Friday, March 25, 2016

3>गोरखनाथ ने किया तंत्र विद्या का दुरूपयोग

3>|| तंत्र-मंत्र का रहस्य***( 1 to 7 )

1>गोरखनाथ ने किया तंत्र विद्या का दुरूपयोग
2>तंत्र-मंत्र का रहस्य
3>पंचतत्व : वायु को वश में करें – कैसे?
4>क्यों जागें ब्रह्म मुहूर्त बेला में?
5>ध्यान को असरदार बनाने के 3 नुस्खे
6>चंद्र-ग्रहण के समय क्यों नहीं करते हैं भोजन?
7>भूत-प्रेत बाधा के योग इस प्रकार हैं-
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1>गोरखनाथ ने किया तंत्र विद्या का दुरूपयोग 

आम तौर पर तंत्र-विद्या को आध्यात्मिक मार्ग से हमेशा दूर रखा गया है। गोरखनाथ की कहानी के माध्यम से सद्‌गुरु बता रहे हैं कि ऐसा क्यों किया गया…
सद्‌गुरु:
आम तौर पर तंत्र-विद्या को आध्यात्मिक मार्ग से हमेशा दूर रखा गया है। जब कभी आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे किसी साधक ने तंत्र-मंत्र की ओर जरा-सा भी रुझान दिखाया, उसके खिलाफ सख्त कदम उठाए गए ताकि वे दोबारा ऐसा न करें। इसकी एक बड़ी मिसाल हैं गोरखनाथ। गोरखनाथ असीम क्षमताओं वाले बहुत उग्र योगी थे। गुजरात में एक पर्वत चोटी का नाम उनके नाम पर रखा गया है, क्योंकि वे आम इंसानों के बीच एक ऊंचे पहाड़ जैसे थे। आज भी उनके अनुयायी- जिन्हें गोरखनाथी नाम से जाना जाता है, योगिक परंपरा के बहुत बड़े संप्रदायों में से एक है। वे लोग बहुत तीव्र और प्रखर होते हैं।


गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ

गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ थे। मत्स्येंद्रनाथ इतने ज्यादा योग्य थे कि लोग उनको शिव से कम नहीं मानते थे। उनको लोग इंसान नहीं मानते थे, क्योंकि उनमें इंसानों जैसी बात बहुत कम ही थी। उनकी लगभग हर बात जीवन के किसी दूसरे आयाम की ही थी। कहते हैं कि वे अपने नश्वर शरीर में 600 साल तक रहे। आम तौर पर वे समाज से दूर ही रहते थे। उनके कुछ थोड़े-से प्रचंड और तीव्र शिष्य ही उनसे संपर्क कर पाते थे। गोरखनाथ उन्हीं में से एक थे।

मत्स्येंद्रनाथ ने देखा कि गोरखनाथ संसार के लिए एक जबरदस्त संभावना हैं, लेकिन अपने गुरु के प्रति बहुत ज्यादा आसक्त हो रहे हैं। इसलिए उन्होंने उनको चौदह साल के लिए यह कर दूर भेज दिया कि ‘जाओ किसी दूसरे पर्वत पर जाकर वहीं अपनी साधना करो। चौदह साल के बाद वापस आओ’। गोरखनाथ चले गए और गहन साधना करने लगे – लेकिन साथ ही वे दिन गिन रहे थे कि दोबारा कब अपने गुरु के दर्शन कर पाएंगे। ठीक चौदह साल बाद वे वहां लौटे, जहां उन्हें अपने गुरु के होने की उम्मीद थी। वहां उन्होंने एक शिष्य को द्वार की रक्षा करते देखा।
तंत्र-मंत्र योग का सबसे निम्न रूप है, लेकिन लोग सबसे पहले यही करना चाहते हैं। वे कुछ ऐसा देखना या करना चाहते हैं, जो दूसरे नहीं कर सकते।गोरखनाथ ने उनसे कहा कि वे मत्स्येंद्रनाथ से मिलने आए हैं। शिष्य ने कहा, “नहीं, आप अंदर नहीं जा सकते।” गोरखनाथ तुरंत गुस्से से भड़कते हुए बोले, “आप मुझे कैसे रोक सकते हैं? मैं चौदह साल से उनसे मिलने का इंतजार कर रहा हूं। मुझे रोकने वाले आप कौन होते हैं?” शिष्य ने कहा, “मैं कौन हूं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, आप अंदर नहीं जा सकते।”



गोरखनाथ ने उस व्यक्ति को दबोच कर नीचे पटक दिया और उस गुफा के अंदर चले गए, जिसमें गुरु के होने की उम्मीद थी। पर अंदर जाने पर उन्होंने देखा कि गुफा खाली है। वे रोते हुए बाहर आए और अपने गुरु के बारे में पूछा कि वे कहां हैं? शिष्य बोला, “मैं आपको नहीं बताने वाला। आप बहुत असभ्य हैं।” गोरखनाथ उसके सामने बहुत गिड़गिड़ाए, मगर कोई लाभ नहीं हुआ। तब अपनी तांत्रिक शक्तियों का इस्तेमाल कर गोरखनाथ ने दूसरे योगी के मन की बात पढ़ कर पता कर लिया कि उनके गुरु कहां हैं और सीधे वहीं चले गए।

वे जैसे ही वहां पहुंचे, मत्स्येंद्रनाथ ने जान लिया कि उन्होंने उनके बारे में किस तरह से मालूम किया था। मत्स्येंद्रनाथ उनसे बोले, “मेरी दी हुई तंत्र साधना का तुमने दुरुपयोग किया है। तुमने अपने दूसरे योगी भाई के मन के अंदर देखने के लिए इसका दुरुपयोग किया। तुम्हें उसके मन की बात पढ़ने की कोई जरूरत नहीं थी। तुमने मेरी दी हुई योग शक्ति का सबसे निचला रूप पाया है।”
गोरखनाथ साधना

तंत्र विद्या योग का सबसे निम्न रूप है, लेकिन लोग सबसे पहले यही करना चाहते हैं। वे कुछ ऐसा देखना या करना चाहते हैं, जो दूसरे नहीं कर सकते। योग के शब्दों में इसका मतलब है कि उन्होंने खुद को मूलाधार से व्यक्त किया। इसलिए मत्स्येंद्रनाथ ने गोरखनाथ से कहा, “जाओ, अपने मूलाधार को बंद कर के फिर से चौदह साल तक बैठो।” गोरखनाथ लौट गए और उस आसन में बैठ गए जो आज गोरखनाथ आसन के नाम से प्रसिद्ध है। मूलाधार को बंद किए हुए वे इस अत्यंत दुखदाई आसन में बैठे रहे, तकि दोबारा कभी वे इस सबसे निचले रास्ते से खुद को अभिव्यक्‍त न कर पाएं।

काफी साधना करने के बाद गोरखनाथ को परमानंद की अनुभूति हुई। ये परंपराएं साधना की तीव्रता पर जोर देती हैं। उन लोगों ने इंसान के मनोवैज्ञानिक पहलू की बिल्कुल चिंता नहीं की, क्योंकि उनका मानना था कि मनोवैज्ञानिक पहलू इंसान का बेहद सूक्ष्म और दुर्बल हिस्सा है। उनका पूरा काम एक अलग स्तर पर है। वे जीवन-ऊर्जा को पूरी तरह से अलग आयाम में ले जाते हैं। इन परंपराओं में इस बात की कभी परवाह नहीं की गई कि इंसान को खुशहाल और प्रेममय कैसे बनाया जाए।
गोरखनाथ – गहरी समाधि की स्थिति में

हालांकि गोरखनाथ बेहद प्रचंड किस्म के योगी थे, लेकिन मत्स्येंद्रनाथ ने हमेशा उनकी देखभाल ऐसे की, जैसे वह एक छोटे बच्चे हों। एक बार गोरखनाथ गंगा के किनारे ध्यान की ऐसी गहन अवस्था में बैठे कि उन्हें समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा। कुछ समय के बाद गंगा के बहाव में बदलाव आ गया, जिससे रेत खिसक गई और गोरखनाथ के ऊपर जमा होने लगी। लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ। वे ध्यान में डूबे रहे। धीरे-धीरे उन पर इतनी रेत और मिट्टी जमा हो गई कि वे जमीन के भीतर दब गए। जमीन के नीचे वह अट्ठारह महीने से भी ज्यादा समय तक दबे रहे।

समय बीतता गया। एक दिन कुछ किसानों ने गंगा किनारे की इस उपजाऊ जमीन को जोतने का फैसला किया। जमीन जोतने के दौरान एक दिन उन्होंने देखा कि जमीन में से खून निकल रहा है।
तंत्र-मंत्र को इतना बुरा माना जाता है कि उसके पास फटकने से भी मना किया जाता है। यह हमेशा बुरा नहीं होता, लेकिन बदकिस्मती से इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर इसी तरह से किया गया है।जब उन्होंने मिट्टी हटा कर देखा तो पता चला कि एक योगी वहां बिलकुल अचल-स्थिर बैठा है। जमीन जोतने के दौरान गलती से हल उनके सिर से टकरा गया था, जिसकी वजह से सिर से खून बहने लगा था। लेकिन गोरखनाथ को इसका जरा भी अहसास नहीं हुआ। वे बस ध्यान में बैठे रहे। गांव वालों ने उन्हें रेत से बाहर निकाला। जैसे ही यह बात फैली, हजारों लोग ध्यान में डूबे इस योगी को देखने के लिए वहां जमा हो गए। गोरखनाथ के चारों ओर लोगों का मेला लग गया, लेकिन ध्यान में डूबे गोरखनाथ इस सबसे बेखबर थे।

इस भीड़ में से एक शख्स ने गोरखनाथ को पहचान लिया। उसने मत्स्येंद्रनाथ के पास जाकर पूरी बात बता दी। मत्स्येंद्रनाथ बोले, ‘ओह, वह बेवकूफ है। उसके सिर पर हल का कुछ असर नहीं होगा। मुझे ही उसे जगाना होगा।’ यह कह कर मत्स्येंद्रनाथ ने चुटकी बजाई और उसी पल गोरखनाथ ने आंखें खोल दीं। उन्होंने आसपास देखा तो वहां लोगों की भीड़ इकट्ठी थी और उनके सिर में चोट से दर्द हो रहा था। वे गुस्से में उठ खड़े हुए और वहां से चल दिए।
गोरखनाथ : गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के प्रति गुरु भक्ति

एक बार की बात है, मत्स्येंद्रनाथ गोरखनाथ के साथ कहीं जा रहे थे। उन्होंने एक छोटी-सी नदी पार की। मत्स्येंद्रनाथ एक पेड़ के नीचे बैठ गए और बोले, ‘मेरे लिए पानी ले आओ।’ गोरखनाथ तो एक सिपाही की तरह थे। उनके गुरु ने पानी मांगा था और वह तुरंत इस काम को पूरा कर देना चाहते थे। पानी लाने के लिए वह नदी की ओर चल दिए। उन्होंने देखा कि उस छोटी-सी नदी से उसी समय कुछ बैलगाडिय़ां होकर गुजरी हैं, जिसकी वजह से उसका पानी गंदा हो चुका था। वह दौड़ते हुए अपने गुरु के पास आए और बोले, ‘गुरुजी, यहां का पानी गंदा है। यहां से थोड़ी ही दूरी पर एक और नदी है। मैं वहां जाकर आपके लिए पानी ले आता हूं।’

मत्स्येंद्रनाथ ने कहा, ‘नहीं, नहीं। मेरे लिए इसी नदी से पानी लेकर आओ।’ गोरखनाथ बोले, ‘लेकिन वहां का पानी गंदा है।’ मत्स्येंद्रनाथ ने कहा, ‘मुझे उसी नदी का और उसी स्थान का पानी चाहिए। मुझे बहुत प्यास लगी है।’ गोरखनाथ फिर से नदी की ओर दौड़े, लेकिन पानी अभी भी बहुत गंदा था। उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या करें। वे लौट कर फिर गुरु के पास आए। मत्स्येंद्रनाथ ने फिर वही कहा, ‘मैं प्यासा हूं। मेरे लिए पानी लाओ।’ गोरखनाथ बुरी तरह उलझन में फंस गए। वह यहां से वहां यह सोचते हुए दौड़ते रहे कि आखिर क्या किया जाए। वे फिर से गुरु के पास आए और प्रार्थना की, ‘यहां का पानी गंदा है। मुझे थोड़ा वक्त दीजिए। मैं आपको दूसरी नदी से साफ पानी लाकर देता हूं।’ गुरु बोले, ‘नहीं, मुझे तो इसी नदी का पानी चाहिए।’

उलझन में डूबे गोरखनाथ वापस नदी पर गए। उन्होंने देखा कि अब नदी का पानी कुछ स्थिर हो गया है और पहले के मुकाबले थोड़ा साफ है। उन्होंने थोड़ा और इंतजार किया। कुछ देर में पानी पूरी तरह साफ हो गया। गोरखनाथ आनन्द विभोर होकर पानी लिए गुरु के पास पहुंचे और मत्स्येंद्रनाथ को पानी दिया। मत्स्येंद्रनाथ ने पानी एक तरफ रख दिया, क्योंकि वे वास्तव में प्यासे नहीं थे।

दरअसल, वह इस तरह गोरखनाथ को एक संदेश दे रहे थे। गोरखनाथ एक ऐसे इंसान थे जो गुरु की कही बात हर हाल में पूरी करते। अगर उनसे एक मंत्र का दस बार जाप करने को कहा जाता, तो वह उसका दस हजार बार जाप करते। वह हमेशा गुरु की आज्ञा पूरी करने को तैयार रहते। जो उनसे कहा जाता, उसे बड़ी श्रद्धा और लगन के साथ पूरा करते थे। यह उनका महान गुण था, लेकिन अब वक्त आ गया था कि वे दूसरे आयाम में भी आगे बढ़ें, इसलिए मत्स्येंद्रनाथ ने उन्हें समझाया- यहां-वहां भाग-दौड़ करके और मेहनत करके तुमने अच्छा काम किया है, लेकिन अब वक्त आ गया है, जब तुम्हें बस इंतजार करना है, और तुम्हारा मन बिलकुल शांत और साफ हो जाएगा।
गोरखनाथ आश्रम – नाथ परंपरा के योगियों के समाधि स्थल

गोरखनाथ को भारत में एक महान योगी का दर्जा प्राप्त है। महाराष्ट्र के दक्षिण में स्थित पश्चिम घाट में एक पूरी पर्वत श्रृंखला उनके नाम पर है, क्योंकि इंसानों के बीच वे एक पर्वत की तरह हैं। पूरे उपमहाद्वीप में उन्होंने असाधारण काम किया और आज भी उनके अनुयायियों को, जो बड़े प्रचंड और तीव्र लोग होते हैं, गोरखनाथी कहा जाता है। आज एक हजार साल बाद भी योगिक परंपराओं में गोरखनाथियों को सबसे बड़े संप्रदायों में से एक माना जाता है। आज गोरखनाथ आश्रम में सौ से ज्यादा समाधियां हैं, जो इस संप्रदाय से जुड़े उन लोगों की हैं जिन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। वैसे तो इस संप्रदाय के बहुत सारे योगियों को परम मुक्ति की प्राप्ति हुई, लेकिन जिन लोगों ने आश्रम में रह कर आत्मज्ञान हासिल किया, उनकी समाधियां यहां बनाई गईं। बहुत सारे लोग ऐसे भी थे, जिन्हें जंगलों और पर्वतों में आत्मज्ञान मिला। उन्हें किसी निशानी की जरूरत नहीं है।

तंत्र-मंत्र को इतना बुरा माना जाता है कि उसके पास फटकने से भी मना किया जाता है। यह हमेशा बुरा नहीं होता, लेकिन बदकिस्मती से इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर इसी तरह से किया गया है। कोई भी विज्ञान या टेक्नालॉजी बुरी नहीं होती। लेकिन अगर हम टेक्नालाजी का इस्तेमाल लोगों की जान लेने और उनको यातना देने के लिए करते हैं, तो कुछ समय बाद लगेगा कि टेक्नालाजी बुरी चीज है। तंत्र-मंत्र के साथ यही हुआ है, क्योंकि बहुत ज्यादा लोगों ने अपने निजी फायदे के लिए इसका गलत इस्तेमाल किया। इसलिए आम तौर पर तंत्र-मंत्र को आध्यात्मिक मार्ग से दूर ही रखा जाता है।
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2>तंत्र-मंत्र का रहस्य

अंग्रेजी भाषा में ऑकल्ट यानी तंत्र-मंत्र की परिभाषा “आध्यात्मिक रहस्य” से ले कर “गुप्तविद्या” तक गई है। इस लेखमाला की पहली कड़ी में सद्‌गुरु गलतफहमियों में घिरे इस शब्द पर से रहस्य का परदा उठा रहे हैं।

सद्‌गुरु:

अंग्रेजी शब्द ‘ऑकल्ट’ का कोई बिलकुल स्पष्ट और निश्चित अर्थ नहीं है। दरअसल ऑकल्ट का मतलब सिर्फ एक खास काबिलियत है, लेकिन चूंकि कुछ लोगों ने इस काबिलियत का गैरजिम्मेदारी से गलत इस्तेमाल किया, इसलिए ‘ऑकल्ट’ शब्द के गलत अर्थ निकाल लिए गए हैं।

‘ऑकल्ट’ यानी तंत्र-मंत्र महज एक टेक्नालाजी है। आज आप भारत में अपना मोबाइल फोन उठा कर जब चाहें युनाइटेड स्टेट्स में किसी से बात कर सकते सकते हैं। तंत्र-मंत्र ऐसा ही है – बस आप सेलफोन के बिना ही युनाइटेड स्टेट्स में किसी से बात कर सकते हैं। यह थोड़ी ज्यादा उन्नत टेक्नालाजी है। वक्त के साथ जब आधुनिक टेक्नालाजी का और विकास होगा, तब उसके साथ भी ऐसा ही होगा। अभी ही मेरे पास एक ब्लू टूथ मेकेनिज्म है, जिसमें किसी का नाम बोलने भर से मेरा फोन उसका नंबर डायल करने लगता है। एक दिन ऐसा आएगा, जब इसकी भी जरूरत नहीं पड़ेगी। बस, शरीर में एक छोटा-सा इम्प्लांट लगाने से काम चल जाएगा।
तंत्र-मंत्र का सत्य

तंत्र-मंत्र तब होगा जब आप ब्लू टूथ के बिना भी बात कर सकें। यह एक अलग स्तर की टेक्नालाजी है, पर है भौतिक ही। यह सब करने के लिए आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं। टेक्नालाजी चाहे जो हो, आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। आम तौर पर आप अपनी सेवा के लिए दूसरे पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक सेलफोन या किसी भी टेक्नालाजी के उत्पादन के लिए जिन बुनियादी पदार्थों का उपयोग होता है, वे शरीर, मन और ऊर्जा ही होते हैं।
आधुनिक विज्ञान और तंत्र-मंत्र कहीं-न-कहीं जरूर मिलेंगे

शुरू-शुरू में फोन तैयार करने के लिए आपको तरह-तरह के सामान की जरूरत होती थी। अब हम लगातार इस सामान की मात्रा घटाने की कोशिश कर रहे हैं। एक दिन ऐसा आएगा, जब हमें किसी भी सामान की जरूरत नहीं पड़ेगी – यह होगा तंत्र-मंत्र। आधुनिक विज्ञान और तंत्र-मंत्र कहीं-न-कहीं जरूर मिलेंगे अगर कौन क्या है इसकी समझ में थोड़े फेरबदल हो जाए। भौतिक का अनेक प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर अगर आप इनफार्मेशन टेक्नालाजी को लें, तो जो चीज पत्थर के टैबलेट से शुरू हुई, वह अब एक बहुत ही छोटे-से चिप तक पहुंच चुकी है। जिस के लिए पूरे पहाड़ को तराशने की जरूरत होती, आज एक बहुत ही छोटा-सा चिप उसके लिए काफी है। भौतिक वस्तु अब सूक्ष्म हो चली है। जब हम भौतिक के सूक्ष्मतम आयाम का उपयोग करते हैं, तो उसको तंत्र-मंत्र कहते हैं।
तंत्र-मंत्र और अध्यात्म

दुनिया के कई हिस्सों में तंत्र-मंत्र को आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो कि ठीक नहीं है। जब हम आध्यात्मिक कहते हैं, तो भौतिकता के पार जाने की बात करते हैं, आपके भीतर एक ऐसी अनुभूति लाने के लिए जो भौतिक की नहीं है। पर भौतिक के सूक्ष्मतम आयामों का उपयोग करने के बावजूद तंत्र-मंत्र है तो भौतिक ही।

जैसे-जैसे आधुनिक टेक्नालाजी सूक्ष्म और सूक्ष्म होती जाएगी, तंत्र-मंत्र की जरूरत कम होती जाएगी। मान लीजिए हजार साल पहले मैं कोयंबटूर में था और आप दिल्ली में, और मैं आपको एक निर्देश देना चाहता था। आपका इतनी दूर से यात्रा करके चलते हुए मेरे पास कोयंबटूर आना या मेरा चलते हुए आपके पास दिल्ली आना, अव्यावहारिक होता, इसलिए मैं समय लगा कर तंत्र-मंत्र में महारत हासिल कर लेता, ताकि मैं अपना निर्देश आप तक पहुंचा सकूं। लेकिन अब मुझे ऐसा करने की जरूरत नहीं, क्योंकि मेरे पास एक सेलफोन है। मैं अभी भी तंत्र-मंत्र कर सकता हूं, लेकिन आपको इसे ग्रहण करने लायक बनाना – ताकि आप यह निर्देश बिलकुल साफ ग्रहण कर सकें और उस पर संदेह न करें – बेकार में बहुत सारा वक्त ले लेता। यह सब करने की बजाय मैं आपको सीधे फोन कर सकता हूं। तो तंत्र-मंत्र दिन-ब-दिन ज्यादा और ज्यादा बेमानी होता जा रहा है, क्योंकि आधुनिक टेक्नालाजी बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है।
मगर तंत्र-मंत्र बहुत ऊंची श्रेणी का भी होता है। शिव एक तांत्रिक हैं।
तंत्र-मंत्र – न अच्छा न बुरा

इसलिए जब आप तंत्र-मंत्र कहते हैं, तो चूंकि लोगों ने ऐसे तांत्रिकों के बारे में सुन रखा है, जिन्होंने लोगों की जिंदगी बरबाद करने की कोशिश की या जिन्होंने लोगों को बीमार बनाया और मार डाला, इसलिए वे समझते हैं कि तंत्र-मंत्र हमेशा बुरा होता है। सामाजिक दृष्टि से संभव है आपने ऐसे ही लोगों को देखा हो। मगर तंत्र-मंत्र बहुत ऊंची श्रेणी का भी होता है। शिव एक तांत्रिक हैं। सारा तंत्र-मंत्र अनिवार्य रूप से बुरा नहीं होता। तंत्र-मंत्र एक अच्छी और लाभकारी शक्ति हो सकता है। यह अच्छा है या बुरा, यह इस बात के भरोसे होता है कि इसका उपयोग कौन कर रहा है और किस मकसद से।
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3>पंचतत्व : वायु को वश में करें – कैसे?


हमारी पंचतत्वों की ब्लॉग श्रृंखला में आइये आज पढ़ते हैं वायु के बारे में।

पंचतत्वों में वायु का स्थान महत्वपूर्ण है, क्योंकि हर क्षण हम सांसों के माध्यम से वायु से जुड़े हुए हैं। ऐसे में हम वायु को अपने लिए फायदेमंद कैसे बना सकते हैं?

हमारे शरीर में लगभग छह प्रतिशत वायु है। इसमें से केवल एक प्रतिशत या कुछ कम आपकी सांस है। बाकी दूसरे तरीकों से आपके शरीर में मौजूद है।
परदे पर होने वाले आवाजों से, उनसे पैदा होने वाली दर्शकों की भावनाओं और लोगों के दिमाग पर हो रहे इनके असर से उस हॉल की सीमित हवा बहुत प्रभावित हो जाती हैकेवल सांस में आने-जाने वाली हवा ही आप पर असर नहीं डालती है, आप अपने अंदर हवा किस तरह से रखते हैं, इससे भी फर्क पड़ता है। आपको उस एक प्रतिशत का ख्याल तो रखना ही चाहिए, लेकिन अगर आप शहर में रहते हैं, तो हो सकता है यह आपके हाथ में न हो कि किस तरह की हवा में आप सांस लें। इसलिए आप किसी पार्क में या किसी झील के किनारे टहलने के लिए जाया करें।

खास कर अगर आपके बच्चे हैं, तो यह जरूरी है कि आप कम से कम महीने में एक बार उन्हें बाहर ले जाएं – सिनेमा या कोई वैसी जगह नहीं, क्योंकि परदे पर होने वाले आवाजों से, उनसे पैदा होने वाली दर्शकों की भावनाओं और लोगों के दिमाग पर हो रहे इनके असर से उस हॉल की सीमित हवा बहुत प्रभावित हो जाती है। सिनेमा ले जाने के बजाय आप उन्हें नदी के किनारे ले जाएं, उन्हें तैरना सिखाएं या पहाड़ पर चढऩा सिखाएं। इसके लिए आपको हिमालय तक जाने की जरूरत नहीं है। एक बच्चे के लिए एक छोटी सी पहाड़ी भी बड़े पहाड़ के बराबर है। एक बड़ी चट्टान से भी काम चल जाएगा। आप उस पर चढ़ें और ऊपर जा कर बैठें। बच्चों को इसमें बहुत मजा आएगा और उनकी सेहत बनेगी। आपकी सेहत भी अच्छी हो जाएगी, साथ ही आपका शरीर और दिमाग अलग तरह से काम करने लगेगा। और सबसे बड़ी बात यह होगी कि इस तरह आप सृष्टि के संपर्क में होंगे, जो सबसे महत्वपूर्ण चीज है।
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4>क्यों जागें ब्रह्म मुहूर्त बेला में?


आपने ब्रह्म मुहूर्त की बहुत महिमा सुनी होगी। एक विद्यार्थी से लेकर एक सन्यासी तक के लिए इस मुहूर्त को लाभकारी बताया जाता है। तो आइए जानते हैं कि आखिर कब शुरु होता है यह ब्रह्म मुहूर्त और क्यों लाभदायक है यह :

नरेन:

सद्‌गुरु, मैं ब्रह्म मुहूर्त के बारे में कुछ जानना चाहता हूं। जहां तक मुझे पता है इसकी शुरुआत साढ़े तीन बजे से होती है, लेकिन खत्म कब तक होता है, ये मुझे ठीक-ठीक नहीं मालूम। हम इस मुहूर्त का बेहतरीन फायदा कैसे ले सकते हैं – क्या इस समय ध्यान या कोई क्रिया अथवा दोनों कर सकते हैं? इसी से जुड़ा मेरा अगला सवाल है कि साढ़े तीन बजे का इस मुहूर्त के साथ क्या संबंध है और इसका क्या महत्व है?
सद्‌गुरु:

साढ़े तीन बजे का महत्व सिर्फ 33 डिग्री अक्षांश तक के लिए ही होता है। 3.40 पर सूर्य उस जगह पहुंच जाता है, जहां उसका सीधा संबंध पृथ्वी से हो जाता है। इस समय उसकी किरणें ठीक आपके सिर के ऊपर होती हैं। जब सूर्य की किरणें धरती के दोनों तरफ एक ही जगह पड़ती हैं, तो इंसान का सिस्टम एक खास तरीके से काम करने लगता है और तब एक संभावना बनती है। इस संभावना के इस्तेमाल करने को लेकर लोगों में जागरूकता रही है।
अगर आपके सिस्टम में एक जीवंत बीज पड़ चुका है और अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में जागकर कोई भी अभ्यास करने बैठते हैं तो यह बीज आपको सबसे ज्यादा फल देगा।
ब्रह्म मुहूर्त का समय

वैसे तो सूर्य हमेशा आपके सिर के ऊपर ही होता है, लेकिन जब मैं कहता हूं कि सूर्य ठीक आपके सिर पर है तो इसका मतलब है उस समय वह आपके सिर पर लंबवत है। उस समय यह एक विशेष तरीके से काम करता है। यह समय होता है 3.40 से लेकर अगले 12 से 20 मिनट तक।
अब सवाल आता है कि इस समय में हम क्या करें? इस समय में हम ध्यान करें या क्रिया करें? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करें। इस समय में आपको वही करना चाहिए, जिसमें आपको दीक्षित किया गया है। दरअसल, दीक्षा का मतलब यह नहीं है कि आपको कोई क्रिया सिखाई गई है, इसका मतलब है कि इस क्रिया से आपके सिस्टम को परिचित करा कर आपके सिस्टम में इसे बाकायदा स्थापित किया गया है।
अगर आपके सिस्टम में एक जीवंत बीज पड़ चुका है और अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में जागकर कोई भी अभ्यास करने बैठते हैं तो यह बीज आपको सबसे ज्यादा फल देगा। उसकी वजह है कि इस समय धरती आपके सिस्टम के अनुसार काम करती है। अगर आप खास तरीके से जागरूक हो जाते हैं, आपके भीतर एक खास स्तर की जागरूकता आ जाती है तो आपको इस समय का सहज रूप से अहसास हो जाता है। अगर आप सही वक्त पर सोने चले जाते हैं तो आपको उठने के लिए घड़ी देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपको हमेशा पता चल जाएगा कि कब 3.40 का वक्त हो गया है, क्योंकि यह वक्त होते ही आपका शरीर एक अलग तरीके से व्यवहार करने लगेगा।
ब्रह्म मुहूर्त का महत्त्व

आप जिस भी क्रिया में दीक्षित हुए हैं, अगर इस समय वह करना शुरू कर देंगे, तो आपको इसका सर्वश्रेष्ठ फल मिलेगा। हां, यह समय किताब पढ़ कर सीखी हुई क्रिया करने का नहीं है। आपके भीतर पड़ा वह बीज इस समय विशेष सहयोग मिलने से अकुंरित होने लगेगा या दूसरे समय की अपेक्षा ज्यादा तेजी से फूटेगा। यह समय सिर्फ दीक्षित हुए लोगों के लिए ही अनुकूल है। अगर आप दीक्षित नहीं है तो फिर 3.40 हो या 6.40 या फिर 7.40 कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए संध्या काल ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। यह एक तरह का संधि काल होता है।
जब मैं कहता हूं कि सूर्य ठीक आपके सिर पर है तो इसका मतलब है उस समय वह आपके सिर पर लंबवत है। उस समय यह एक विशेष तरीके से काम करता है। यह समय होता है 3.40 से लेकर अगले 12 से 20 मिनट तक।संध्या का मतलब है संक्रमण या एक स्थिति से दूसरी में जाना। सूर्योदय से बीस मिनट पहले व बीस मिनट बाद या सूर्यास्त से बीस मिनट पहले व बीस मिनट बाद का समय संध्या कहलाता है। ऐसा ही वक्त दोपहर बारह बजे और आधी रात को आता है, लेकिन ये दोनों संध्याएं अलग प्रकृति की होती है। दिन में चालीस मिनट की ये चार अवधियां संध्या काल कहलाती हैं। इस संध्या काल में आपका सिस्टम एक खास तरह के संक्रमण से गुजरता है। इस समय में मानव शरीर में मौजूद दो प्रमुख नाडिय़ों –इड़ा और पिंगला के बीच एक खास तरह का संतुलन कायम होता है।
सुबह शाम की ये दो संध्याएं गैर दीक्षित लोगों के लिए ठीक हैं। जबकि जो लोग शक्तिशाली ढंग से दीक्षित हुए हैं, उनके लिए 3.40 का वक्त आदर्श है।


नरेन:

तो क्या मैं अपनी क्रिया आधी रात को कर सकता हूं?
सद्‌गुरु:

अगर व्यक्ति अपने जीवन की दिशा को एक खास तरह से बदलने के लिए इच्छुक नहीं है, तो उसे आधी रात को साधना नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस दौरान की गई साधना कुछ ऐसे बदलाव लाती है, जिसे आप शायद संभाल न पाएं।
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5>ध्यान को असरदार बनाने के 3 नुस्खे


बहुत लोगों की यह शिकायत रहती है कि वो ध्यान का अभ्यास तो नियमित करते हैं, लेकिन उन्हें आनंद का अनुभव नहीं मिल पाता। सद्गुरु बता रहे हैं इसका कारण और इसके लिए तीन नुस्खे:


प्रश्‍न:

कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जैसे ही ध्यान में बैठते हैं, उन्हें आनंद का अनुभव होने लगता है। मैं भी ध्यान करता हूं, लेकिन मुझे कुछ भी महसूस नहीं होता।
सद्‌गुरु:

जिस जगत में हम रह रहे हैं, हमें उसकी प्रकृति को समझना होगा। मान लीजिए, बाहर एक सेब का पेड़ लगा है। अगर आपको सेब चाहिए तो ऐसा नहीं होगा कि आपने इच्छा की और सेब आपके हाथ में आ गया।
क्रिया सिखाते हुए करीब तीस घंटे तक आपको निर्देश दिए गए। जब तक आप उन सभी चीजों को तैयार नहीं करेंगे, यह काम नहीं करेगी।अगर आप यूं ही पेड़ पर पत्थर फेंकने लगें, तो भी सेब आपके हाथ नहीं आएगा। आपको सेब के फल पर निशाना लगाकर मारना होगा, केवल तभी वह आपके हाथ में गिरेगा। इसका मतलब यह है कि इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप किस चीज की इच्छा कर रहे हैं, हो सकता है अचानक आपने यूं ही पत्थर फेंका और वह जाकर फल में लग गया और फल आपके हाथ आ गया। आपकी कोई इच्छा नहीं थी, आपने तो बस यूं ही पत्थर फेंका और फल आपको मिल गया।

सवाल इसका नहीं है कि आप उसके लिए इच्छा कर रहे हैं या नहीं, जानबूझकर या अनजाने में आपने सही काम कर दिया और आपको उसका फल मिल गया। जीवन के हर पहलू के साथ यह सृष्टि इसी तरीके से काम करती है। अगर आपको यह पसंद नहीं है तो आप कहीं और चले जाइए। लेकिन इस सृष्टि का नियम तो यही है कि जीवन के बेहद सरल मामलों से लेकर जटिलतम पहलुओं तक, जब तक आप सही काम नहीं करेंगे, तब तक सही चीजें आपके साथ घटित नहीं होंगी।

तो अनुभव को लेकर आप चिंता न करें, आप अपने तरीके पर ध्यान दें और यह देखें कि उस क्रिया को करने का सही तरीका क्या है। जो होना है, होकर रहेगा। जो होना है, अगर वह नहीं हुआ तो एक बार फिर से अपने तरीके को देखें, फिर से अपने तरीके पर गौर करें, ध्यान से अपने तरीकों को देखते रहें। कुछ तो ऐसा है, जो आप सही से नहीं कर रहे हैं। फल की ओर मत देखिए। अपनी क्रिया की ओर देखिए। नतीजा तो आना ही है और कोई चारा ही नहीं है।

तीन चीजों का ध्यान रखें:

ध्यान के निर्देश का पालन करें

अगर कुछ नहीं हो रहा है तो इसकी वजह भाग्य या दुर्भाग्य नहीं है। कहीं न कहीं हम कुछ सही करने से चूक रहे हैं। बात जब साधना की आती है तो कुछ उम्मीद न करें, किसी अनुभव की इच्छा न करें। बस साधना को सही तरीके से करना सीखें। इसमें एक तरह की ‘सब्जेक्टिविटि’ यानी व्यक्तिपरकता है। यह एक बीज की तरह है। अगर आप चाहते हैं, बीज में अंकुर आएं तो आपको उसके लिए जरूरी परिस्थितियां पैदा करनी होंगी।इक्कीस मिनट की एक क्रिया को सिखाने के लिए हमने सात दिन का वक्त लिया। क्रिया सिखाते हुए करीब तीस घंटे तक आपको निर्देश दिए गए। जब तक आप उन सभी चीजों को तैयार नहीं करेंगे, यह काम नहीं करेगी। बीज कितना भी शानदार हो, अगर आप उसे जरुरत के हिसाब से धूप, हवा और पानी नहीं देंगे तो वह कभी भी अंकुरित नहीं होगा। यह भी कुछ ऐसा ही है। तो जो भी निर्देश आपको दिए गए हैं, उनका बस पालन कीजिए।

ध्यान पूरी निष्ठा से करें

अगली बात है निष्ठा। अभी आपको जो भी प्रक्रिया बताई गई है, वह आपको उस दिशा में ले जाती है जहां आप सभी को शामिल करने के काबिल बन सकें। अगर आप खुद को सबसे अलग समझने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आपके भीतर निष्ठा की कमी है।

हर तरह से आप खुद को जीवन से अलग करके जीवन के उल्लास का आनंद लेना चाहते हैं। इस तरह से काम नहीं चलता। यह ऐसे है कि आप अपनी सांस को रोककर रखते हैं और फिर आप चाहते हैं कि जीवन आपके लिए खूबसूरत बन जाए।

जब बात शरीर की आती है तो आप काफी ‘इनक्लुसिव’ यानी समावेशी हैं, सब कुछ अपने भीतर शामिल कर लेने को तैयार हैं, रोटी हो या सेब, चिकन हो या अंडा, सबको आप अपने भीतर समा लेने को हमेशा तैयार हैं।
बड़ा या विशाल बनकर आप असीमित नहीं हो सकते। विशाल की भी सीमा होती है। आप असीमित तभी हो पाते हैं, जब आप शून्य हो जाते हैं।इन सब चीजों में आपकी सोच बड़ी समावेशी है। लेकिन बाकी सब चीजों के मामले में आप समावेशी नहीं हैं। अगर आप वास्तव में खास बनना चाहते हैं, सबसे अलग बनना चाहते हैं तो अपने लिए एक अच्छे सा शीशे का केस बनवाइए। तब आपको समझ आएगा कि सबसे अलग बनने, खास बनने से कोई लाभ नहीं होता। तन के मामले में समावेशी और मन के मामले में खास बनना – यह ईमानदारी और निष्ठा की कमी है। अगर आाप हर स्तर पर समावेशी हों जाएं, सब को खुद में शामिल करना सीख लें तो जीवन उल्लास से भर जाएगा।

ध्यान के उद्देश्य में तीव्रता लाएं

तीसरी चीज है उद्देश्य में तीव्रता। पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य खुद को बड़ा बनाना नहीं है। पूरी प्रक्रिया का मकसद आपको शून्य में विलीन कर देना है क्योंकि आप जिस चीज की खोज कर रहे हैं, वह असीमितता है, विशालता नहीं है। बड़ा या विशाल बनकर आप असीमित नहीं हो सकते। विशाल की भी सीमा होती है। आप असीमित तभी हो पाते हैं, जब आप शून्य हो जाते हैं। तो इन सब चीजों का उपयोग आप महान या बड़ा बनने के लिए नहीं करते। आप इसका प्रयोग खुद को मिटाने की प्रक्रिया के रूप में कर रहे हैं। अपना उद्देश्य आपको हमेशा स्पष्ट होना चाहिए।

तो तीन चीजें हैं: बुनियादी निर्देश, आपकी निष्ठा और उद्देश्य में तीव्रता। अगर आप इन तीनों चीजों का ध्यान रखते हैं, तो आपको चमत्कारिक परिणाम हासिल होंगे। इन पर आपको रोजाना गौर करना होगा। केवल अभ्यास से पहले ही नहीं, आप जब सुबह सोकर उठते हैं, तब चेक करें: क्या आज मैं ऐसा होने जा रहा हूं? यह चमत्कारिक ढंग से काम करेगा।
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6>चंद्र-ग्रहण के समय क्यों नहीं करते हैं भोजन?


4 अप्रैल को एशिया और अमेरिका के अधिकांश हिस्सों पर आंशिक चंद्रग्रहण होगा। आइये जानते हैं कि चंद्र ग्रहण के समय भोजन करने से शरीर और जागरूकता पर बुरा असर क्यों पड़ता है…


जो चीज चंद्रमा के एक पूर्ण चक्र के दौरान 28 दिनों में होती है, वह चंद्रग्रहण के दौरान ग्रहण के दो से तीन घंटे के भीतर सूक्ष्म रूप में घटित होती है। ऊर्जा के अर्थों में पृथ्वी की ऊर्जा गलती से इस ग्रहण को चंद्रमा का एक पूर्ण चक्र समझ लेती है। पृथ्वी ग्रह में कुछ ऐसी चीजें घटित होती हैं, जिससे अपनी प्राकृतिक स्थिति से हटने वाली कोई भी चीज तेजी से खराब होने लगती है।
इसलिए पका हुआ भोजन किसी सामान्य दिन के मुकाबले कहीं अधिक तेजी से एक सूक्ष्म रूप में सड़न के चरणों से गुजरता है। अगर आपके शरीर में भोजन मौजूद है, तो दो घंटे के समय में आपकी ऊर्जा लगभग अट्ठाइस दिन बाद की अवस्था में पहुंच जाएगी।यही वजह है कि कच्चे फलों और सब्जियों में कोई बदलाव नहीं होता, जबकि पका हुआ भोजन ग्रहण से पहले जैसा होता है, उसमें एक स्पष्ट बदलाव आता है। जो पहले पौष्टिक भोजन होता है, वह जहर में बदल जाता है। जहर एक ऐसी चीज है जो आपकी जागरूकता को नष्ट कर देता है। अगर वह आपकी जागरूकता को छोटे स्तर पर नष्ट करता है, तो आप सुस्त हो जाते हैं। अगर वह एक खास गहराई तक आपकी जागरूकता नष्ट कर देता है, तो आप नींद में चले जाते हैं। अगर कोई चीज आपकी जागरूकता को पूरी तरह नष्ट कर देता है, तो आपकी मृत्यु हो जाती है। सुस्ती, नींद, मृत्यु – यह बस क्रमिक बढ़ोत्तरी है। इसलिए पका हुआ भोजन किसी सामान्य दिन के मुकाबले कहीं अधिक तेजी से एक सूक्ष्म रूप में सड़न के चरणों से गुजरता है।

अगर आपके शरीर में भोजन मौजूद है, तो दो घंटे के समय में आपकी ऊर्जा लगभग अट्ठाइस दिन बाद की अवस्था में पहुंच जाएगी। क्या इसका मतलब है कि आप ऐसे दिन कच्चा भोजन कर सकते हैं? नहीं, क्योंकि भोजन जैसे ही आपके शरीर में प्रवेश करता है, आपके पेट में मौजूद रस या सत्व उस पर हमला करके उसे मार देते हैं। वह आधे पके भोजन की तरह हो जाता है और उस पर भी ग्रहण का वही असर होगा। इसका संबंध केवल भोजन से नहीं है। आप जिस रूप में है, उस पर भी इसका असर पड़ता है। अगर आप जो हैं, उसके सहज आयाम से किसी भी रूप में अलग हटते हैं, तो आपका इन शक्तियों के शिकार बनने का खतरा ज्यादा होता है। अगर आप अपनी सहज स्वाभाविक अवस्था में हैं, तो इन शक्तियों का आप पर बहुत कम असर होता है।
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7>भूत-प्रेत बाधा के योग इस प्रकार हैं-
पहला योग-कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती हैं।
दूसरा योग-यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं।
तीसरा योग-यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। उक्त योगों में दशा-अर्न्तदशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान है।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है :
”अजैकपादहिर्बुध्न्यषक्रमित्रानिलान्तकैः।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्यहम॥
भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।
भूत पीड़ा :
भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है।
यक्ष पीड़ा :
यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है।
पिशाच पीड़ा :
पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है।
शाकिनी पीड़ा :
शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है।
प्रेत पीड़ा :
प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है।
चुडैल पीड़ा :
चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है।
भूत प्रेत कैसे बनते हैं:- इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है।
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इस तरह भूत-प्रेतादि प्रभावित व्यक्तियों की पहचान भिन्न-भिन्न होती है। इन आसुरी शक्तियों को वश में कर चुके लोगों की नजर अन्य लोगों को भी लग सकती है। इन शक्तियों की पीड़ा से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
जिस प्रकार चोट लगने पर डाक्टर के आने से पहले प्राथमिक उपचार की तरह ही प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति का मनोबल बढ़ाने का उपाय किया जाता है और कुछ सावधानियां वरती जाती हैं।
ऐसा करने से प्रेत बाधा की उग्रता कम हो जाती है। इस लेख में भूत-प्रेत बाधा निवारण के यंत्र-मंत्र आधारित उपायों की जानकारी दी गयी है। लाभ प्राप्त करने के लिए इनका निष्ठापूर्वक पालन करें। जब भी किसी भूत-प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति को देखें तो सर्वप्रथम उसके मनोबल को ऊंचा उठायें।
उदाहरणार्थ यदि वह व्यक्ति मन में कल्पना परक दृश्यों को देखता है तथा जोर-जोर से चिल्लोता है कि वह सामने खड़ी या खड़ा है, वह लाल आंखों से मुझे घूर रही या रहा है, वह मुझे खा जाएगा या जाएगी। हालांकि वह व्यक्ति सच कह रहा है पर आप उसे समझाइए- वह कुछ नहीं है, वह केवल तुम्हारा वहम है। लो, हम उसे भगा देते हैं। उसे भगाने की क्रिया करें।
कोई चाकू, छूरी या कैंची उसके समीप रख दे और उसे बताएं नहीं। देवताओं के चित्र हनुमान दुर्गा या काली का टांग दें। गंगाजल छिड़ककर लोहबान, अगरबत्ती या गूग्गल धूप जला दें। इससे उसका मनोबल ऊंचा होगा। प्रेतात्मा को बुरा भला कदापि न कहें। इससे उसका क्रोध और बढ़ जाएगा।
इसमें कोई बुराई नहीं। घर के बड़े-बुजुर्ग भूत-प्रेत से अनजाने अपराध के लिए क्षमा मांग लें। निराकारी योनियों के चित्र बनाना कठिन होता है। यह मृदु बातों तथा सुस्वादुयुक्त भोगों के हवन से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं।
इसके पश्चात आप पीपल के पांच अखंडित स्वच्छ पत्ते लेकर उन पर पांच सुपारी, दो लौंग रख दे तथा गंगाजल में चंदन घिसकर पत्तों पर (रामदूताय हनुमान) दो-दो बार लिख दें। अब उनके सामने धूप-दीप और अगरबत्ती जला दें। इसके बाद बाधाग्रस्त व्यक्ति को छोड़ देने की प्रार्थना करें।
ऐसा करने से प्रेतबाधा नष्ट हो जाती है। फिर भी अगर लाभ न हो तो नीचे दिए गए कुछ उपाय व टोटके सिद्ध करके काम में लें।
यदि बच्चा बाहर से खेलकर, पढ़कर, घूमकर आए और थका, घबराया या परेशान सा लगे तो यह उसे नजर या हाय लगने की पहचान है। ऐसे में उसके सर से ७ लाल मिर्च और एक चम्मच राई के दाने ७ बार घूमाकर उतारा कर लें और फिर आग में जला दें।
यदि बेवजह डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, तो हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं।
व्यक्ति के बीमार होने की स्थिति में दवा काम नहीं कर रही हो, तो सिरहाने कुछ सिक्के रखे और सबेरे उन सिक्कों को श्मशान में डाल आए।
व्यवसाय बाधित हो, वांछित उन्नति नहीं हो रही हो, तो ७ शनिवार को सिंदूर, चांदी का वर्क, मोतीचूर के पांच लड्डू, चमेली का तेल, मीठा पान, सूखा नारियलऔर लौंग हनुमान जी को अर्पित करें।
किसी काम में मन न लगता हो, उचाट सा रहता हो, तो रविवार को प्रातः भैरव मंदिर में मदिरा अर्पित करें और खाली बोतल को सात बार अपने सरसे उतारकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें।
शनिवार को नारियल और बादाम जल में प्रवाहित करें।
अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रख कर पूजा करें। उनके सूखने पर नए पत्ते रखें और पुराने पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, घर भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा।
एक कटोरी चावल दान करें और गणेश भगवान को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ाएं। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेत बाधा आदि के कारण बाधित कार्य पूरे होंगे।
इस तरह ये कुछ सरल और प्रभावशाली टोटके हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। ध्यान रहे, नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्ति हेतु टोटके या उपाय ही करवाने चाहिए, टोना नहीं।
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भूत-प्रेत बाधाओं, जादू-टोनों आदि के प्रभाव से भले-चंगे लोगों का जीवन भी दुखमय हो जाता है। ज्योतिष तथा शाबर ग्रंथों में इन बाधाओं से मुक्ति के अनेकानेक उपाय उपाय बताए गए हैं।
इस प्रकार की बाधा निवारण करने से पूर्व स्वयं की रक्षा भी आवश्यक हें.इसलिए इन मन्त्रों द्वारा अपनी तथा अपने आसन की सुरक्षा कर व्यवस्थित हो जाएँ…
जब भी हम पूजन आदि धार्मिक कार्य करते हैं वहां आसुरी शक्तियां अवश्य अपना प्रभाव दिखाने का प्रयास करती हैं। उन आसुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए हम मंत्रों का प्रयोग कर सकते हैं। इसे रक्षा विधान कहते हैं। नीचे रक्षा विधान के बारे में संक्षिप्त में लिखा गया है। रक्षा विधान का प्रयोग करने से बुरी शक्तियां धार्मिक कार्य में बाधा नहीं पहुंचाती तथा दूर से ही निकल जाती हैं।
रक्षा विधान- रक्षा विधान का अर्थ है जहाँ हम पूजा कर रहे है वहाँ यदि कोई आसुरी शक्तियाँ, मानसिक विकार आदि हो तो चले जाएं, जिससे पूजा में कोई बाधा उपस्थित न हो। बाएं हाथ में पीली सरसों अथवा चावल लेकर दाहिने हाथ से ढंक दें तथा निम्न मंत्र उच्चारण के पश्चात सभी दिशाओं में उछाल दें।
मंत्र—–
ओम अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता:भूमि संस्थिता:।
ये भूता: बिघ्नकर्तारस्तेनश्यन्तु शिवाज्ञया॥
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम।
सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्मसमारभ्भे॥
देह रक्षा मंत्र:—-
ऊँ नमः वज्र का कोठा, जिसमें पिंड हमारा बैठा। ईश्वर कुंजी ब्रह्मा का ताला, मेरे आठों धाम का यती हनुमन्त रखवाला।
इस मंत्र को किसी भी ग्रहण काल में पूरे समय तक लगातार जप करके सिद्ध कर लें।
किसी दुष्ट व्यक्ति से अहित का डर हो, ग्यारह बार मंत्र पढ़कर शरीर पर फूंक मारे तो आपका शरीर दुश्मन के आक्रमण से हर प्रकार सुरक्षित रहेगा। उल्टी खोपड़ी मरघटिया मसान बांध दें, बाबा भैरो की आन।
इस मंत्र को श्मशान में भैरोजी की पूजा, बलि का भोग देकर सवा लाख मंत्र जपे तथा आवश्यकता के समय चाकू से अपने चारों तरफ घेरा खींचे तो अचूक चैकी बनती है।
इससे किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति साधना में विघ्न नहीं डाल सकती। होली, दीपावली या ग्रहण काल में इस मंत्र को सिद्ध कर लें 11 माला जपकर।
ऊँ नमः श्मशानवासिने भूतादिनां पलायन कुरू-कुरू स्वाहा।
इस मंत्र से 108 बार अभिमंत्रित करके लहसुन, हींग को पीसकर इसके अर्क को बाधाग्रस्त रोगी के नाक व आंख में लगायें, भूत तुरंत शरीर छोड़कर चला जाएगा।
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साबुत उड़द की काली दाल के अभिमंत्रित 38 और चावल के 40 अभिमंत्रित दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नींबू निचोड़ दें। नींबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाएगा। 
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