हक आपको जरुर मिलेगा। आप घबराएं नहीं बस मन लगाकर अपना काम करें। रोज पूजा अवश्य         करें।
51- आप जो व्यापार करना चाहते हैं उसी में सफलता मिलेगी। पैसों के लिए कोई गलत कार्य न करें। आप रोज          जरुरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।
52- एक महीने के अंदर ही आपकी मुसीबतें कम हो जाएंगी और सफलता मिलने लगेगी। आप कन्याओं को              भोजन कराएं।
53- यदि आप विदेश जाने के बारे में सोच रहे हैं तो अवश्य जाएं। इसी में आपको सफलता मिलेगी। आप                   श्रीगणेश का आराधना करें।
54- आप जो भी कार्य करें किसी से पुछ कर करें अन्यथा हानि हो सकती है। विपरीत परिस्थिति से घबराएं नहीं।           सफलता अवश्य मिलेगी।
55- आप मंदिर में रोज दीपक जलाएं, इससे आपको लाभ मिलेगा और मनोकामना पूरी होगी।
56- परिजनों की बीमारी के कारण चिंतित हैं तो रोज महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। कुछ ही दिनों में आपकी यह        समस्या दूर हो जाएगी।
57- आपके लिए समय अनुकूल नहीं है। अपने कार्य पर ध्यान दें। प्रमोशन के लिए रोज गाय को रोटी खिलाएं।
58- आपके भाग्य में धन-संपत्ति आदि सभी सुविधाएं हैं। थोड़ा धैर्य रखें व भगवान में आस्था रखकर लक्ष्मीजी को         नारियल चढ़ाएं।
59- जो आप सोच रहे हैं वह काम जरुर पूरा होगा लेकिन इसमें किसी का सहयोग लेना पड़ सकता है। आप              शनिदेव की उपासना करें।
60- आप अपने परिजनों से मनमुटाव न रखें तो ही आपको सफलता मिलेगी। रोज हनुमानजी के मंदिर में                  चौमुखी दीपक लगाएं।
61- यदि आप अपने करियर को लेकर चिंतित हैं तो श्रीगणेश की पूजा करने से आपको लाभ मिलेगा।
62- आप रोज शिवजी के मंदिर में जाकर एक लोटा जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं। आपके रुके हुए काम हो               जाएंगे।
63- आप जिस कार्य के बारे में जानना चाहते हैं वह शुभ नहीं है उसके बारे में सोचना बंद कर दें। नवग्रह की पूजा        करने से आपको सफलता मिलेगी।
64- आप रोज आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। आपकी हर समस्या का निदान स्वत: ही हो                जाएगा।

1 = 2 = 3 = 4 = 5 = 6 = 7 = 8


16= 15= 14 = 13 = 12 = 11 =10 = 9


17 =18 = 19 = 20 = 21 = 22 =23 = 24


32 =31 = 30 = 29 = 28 = 27 =26 = 25


33 =34 = 35 = 36 = 37 = 38 =39 = 40


48 =47 = 46 = 45 = 44 = 43 =42 = 41


49 =50 = 51 = 52 = 53 = 54 =55 = 56


64 =63 = 62 =61 = 60 = 59 =58 = 57
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4>डाकिनी :: एक प्रचंड शक्ति

तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है |सामान्यजन भी इस नाम से परिचित हैं |डाकिनी नाम आते ही एक उग्र स्वरुप की भावना मष्तिष्क में उत्पन्न होती है |अथवा एक भयानक स्वरुप और गुण की महिला की आकृति उभरती है जो पैशाचिक गुण रखती है |वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है अपने सभी रूपों में |डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं |डाकिनी का अर्थ है --ऐसी शक्ति जो "डाक ले जाए "|यह ध्यान रखले लायक है की प्राचीनकाल से और आज भी पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है -चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना |यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी आधार है |
तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है |यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है |डाकिनी पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील शक्तियों में से सर्वाधिक शक्तिशाली एक शक्ति है जबकि काली ब्रह्माण्ड की सर्वाधिक शक्तिशाली शक्तियों में से एक |डाकिनी ,काली का पृथ्वी की सतह पर एक स्वरुप है जो उनकी समस्त उग्रता के साथ उपस्थित है |यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है |यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं ,|इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं |

जिस प्रकार भैरव एक उग्र शक्ति हैं उसी तरह समान ऊर्जा स्त्री रूप में डाकिनी के पास है |यह कहा जाए की यह और अधिक उग्र है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी |इसलिए इसकी साधना की हिम्मत कोई कोई ही साधक जूता पाता है और गलतियों पर अथवा शक्ति सँभालने की क्षमता न होने पर ख़तरा हो जाता है |वैसे भी यह खुद को जल्दी किसी के नियंत्रण में नहीं आने देती और तीब्र प्रतिक्रिया करती है |तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और माना जाता है की यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि आसान हो जाती है और काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि हो जाए तो अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध हो सकते हैं कम प्रयासों में |इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है |

डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है |हमारे अन्दर क्रूरता ,क्रोध ,अतिशय हिंसात्मक भाव ,नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति से अर्थात तरंगों से होती है |डाकिनी की सिद्धि पर व्यक्ति में भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है ,किसी को नियंत्रित करने की क्षमता ,वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है |यह साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी |यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है और स्वरुप उग्र हो सकता है |इस रूप में माधुर्य-कोमलता का अभाव होता है |सिद्धि के समय यह पहले साधक को डराती है ,फिर तरह तरह के मोहक रूपों में भोग के लिए प्रेरित करती है[यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है ,भ्रम उत्पन्न और लालच के लिए ऐसा कर सकती है ] ,इसके भय और प्रलोभन से बच गए तो सिद्ध हो सकती है |मस्तिष्क को शून्यकर इसके भाव में डूबे बिना यह सिद्ध नहीं होती |इसमें और काली में व्यावहारिक अंतर है जबकि यह काली के अंतर्गत ही आती है |इसे जगाना पड़ता है जबकि काली एक जाग्रत देवी हैं |डाकिनी की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्जना होती है |

तंत्र जगत में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है |यह डाकिनी प्रकृति [पृथ्वी] की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है |इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है |यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है |इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है |यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक की राह बेहद आसान हो जाती है ,यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर उसे ख़त्म कर देती है |यह भूत-प्रेत-पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि से उन्नत शक्ति होती है |यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो सकती है |तंत्र कहानियों में इसके किन्ही व्यक्तियों पर आसक्त होने ,विवाह करने और संतान तक उत्पन्न करने की कथाएं मिलती हैं |इसका स्वरुप एक सुन्दर ,गौरवर्णीय ,तीखे नाक नक्श [नाक कुछ लम्बी ]वाली युवती की होती है जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है |काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना ,विचरण और प्रभाव का विवरण मिलता है |इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है ,इसको नष्ट नहीं किया जा सकता ,यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी |इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है यद्यपि स्वयमेव भी प्रतिक्रिया कर सकती है |सामान्यतया यहनदी-सरोवर के किनारों , घाटों ,शमशानों, तंत्र पीठों ,एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर सकती हैं ,जो उजाले की बजाय अँधेरे में होना पसंद करती हैं |इस डाकिनी और मूलाधार की डाकिनी में अंतर होता है |

मूलाधार की डाकिनी व्यक्ति के मूलाधार से जुडी होती है ,कुंडलिनी सुप्त तो वह भी सुप्त |तंत्र मार्ग से कुंडलिनी जगाने की कोसिस पर सबसे पहले इसका ही जागरण होता है |इसकी साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और कुंडलिनी साधना के अलावा भी यह साधित होती है |कुंडलिनी की डाकिनी शक्ति की साधना पर प्रकृति की डाकिनी का आकर्षण हो सकता है और वह उपस्थित हो सकती है, यद्यपि प्रकृति में पाई जाने वाली डाकिनी प्रकृति की स्थायी शक्ति है जिसकी साधना प्रकृति भिन्न होती है किन्तु गुण-भाव समान ही होते हैं |इसमें अनेक मतान्तर हैं की डाकिनी की स्वतंत्र साधना पर काली से सम्बंधित डाकिनी का आगमन होता है अथवा प्रकृति की डाकिनी का ,क्योकि प्रकृति भी तो काली के ही अंतर्गत आता है |वस्तुस्थिति कुछ भी हो किन्तु डाकिनी एक प्रबल शक्ति होती है और यह इतनी सक्षम है की सिद्ध होने पर व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकताएं पूर्ण कर सकती है तथा साधना में सहायक हो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है |
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5> दुःख दारिद्रय निवारक चमत्कारी उपाय ==64 योगिनी तंत्र:-

उपाय के लिए रविपुष्य नक्षत्र (जिस रविवार को पुष्य नक्षत्र हो) चुनिए इस दिन कहीं सिद्ध भैरव जी के मन्दिर से उनके चरणों की कालिमा एकत्र कर लें। इसे स्याही की तरह प्रयोग करना है। एक साफ-सा आयताकार भोजपत्र ले लें। इस पत्र पर यंत्र अंकित करना है। सिरस के वृक्ष की एक लकड़ी से कलम बना लें। यह न मिले तो अनार के वृक्ष की लकड़ी से बना लें।

भोजपत्र पर शतरंज के कोष्ठकों की तरह 64 कोष्ठक बना लें। प्रत्येक कोष्ठक में क्रमशः एक-एक योगिनी का नाम अंकित कर लें। लिखने का क्रम बाएं से दाएं तथा नीचे से ऊपर की ओर रहे, इसका ध्यान रखें। यदि सक्षम हैं तो यह यंत्र तांबे, चांदी अथवा सोने की शीट पर अंकित करवाकर प्राण-प्रतिष्ठा कर लें। 64 योगिनीयों के नाम निम्न प्रकार हैं।

दिव्ययोगिनी, 2. महायोगिनी, 3. सिद्धयोगिनी, 4. गणेश्वरी, 5. प्रेताक्षी, 6. डाकिनी, 7. काली, 8. कालरात्रि, 9. निशाचरी, 10. हुंकारी, 11. रूद्रवैताली, 12. खर्परी, 13. भूतयामिनी, 14. ऊर्ध्वकेशी, 15. विरुपाक्षी, 16. शुष्कांगी, 17. मॉसभोजनी, 18. फेत्कारी, 19. वीरभद्राक्षी, 20. धूम्राक्षी, 21. कलहप्रिया, 22. रक्ता, 23. घाररक्ताक्षी, 24. विरुपाक्षी, 25. भयंकरी, 26. चौरिका, 27. मारिका, 28. चंडी, 29. वाराही, 30. मुंडधारिणी, 31. भैरवी, 32. चक्रिणी, 33. क्रोधा, 34. दुर्मुखी, 35. प्रतवाहिनी, 36. कंटकी, 37. दीर्घलंबौष्ठी, 38. मालिनी, 39. मंत्रयोगिनी, 40. कालाग्रि, 41. मोहिनी, 42. चक्री, 43. कंकाली, 44. भुवनेश्वरी, 45. कुंडलाक्षी, 46. जुही, 47. लक्ष्मी, 48. यमदूती, 49. करालिनी, 50. कौशिकी, 51. भाक्षिणी, 52. यक्षी, 53. कौमारी, 54. यंत्रवाहिनी, 55. विशाला, 56. कामुकी, 57. व्याघ्री, 58. याक्षिणी, 59. प्रेतभूषणी, 60. धूर्जटा, 61. विकटा, 62. घोरा, 63. कपाला, 64. लांगली।

कालरात्रि शुष्कांगी विरुपाक्षी चक्रिणी कालागि यमदूती कामुकी लांगली

काली विरुपाक्षी घाररक्ताक्षी भैरवी मंत्रयोगिनी लक्ष्मी विशाला कपाला

डाकिनी ऊर्ध्वकेशी रक्ता मुंडधारिणी मालिनी जुही यंत्रवाहिनी घोरा

प्रेताक्षी भूतयामिनी कलहप्रिया वाराही दीर्घलंबौष्ठी कुंडलाक्षी कौमारी विकटा

गणेश्वरी खर्परी धूम्राक्षी चंडी कंटकी भुवनेश्वरी यक्षी धूर्जटा

सिद्धयोगिनी रूद्रवैताली वीरभद्राक्षी मारिका प्रतवाहिनी कंकाली भाक्षिणी प्रेतभूषणी

महायोगिनी हुंकारी फेत्कारी चौरिका दुर्मुखी चक्री कौशिकी याक्षिणी

दिव्ययोगिनी निशाचरी मॉसभोजनी भयंकरी क्रोधा मोहिनी करालिनी व्याघ्री

यंत्र के सूखने तक प्रतीक्षा करें। जिस क्रम से नाम अंकित किए थे उसी क्रम से प्रत्येक कोष्ठक में एक चुटकी नागकेसर चढ़ाएं। यथा भक्ति यंत्र की धूप-दीप से पूजा अर्चना करें। अनामिका उंगली का पोर दबाते हुए यह उंगली अब पहले कोष्ठक में रखें तथा इसमें अंकित पहला नाम दिव्ययोगिनी 64 बार ‘‘ॐ दिव्ययोगिनी नमः’’ जपें। दूसरी बार दूसरे कोष्ठक पर उंगली रखकर 64 बार दूसरा नाम महायोगिनी जपें, ‘‘ॐ महायोगिनी नमः’’। इसी प्रकार यंत्र के प्रत्येक कोष्ठक में उंगली रखते हुए वह नाम 64-64 बार जपें। अन्त 11 माला ‘‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री हंसौः चतुःषश्ठियोगिनोभ्यो नमः’’ जप करके यंत्र को ऐसे ही सुरक्षित रख लें। अगले दिन यंत्र बनाने की प्रक्रिया छोड़कर 64 कोष्ठकों में उंगली रखकर 64-64 बार नाम जप करें और अन्त में योगिनी महामंत्र की ग्यारह माला जप करें। यह तांत्रिक अनुष्ठान 64 दिन चलेगा। चौसठवें अर्थात् अन्तिम दिन मंत्र जप के बाद योगिनी महामंत्र की एक माला से हवन करें। हवन सामग्री में कमलगट्टे, गूगल, जौ, बताशे, घृत तथा पंचमेवा अवश्य मिला लें। इन चौसठ दिनों में नित्य गुग्गुल धूनी करें। शान्तिकुज हरिद्वार में गुग्गुल की अगरबत्ती मिलती है यह उपयोग करें तो थोड़ी सुविधा हो जाएगी। अन्तिम दिन एक, दो अथवा अधिक, अपने सामर्थ्य अनुसार सौभाग्यशाली स्त्रीयों को भोजन दक्षिणा से प्रसन्न करके उनका आशीष लें।

यंत्र को सुन्दर सा फ्रेम करवाकर अपने आवास, दुकान फैक्ट्री आदि में उत्तर दिशा वाली दीवार में रख दें अथवा टांग दें। पुष्प की माला सदैव इस यंत्र पर चढ़ी रहे। यंत्र पर चढ़े हुए नागकेसर एक लाल कपड़े में बांधकर यंत्र के पास ही रख लें। सम्भव हो तो नित्य योगिनी महामंत्र की एक माला जप करें।

आप कुछ ही समय में चमत्कारी रुप से अपने तथा अपने आस-पास के वातावरण में परिवर्तन अनुभव करने लगेगें। ऋण का भार, व्यापार अथवा अन्य कार्य का अकस्मात् बाधित हो जाना, धन संपदा के लिए लोगों से बैर, भूमि-भवन आदि के क्रय विक्रय में व्यवधान आदि अनेक बातों से आप अपने मुक्त कर शान्तिमय जीवन जीने लगेंगे।

यह उपाय सरलतम उपायों की श्रंखला में कठिन अवश्य है परन्तु यदि संयम से कर लिया जाए तो बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध होता है। समय के अभाव में जो साधक यह करने में असमर्थ में वह यह यंत्र बनाकर रख लें तथा योगिनी महामंत्र की एक माला नित्य जप करें। पूजा के समय यंत्र को गूगुल की धूनी अवश्य दें। इस सरल उपाय से भी कई लोगों को लाभ पहुचा है। मै बार-बार लिख रहा हॅू कि लाभ के पीछे आपके प्रारब्ध का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
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6>चंडिका प्रयोग

प्रस्तुत साधना तब करे जब जीवन पूरी तरह अस्त व्यस्त हो गया हो.कोई मार्ग नज़र न आ रहा हो.दरिद्रता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हो.क्युकी ये प्रयोग मारण प्रयोग है,अरे नहीं किसी व्यक्ति का नहीं, अपने कष्टो पर भी तो मारण किया जा सकता है न

दरिद्रता,रोग,गृह क्लेश और भी न जाने क्या क्या कष्ट है जीवन में,जो आपको रात दिन तील तील मारते रहते है,इससे पहले कि ये आपको पूरी तरह मारदे आप कर ही दीजिये इन पर चंडिका प्रयोग।

ये प्रयोग तीन दिन का है,किसी भी रविवार या अमावस्या कि रात्रि १२ बजे इसे किया जा सकता सकता है.दक्षिण कि और मुख कर बैठ जाये,आसन वस्त्र लाल हो तथा जाप होगा रुद्राक्ष कि माला से.सामने महाकाली का कोई भी चित्र स्थापित करे लाल वस्त्र पर.माँ का सामान्य पूजन करे,तील के तेल का दीपक हो.भोग में माँ को गूढ़ अर्पण करे.रक्त पुष्पो से पूजन करे.इसके बाद २१ माला आप मंत्र का जाप करे.भोग नित्य स्वयं खा ले.अंतिम दिन जाप के बाद घी में कालीमिर्च तथा काले तील मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे,तथा अंत में एक निम्बू पर मंत्र को २१ बार पड़कर फुक मार दे.और मंत्र पड़ते हुए ही निम्बू अग्नि कुंड में डाल दे.नित्य पूजन के बाद भी स्नान कर लिया करे.

मंत्र: क्रीं ह्रीं क्रीं महाकाली चण्डिके आपदउद्दारिणी अनंगमालिनि सर्वोपद्रव नाशिनी क्रीं ह्रीं क्रीं फट।

मित्रो इस प्रकार ये प्रयोग पूर्ण होता है,जो आपके जीवन से समस्त शोक दुःख आदि को दूर कर देगा।
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7>तंत्र, मंत्र, यंत्र और योग साधना का लाभ..

हिंदू धर्म में हजारों तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है। साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना
चाहता है, क्योंकि या तो वह उससे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ।
मूलत:---------
साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं- तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना। तीनों ही तरह की साधना के कई उप प्रकार हैं। आओ जानते हैं साधना के तरीके और उनसे प्राप्त होने वाला लाभ...

  तांत्रिक साधना...

तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।

तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है-

एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।

शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥

अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।

इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-

मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥

मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।
रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।

जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।

मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है। मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है। मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र।

मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।


वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।

मंत्र नियम :

मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।

किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।

यंत्र साधना सबसे सरल है। बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखें लोग तो अपने आप कार्य सफल होते जाएंगे। यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं।

यं‍त्र को दो प्रकार से बनाया जाता है- अंक द्वारा और मंत्र द्वारा। यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं। श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं।

इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनाई जाती हैं। इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है। इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है।

यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाए जाते हैं।

दिशा- प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं। धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं। वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं। इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है।

सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गई है योग साधना। यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है। इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं। योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'।

मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है। इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है। उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं।

योग साधना द्वार अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है।

जानिए... योग साधना की सात बाधाएं

योग साधना की सात बाधा

योग एक ‍कठिन साधना है। इसका अभ्यास किसी गुरु के सानिध्य में रहकर ही किया जाता है। विभिन्न योगाचार्यों अनुसार अभ्यास के समय कुछ आदतें साधक के समक्ष बाधाएँ उपस्थित कर सकती हैं, जिससे हठ योग साधना में विघ्न उत्पन्न होता हैं। ये आदतें निम्न हैं:- अधिक आहार, अधिक प्रयास, दिखावा, नियम विरुद्ध, लोक-संपर्क तथा चंचलता।

1.अधिक आहार : अधिक आहार की आदत योग में बाधा उत्पन्न करती है। डटकर भोजन करने वाले आलस्य, निद्रा, मोटापा आदि के शिकार बन जाते हैं। यौगिक आहार नियम को जानकर ही आहार करें। आहार संयम होना आवश्यक है।
2.अधिक प्रयास : कुछ अभ्यास ठीक से नहीं हो पाते तब साधक जोर लगाकर अधिक प्रयास से अभ्यास को साधना चाहता है, यह आदत घातक है। शरीर और मन की क्षमता को ध्यान में रखते हुए अपनी ओर से कभी अधिक प्रयास नहीं करना चाहिए।
3.दिखावापन : इसे योगाचार्य प्रजल्प भी कहते हैं। कुछ लोग अपने अभ्यासों के संबंध में लोगों के समक्ष बढ़ा-चढ़ाकर बखान करते हैं। बहुत से अपने अभ्यास की थोड़ी बहुत सफलता का प्रदर्शन भी करते हैं। यही दिखावेपन की आदत योगी को योग से दूर कर देती है। अतः जो भी अभ्यास करें, उसकी चर्चा, जहाँ तक हो सके दूसरों से खासकर अनधिकारी व्यक्तियों से कभी न करें।
4.नियम विरुद्ध : योग के नियम के विरुद्ध है मन से नियम बनाना, इसे नियमाग्रह कहते हैं। बहुत से लोग कुछ खास नियम बना लेते हैं और आग्रह रखते हैं कि उसी के अनुसार चलेंगे। एक अर्थ में यह ठीक है और ऐसा करना भी चाहिए। किन्तु कभी-कभी यह विघ्नकारक भी हो जाता है।

उदाहरणार्थ-

जैसे खाने के नियम बना लेते हैं कि एक फल ही खाऊँगा या सप्ताह में तीन दिन ही खाऊँगा। अभ्यास के नियम कि स्नान के बाद ही अभ्यास करेंगे या सुबह ही करेंगे या किसी खास स्थान में ही करेंगे। बुखार होगा तब भी अभ्यास नहीं छोड़ेगे। इस तरह मनमाने नियम से शरीर और मन को कष्ट होता है जबकि योग कहता है कि मध्यम मार्ग का अनुसरण करो। नियम हो लेकिन सख्‍त न हो। नियमों में लचीलापन बना रहना चाहिए।

5.जन-संपर्क : योग का अभ्यास करने वाले को अधिक जन-संपर्क में नहीं रहना चाहिए। उसे बहस, वाद-विवाद, सांसारिक चर्चा से दूर रहना चाहिए। अधिक जन संपर्क या संग से खानपान की बुरी आदतें भी बनने लगती हैं। अतः जहाँ तक संभव हो लोगों से कम संपर्क रखें।
6.चंचलता : कभी यहाँ, कभी वहाँ, कभी कुछ, कभी कुछ, यह शरीर की चंचल प्रवृत्ति ठीक नहीं होती। शारीरिक चंचलता से मन की चंचलता या मन की चंचलता से शारीरिक चंचलता उत्पन्न होती है। अतः शरीर को भी स्थिर रखें, अधिक दौड़धूप न करें और मन को भी शांत व स्थिर रखें। अधिक इधर-उधर की न सोचें।

7.संकल्प और धैर्य : संकल्पवान और धैर्यशील व्यक्ति ही योग में सफल हो सकता। संकल्प और धैर्य के अभाव में योग ही नहीं किसी भी विद्या या कार्य में सफलता अर्जित नहीं की जा सकती। संकल्प और धैर्यशीलता से ही सभी तरह की बाधाओं को पार किया जा सकता है अत: संकल्प और धीरज का होना बहुत जरूरी है।

इस प्रकार उपर्युक्त यह सात विघ्नकारक तत्व हैं, जिनसे योगाभ्यास में बाधा उत्पन्न होती है। सच्चा साधक इन विघ्नों से सदा दूर रहकर और अपनी आदतों में सुधार कर अपने योगाभ्यास को सफल बनाता है।
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8>काले जादू और बुरी नजर से बचाती है ये साधारण लगने वाली चीजे

कालेजादू और बुरी दृष्टि से बचाने के लिए वास्तुशास्त्र में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ने के लिए या किसी भी प्रकार के वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर की छत पर उत्तर पूर्व दिशा में पांच तुलसी का पौधा लगाना चाहिए। पांच नहीं तो कम से कम एक तुलसी का पौधा इस दिशा में जरुर लगाएं। इससे घर में आने वाले नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है। वास्तुविज्ञान में बताया गया है बाहर से घर में आने वाले लोग भी कई बार नकारात्मक उर्जा लेकर आते हैं। जिनके घर के मुख्य द्वार पर तुलसी का पौधा होता है उनके घर में इस तरह के नकारात्मक उर्जा का प्रवेश नहीं हो पाता है।

सूरज भगवन की तस्वीर भी शुभ फलदायी होती होती है, पर इन्हे के घर में कहीं भी लगाने से आपके शुभ फल नहीं मिलता है। घोड़े की तस्वीर लगाने के लिए पूर्व दिशा को शुभ माना गया है। सूर्यदेव पूर्व दिशा से उदित होते हैं और उनके रथ में सात अश्व माने गए हैं। माना जाता है कि ऐसी तस्वीरों से घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है जो लोगों को स्वस्थ और उर्जावान बनाए रखता है। ऐसी तस्वीरों को उन्नति और सफलता का भी प्रतीक माना गया है।

मेहमानो को जिस कमरे में बिठाते है वंहा श्री कृष्ण की बाललीलाओं वाली तस्वीर और अपने गुरु या किसी महापुरुष जिनसे आपको प्रेरणा मिलती हो उनकी तस्वीर लगाना चाहिए। ऐसी तस्वीरों से आपको सकारात्मक उर्जा का लाभ मिलता है। वास्तु सिद्घांत के अनुसार घर के अग्नेय कोण यानी (दक्षिण पूर्व) हिस्से में हवन की तस्वीर लगानी चाहिए। लेकिन अगर आपके घर में शयन कक्ष आग्नेय कोण में है तब इस तस्वीर की बजाय समुद्र की तस्वीर लगाएं। लेकिन ध्यान रखें समुद्र शांत हो।
वास्तु विज्ञान में शंख का बड़ा महत्व बताया गया है। घर में जब भी विशेष पूजा जैसे होली दिवाली, रामनवमी, कृष्णजन्माष्टमी, नवरात्रे के दिन शंख को पूजा स्थल में रखकर इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर में वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है। शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। अगर संभव हो तो शाम ढ़लने से पहले और सूर्योदय के समय शंख बजाएं इससे घर और आपके आस-पास का वातावरण शुद्घ और उर्जावान बना रहता है।

घर के बहार नकारात्मक उर्जा और वास्तुदोष से मुक्त रखने के लिए मुख्य द्वार पर स्वास्तिक या ओम लगाना चाहिए। गणेश जी की मूर्ति पर मुख्य द्वार पर लगाई जाती है लेकिन गणेश जी की मूर्ति लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी का मुख घर के अंदर की तरफ हो।

जिन घर में रसोई घर दक्षिण पूर्व में नहीं हो तब वास्तुदोष को दूर करने के लिए रसोई के उत्तर पूर्व यानी ईशान कोण में सिंदूरी गणेश जी की तस्वीर लगानी चाहिए।
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9>गुंजा=श्वेत कुच, लाल कुच

गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है

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१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रुभी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.
२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.
३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.
४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.
काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
रक्तगुंजा: गुंजा का बीज होता है, जो लाल रंग का होता है। इस पर काले रंग का छोटा सा बिंदू बना होता है। लक्ष्मी की प्राप्ति व उसे चिरकाल तक स्थिर रखने हेतु गुंजा का प्रयोग किया जाता है। तंत्रशास्त्र में इसका कई रूपों में प्रयोग होता है।

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गुंजा

गुंजा की लता पर लगी फली में बीज

गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है।

गुंजा गुंजा दो प्रकार की होती है।विभिन्न भाषाओं में नामअंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद

हानिकारक प्रभाव

पाश्चात्य मतानुसार गुंजा के फलों के सेवन से कोई हानि नहीं होती है। परन्तु क्षत पर लगाने से विधिवत कार्य करती है। सुश्रुत के मत से इसकी मूल गणना है।

गुंजा को आंख में डालने से आंखों में जलन और पलकों में सूजन हो जाती है।

गुण

दोनों गुंजा, वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), बलवर्द्धक (ताकत बढ़ाने वाला), ज्वर, वात, पित्त, मुख शोष, श्वास, तृषा, आंखों के रोग, खुजली, पेट के कीड़े, कुष्ट (कोढ़) रोग को नष्ट करने वाली तथा बालों के लिए लाभकारी होती है। ये अन्यंत मधूर, पुष्टिकारक, भारी, कड़वी, वातनाशक बलदायक तथा रुधिर विकारनाशक होता है। इसके बीज वातनाशक और अति बाजीकरण होते हैं। गुन्जा से वासिकर्न भि कर सक्ते ही ग्न्जा

अंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद============================================================

चमत्कारी तंत्र वनस्पति गुंजा

चमत्कारी है गुंजा
तांत्रिक जड़ीबूटियां भाग -9

गुंजा एक फली का बीज है। इसको धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसकी बेल काफी कुछ मटर की तरह ही लगती है किन्तु अपेक्षाकृत मजबूत काष्ठीय तने वाली। इसे अब भी कहीं कहीं आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक सुनार इसे सोना तोलने के काम में लेते थे क्योंकि इनके प्रत्येक दाने का वजन लगभग बराबर होता है करीब 120 मिलीग्राम। ये हमारे जीवन में कितनी बसी है इसका अंदाज़ा मुहावरों और लोकोक्तियों में इसके प्रयोग से लग जाता है।

यह तंत्र शास्त्र में जितनी मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी। आयुर्वेद में श्वेत गूंजा का ही अधिक प्रयोग होता है औषध रूप में साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है। इसीकारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं।

वहीं रक्त गूंजा बेहद विषैली होती है और उसे खाने से उलटी दस्त पेट में मरोड़ और मृत्यु तक सम्भव है। आदिवासी क्षेत्रों में पशु पक्षी मारने और जंगम विष निर्माण में अब भी इसका प्रयोग होता है।

गुंजा की तीन प्रजातियां मिलती हैं:-

1• रक्त गुंजा: लाल काले रंग की ये प्रजाति भी तीन तरह की मिलती है जिसमे लाल और काले रंगों का अनुपात 10%, 25% और 50% तक भी मिलता है।

ये मुख्यतः तंत्र में ही प्रयोग होती है।

श्वेत गुंजा • श्वेत गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है। यह आयुर्वेद और तंत्र दोनों में ही सामान रूप से प्रयुक्त होती है। ये लाल की अपेक्षा दुर्लभ होती है।

काली गुंजा: काली गुंजा दुर्लभ होती है, आयुर्वेद में भी इसके प्रयोग लगभग नहीं हैं हाँ किन्तु तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण है।

इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा पायी जाती है पीली गुंजा ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों में कुछ आनुवंशिक विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं। इस कारण पीली गूंजा कभी पूर्ण पीली तो कभी कभी लालिमा या कालिमा मिश्रित पीली भी मिलती है।

इस चमत्कारी वनस्पति गुंजा के कुछ प्रयोग:-

1• सम्मान प्रदायक :

शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा।

2• कारोबार में बरकत

किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार के दिन 1 तांबे का सिक्का, 6 लाल गुंजा लाल कपड़े में बांधकर प्रात: 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच में किसी सुनसान जगह में अपने ऊपर से 11 बार उसार कर 11 इंच गहरा गङ्ढा खोदकर उसमें दबा दें। ऐसा 11 बुधवार करें। दबाने वाली जगह हमेशा नई होनी चाहिए। इस प्रयोग से कारोबार में बरकत होगी, घर में धन रूकेगा।

3"• ज्ञान-बुद्धि वर्धक :

(क) गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है।

(ख) यदि सफेद गुंजा के 11 या 21 दाने अभिमंत्रित करके विद्यार्थियों के कक्ष में उत्तर पूर्व में रख दिया जाये तो एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति में लाभ होता है।

4• वर-वधू के लिए :

विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है।

5• पुत्रदाता :

शुभ मुहुर्त में श्वेत गुंजा की जड़ लाकर दूध से धोकर, सफेद चन्दन पुष्प से पूजा करके सफेद धागे में पिरोकर। “ऐं क्षं यं दं” मंत्र के ग्यारह हजार जाप करके स्त्री या पुरूष धारण करे तो संतान सुख की प्राप्ती होती है।

6• वशीकरण -

(क) आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.

(ख) गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.

( गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.

7• विद्वेषण में प्रयोग :

किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है।

8• विष-निवारण :
गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये। यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें।

इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।

9• दिव्य दृष्टि :-

(क) अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :

भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं।

(ख) गुप्त धन दर्शन :

अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।

10• शत्रु में भय उत्पन्न :

गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।

11• शत्रु दमन प्रयोग :

यदि लड़ाई झगड़े की नौबत हो तो काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा। फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा।

12• रोग - बाधा

(क) कुष्ठ निवारण प्रयोग :

गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।

(ख)अंधापन समाप्त :

गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं।नेत्रों की सफाई होती है आँखों का जाल कटता है।

देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।

(ग) वाजीकरण:

श्वेत गुंजा की जड को गाय के शुद्ध घृत में पीसकर लेप तैयार करें। यह लेप शिश्न पर मलने से कामशक्ति की वृद्धि के साथ स्तंभन शक्ति में भी वृद्धि होती है।

13: नौकरी में बाधा
राहु के प्रभाव के कारण व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो लाल गुंजा व सौंफ को लाल वस्त्र में बांधकर अपने कमरे में रखें।

**दुर्लभ काली गुंजा के कुछ प्रयोग:

1• काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।

2• दिवाली के दिन अपने गल्‍ले के नीचे काली गुंजा जंगली बेल के दाने डालने से व्‍यवसाय में हो रही हानि रूक जाती है।

3• दिवाली की रात घर के मुख्‍य दरवाज़े पर सरसों के तेल का दीपक जला कर उसमें काली गुंजा के 2-4 दाने डाल दें। ऐसा करने पर घर सुरक्षित और समृद्ध रहता है।

4• होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।

5• घर से अलक्ष्मी दूर करने का लघु प्रयोग-

ध्यानमंत्र :

ॐ तप्त-स्वर्णनिभांशशांक-मुकुटा रत्नप्रभा-भासुरीं ।
नानावस्त्र-विभूषितां त्रिनयनां गौरी-रमाभ्यं युताम् ।
दर्वी-हाटक-भाजनं च दधतीं रम्योच्चपीनस्तनीम् ।
नित्यं तां शिवमाकलय्य मुदितां ध्याये अन्नपूर्णश्वरीम् ॥

मन्त्र :

ॐ ह्रीम् श्रीम् क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि मामाभिमतमन्नं देहि-देहि अन्नपूर्णों स्वाहा ।


विधि :

जब रविवार या गुरुवार को पुष्प नक्षत्र हो या नवरात्र में अष्टमी के दिन या दीपावली की रात्रि या अन्य किसी शुभ दिन से इस मंत्र की एक माला रुद्राक्ष माला से नित्य जाप करें । जाप से पूर्व भगवान श्रीगणेश जी का ध्यान करें तथा भगवान शिव का ध्यान कर नीचे दिये ध्यान मंत्र से माता अन्नपूर्णा का ध्यान करें ।

इस मंत्र का जाप दुकान में गल्ले में सात काली गुंजा के दाने रखकर शुद्ध आसन, (कम्बल आसन, या साफ जाजीम आदि ) पर बैठकर किया जाए तो व्यापार में आश्चर्यजनक लाभ महसूस होने गेगा ।

6• कष्टों से छुटकारे हेतु

यदि संपूर्ण दवाओं एवं डाक्टर के इलाज के बावजूद भी यदि घुटनों और पैरों का दर्द दूर नहीं हो रहा हो तो रवि पुष्य नक्षत्र, शनिवार या शनि आमवस्या के दिन यह उपाय करें। प्रात:काल नित्यक्रम से निवृत हो स्नानोपरांत लोहे की कटोरी में श्रद्धानुसार सरसों का तेल भरें। 7 चुटकी काले तिल, 7 लोहे की कील और 7 लाल और 7 काली गुंजा उसमें डाल दें। तेल में अपना मुंह देखने के बाद अपने ऊपर से 7 बार उल्टा उसारकर पीपल के पेड़ के नीचे इस तेल का दीपक जला दें 21 परिक्रमा करें और वहीं बैठकर 108 बार

ऊँ शं विधिरुपाय नम:।।

इस मंत्र का जाप करें। ऐसा 11 शनिवार करें। कष्टों से छुटकारा मिलेगा।


पीली गुंजा:

1• पीले रंग की गुंजा के बीज ,हल्दी की गांठे, सात कौडियों की पूजा अर्चना करके श्री लक्ष्मीनारायण भगवान के मंत्रों से अभिमंत्रित करके पूजा स्थान में रखने से दाम्पत्य सुख एवं परिवार,मे एकता तथा आर्थिक व्यावसायिक सिद्धि मिलती है

2• इसकी माला या ब्रेसलेट धारण करने से व्यक्ति का चित्त शांत रहता है, तनाव से मुक्ति मिलती है।
3• पीत गुंजा की माला गुरु गृह को अनुकूल करती है।
4• अनिद्रा से पीड़ित लोगों को इसकी माला धारण करने से लाभ मिलता है।
5• बड़ी उम्र के जो लोग स्वप्न में डरते हैं या जिन्हें अक्सर ये लगता है की कोई उनका गला दबा रहा है उन्हें इसकी माला या ब्रेसलेट पहनना चाहिए।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
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क्या आप जानते है बड़े काम की और चमत्कारी होती है गूंजा


गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है

इसको चिरमिटी, धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसे आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। इसका वजन एक रत्ती होता है, जो सोना तोलने के काम आती है। यह तीन रंगों में मिलती है। सफेद गुंजा का प्रयोग तंत्र तथा उपचार में होता है, न मिलने पर लाल गुंजा भी प्रयोग में ली जा सकती है। परंतु काली गुंजा दुर्लभ होती है।

गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है -

वर-वधू के लिए : विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है। भगवान श्री कृष्ण भी गुंजामाला धारण करते थे। पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ करती है।


विद्वेषण में प्रयोग :

किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है। विष-निवारण : गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये।

यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें। इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।

सम्मान प्रदायक :

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शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा। पुत्रदाता : पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ प्राप्त करती है। शत्रु में भय उत्पन्न : गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।

अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :

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भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं। ज्ञान-


बुद्धि वर्धक :

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गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है। गुप्त धन दर्शन : अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।

शत्रु दमन प्रयोग : काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा। फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा। कुष्ठ निवारण प्रयोग : गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।

अंधापन समाप्त : गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं। देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।

१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.

२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.

३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.

४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.

काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
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रक्त गुंजा

रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो, कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता…

गुंजा एक प्रकार का लाल रंग का बीज है जो देखने में बहुत सुंदर लगता है। इसके ऊपरी हिस्से पर छोटा सा काला बिंदु होता है। इसकी बेल जंगलों में वृक्षों पर लिपटी पाई जाती है। इसे रत्ती भी कहते हैं और किसी जमाने में इससे सोने की तौल की जाती थी। गुंजा का एक और प्रचलित नाम घुंघची है। यह दो प्रकार की होती है रक्तगुंजा और श्वेत गुंजा। इसके तांत्रिक प्रयोग निम्न हैं-

1-बकरी के दूध में गुंजा मूल को घिस कर हथेलियों पर रगड़ने से बुद्धि का विकास होता है। मेधा,चिंतन, धारणा, विवेक तथा स्मृति की प्रखरता के लिए यह प्रयोग उत्तम होता है।

2-रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो , कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता।

3- इसकी जड़ को घिस कर माथे पर तिलक की तरह लगाने से मनुष्य में सम्मोहक शक्ति आ जाती है और हर व्यक्ति उसकी बात मानने को तैयार हो जाता है।

4-कहते हैं कि गुंजा की जड़ को बेल पत्र के साथ घिस कर काजल की तरह लगाने से पिछले जीवन की घटनाएं याद आ जाती हैं।

इसकी जड़ को गाय के दूध में पीस कर शरीर पर लेपन करने से कोई भी तांत्रिक साधना सफल होती है यहां तक कि कभी-कभी अशरीरी आत्माएं भी वश में हो जाती हैं जो हमेशा साधक की सहायता करती हैं और उसे छोड़ कर कहीं नहीं जातीं।

श्वेत गुंजा के तांत्रिक प्रयोग

जिस दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी हो उस दिन निम्न मंत्र पढ़ते हुए जंगल से श्वेत गुंजा की फली और वहीं से मिट्टी खोद कर लावे और अपने बगीचे में बो दे ।

मंत्र-ऊँ श्वेतवर्णे सितपर्वतवसिनि अप्रतिहते मम कार्य कुरु ठःठःस्वाहा।

फली लाने और उसे बोते समय यही मंत्र पढें़। फिर प्रति दिन सायंकाल उसमें पानी डालते रहें और इस मंत्र का जप करते रहें।

ऊँ सितवर्णे श्वेतपर्वतवासिनि सर्व कार्याणि कुरु कुरु अप्रतिहते नमो नमः।

गुंजा के बीजों को किसी वृक्ष के समीप बोना चाहिए तकि वह लता उसका सहारा लेकर चढ़ सके। जब लता बड़ी हो जाए तो उसी वृक्ष के नीचे बैठ कर अंगन्यास करें और उसकी पंचोपचार पूजा कर निम्न मंत्र की 21 माला जाप करें।

ऊँ श्वेत वर्णे पद्म मुखे सर्व ज्ञानमये सर्व शक्तिमिति सितपर्वतवासिनि भगवति हृं मम कार्य कुरु कुरु ठःठःनमः स्वाहा।

किसी भी कामना की पूर्ति के लिए संकल्प ले कर मंत्र जप करने पर कामना पूर्ण होती है।

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वे विशेष उपाय हैं जिन्हें आप केवल दीवाली के दिन ही कर सकते हैं और पूरे वर्ष उनका असर बना रहता है। ये बहुत ही सस्ते और आसान हैं और असरदार इतने मानो चमत्कारी हों।
बुरी बलाओं से बचने के लिए
लगभग 100 ग्राम रत्ती या गुंजा या घुंघुची के दाने लें जो लाल रंग के हों। इन दानों को तांबे की कटोरी में रखें। फिर शनि के मंत्र की 11 मालाएं जपें। जप का समय है 23.29 से 1.51 तक। रात का जप ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। यह जप पूर्ण समर्पण के साथ हो। यह आप के पास एक ऐसी औषधि तैयार हो गई जो आपको इन बातों में मदद करेगी-
ल्ल गुप्त शत्रु की चालों को समाप्त कर देगी।
ल्ल बच्चों को नजर दोष होने पर इसे काले कपड़े में बांधकर उनके गले में पहनाएं।
ल्ल यदि घर में गरीबी अचानक आई हो या संतान गर्भ में ही प्राण त्याग देती हो, तो इसके कुछ दाने अपने घर के कोनों में बिखरा दें।
ल्ल यदि आपने कोई नया घर लिया है जहां आपका मन उखड़ने लगा है या आपका मन अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान से उखड़ रहा है, तो वहां इन दानों को पूजा स्थान में रखें।
अच्छी पढ़ाई व नौकरी में सफलता
दीवाली के दिन शाम 6.14 बजे से लेकर रात 8 बजे के बीच दूब घास, गुंजा तथा शमी अथवा पीपल की छोटी सी लकड़ी लेकर एक तांबे के बर्तन में रखें, फिर गणेश जी की पूजा करें। इसे सदैव पूजा में ही रहने दें। जो लोग पढ़ाई या नौकरी में बहुत संघर्ष कर रहे हैं उन्हें सफलता मिलेगी। इसे अपने बैग या पढ़ने की मेज या कार्य करने वाली मेज पर भी रख सकते हैं।
घबराहट व सिरदर्द की समस्या है तो
इस यंत्र को सादे कागज पर हल्दी का रंग बनाकर लिखें। लिखते समय 'ॐ' का जाप करते रहें। ऐसे कई सारे यंत्र बनाकर रख लें।
जब भी सिरदर्द, घबराहट या तनाव हो, तो इसे सिर पर बांधकर सो जाएं।
संपत्ति प्राप्ति के लिए
अनंतमूल की जड़ लें। उसे 'ॐ अं अंगारकाये नम:' की 11 मालाओं से सिद्ध करें। फिर उसे गले में पहनें। संपत्ति की समस्याएं समाप्त होंगी।
दुर्घटनाओं से बचने के लिए
अनंतमूल की जड़ तथा साबूत सुपारी लें। उसे महामृत्युंजय मंत्र की 11 मालाओं से सिद्ध करें। फिर उसे गले मे पहनें। यदि मारकेश भी लगा हो तो भी अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है, इसे घर में कोई भी व्यक्ति परेशानी या मारकेश के संकट के समय पहन सकता है। इसे उस व्यक्ति को भी जरूर पहनना चाहिए जिसके चोटें बहुत लगती हों।
धन प्राप्ति के लिए
ल्ल काली व सफेद गुंजा के दाने पूजा में रखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें । इसे तीन बार लगातार करना होता है, इन दानों को हमेशा संभाल कर रखें।
ल्ल काली व सफेद गुंजा के दाने पूजा में रखकर 11 मालाएं ' ऊं श्रीं नम:' की जपें।
ल्ल एक और मंत्र देखें
ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं क्लीं ॐ वित्तेश्वराय नम:।
शिवजी के सम्मुख बैठकर इस मंत्र का जप सवा लाख बार करें और इस मंत्र को रात 11.39 से 12.30 के बीच में प्रारम्भ करके सवा लाख जाप पूरे होने तक करें, जिसमें कई दिन लगेंगे, पर गरीबी मिटाने में इस मंत्र का जवाब नहीं।
ल्ल बेलपत्र या अशोक या आक या बरगद के 11 पत्तों पर सिंदूर और हल्दी मिलाकर उस पर 'पं दं लं' लिखकर बहते जल में प्रवाहित करें। इसे शाम 6.56 से लेकर 8.13 बजे के बीच करें। ल्ल 

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गुंजा 'रत्ती' सात सौ रुपए किलो, ढूंढ़ रहे व्यापारीUpdated: Tue, 09 Dec 2014 03:01 AM (IST)


0 जिले में अपने आप उगने वाली उपेक्षित सबसे महंगा बीज

विश्वबंधु शर्मा/ सजन बंजारा-जशपुर/कोतबा (निप्र)। जिले में गुंजा जिसे रत्ती भी कहा जाता है, सबसे दुर्लभ वनस्पतियों के नाम के साथ ही सबसे महंगे बीज के रूप में सामने आया है। इस बीज को लेकर पहली बार चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस बीज को व्यापारी सात सौ रुपए किलो तक खरीदने को तैयार हैं और व्यापारी इस बीज को एडवांस में पैसे देकर भी खरीद रहे हैं।

गुंजा जिसे जिले में गूंज के नाम से लोग जानते हैं। नगरीय क्षेत्र के अधिकांश लोग गुंजा के बारे में जानकारी नहीं रखते, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में गुंजा ग्रामीणों के आय का महत्वपूर्ण हिस्सा बनते जा रहा है। जिले में गुंजा की बिक्री ऊंची कीमतों पर खरीदी जा रही है। गुंजा को मुख्य रूप से तीन प्रजातियों के लिए जाना जाता है, जिसका रंग सफेद, लाल-काला और भूरा रंग से है। सबसे ऊंची कीमत सफेद गुंजा की है, जिसके संकलनकर्ताओं को सात सौ रुपए किलो मिल रहे हैं। गुंजा की तीन प्रजातियां जिले में उपलब्ध हैं, जिसकी अलग-अलग कीमत है। सबसे अधिक कीमत सफेद गुंजा के बीज की है, जिसकी कीमत सात सौ रुपए है। प्रतिस्पर्धा में इसकी कीमत अधिक भी होती है। लाल रंग के गुंज की कीमत 70 रुपए किलो है। तीसरी प्रजाति कुछ काली और भूरे रंग लिए होती है उसकी कीमत तीन सौ रुपए किलो है। स्थानीय व्यापारी विजय ने बताया कि वे 10 साल से खरीदी कर बाहर के व्यापारियों को गुंजा बेच रहे हैं, लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि इसका उपयोग क्या है। उन्होंने बताया कि एक बात विचारणीय है कि इसके संकलन और बिक्री करने वाले परंपरागत रूप से ही लगे हैं।

दिसंबर माह में सबसे अधिक व्यवसाय

नवंबर और दिसंबर माह में बीज निकलते हैं और यही समय होता है, जब संकलनकर्ता इस बीज से आय अर्जित करते हैं। बड़े व्यापारियों को जब बीज के कीमत की जानकारी मिल रही है तो कई व्यापारी इस व्यवसाय में खुद को जोड़ने में लगे हैं और स्थिति यह है कि कोतबा, फरसाबहार ब्लाक, पत्थलगांव ब्लाक में व्यापारी ग्रामीणों को एडवांस के रूप में भी पैसे दे रहे हैं, जिससे संग्रहण उनकों मिले। पंड्रीपानी क्षेत्र की स्थिति यह है कि कई किसान अब इसके बीज को लगाने भी लगे हैं। किसान अपने खेतों व आसपास की झाड़ियों के नीचे इसके बीज को लगा रहे हैं। सवाल यह है कि इस बीज का व्यवसाय गुपचुप तरीके से ही क्यों हो रहा है। इस बात को लेकर कई सवाल भी सामने आते हैं, लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि दवाओं के रूप में ही इसका उपयोग होता है, जिसके कारण यह कीमती है। अधिकांश व्यापारियों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि यह कहां जाता है और एक के बाद एक व्यापारियों को यह बीज बेचे जा रहे हैं।

क्या है गुंजा

गुंजा को जिले के पत्थलगांव, फरसाबहार विकासखंड सहित अन्य क्षेत्र में गूंज के नाम से जाना जाता है। मुख्य रूप से इसके क्षेत्रीय व्यापारियों के साथ पत्थलगांव, धरमजयगढ़ व रायगड़ जिले में अधिक व्यापारी हैं। लता जाति की यह वनस्पति है, जिसमें फलियां होती हैं और पकने के बाद फलियां स्वयं फट जाती हैं, जिससे गुंजा का बीज निकलता है और यह बीज काफी कीमती हो रहा है, जिसका कारण इसकी दुर्लभता है। अंग्रेजी नाम कोरल बीड है। हिंदी में इसे गुंजा, चौटली, घुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसके संस्कृत नाम भी कई हैं, जिससे इसकी पौराणिकता भी स्पष्ट होती है। कुछ राज्यों में राज्य की भाषाओं में अलग-अलग नामों से भी यह प्रचलित है। वहीं फारसी में गुंजा को चश्मेखरूस और अरबी में हबसुफेद कहा जाता है। जिले में यह सड़कों के किनारे, निर्गुंडी के पौधों सहित अन्य पौधों और झाड़ियों में लताओं में स्वयं बढ़ता है।

औषधि निर्माण में होता है उपयोग

वनस्पतियों एंव आयर्ुेवेद के जानकार भूपेंद्र थवाईत ने बताया कि आयुर्वेद में गुंजा का विशेष महत्व है और पेट से संबंधित रोगों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। यह क्षेत्र में अत्यंत दुर्लभ वनस्पतियों में है और विशेष क्षेत्र में होने के कारण ही इसकी ऊंची कीमत है। उन्होंने बताया कि इसके जड़ और पत्तों का भी विशेष महत्व होता है और पत्ते और जड़ भी ऊंचे दामों मे बिकते हैं। पत्थलगांव के व्यापारी मो. हनीफ मेमन ने बताया कि छग में इसके उपयोग संबंधी जानकारी नहीं के बराबर है, लेकिन इसकी दिल्ली व महानगरों में अधिक मांग होती है। सबसे अधिक उपयोग गुंजा का हाजमे की दवा बनाने में किया जाता है और आयुर्वेद की दवा बनाने वाली कंपनियां इसे ऊंची कीमतों में खरीदते हैं।
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