Tuesday, December 9, 2025

| বগলামুখী মন্ত্রঃ---

      || বগলামুখী মন্ত্রঃ---||

মঙ্গলবার এই বিশেষ সময়ে মা বগলামুখী মন্ত্র জপে শত্রু বিনাশ হয় | ঋণ মুক্তি  ঘটে 

মন্ত্র ::---

ওঁ হ্লীঁ বগলামুখী সর্বদুষ্টানাং বাচং মুখং পদং স্তম্ভায় জিহ্বাং কীলয় বুদ্ধিং বিনাশয় হ্লীঁ ওঁ স্বাহা ।।

যেকোন প্রকার বাঁধা, বিপত্তি থেকে উদ্ধার পাবার জন্য ।

“ওঁ হ্রীং বগলামুখী, সর্বদুষ্টানাম বাচং মুখং পদং।

স্তম্ভয়,জিহ্বাম্ কীলয়, কীলয় বুদ্ধি

বিনাশায় হ্রীং ওঁ স্বাহা।”

(সাধকের নাম ও জয় বগলামুখী এই দুটি কথা শেষে বলতে হবে।)

যে কোন প্রকার সামাজিক, আর্থিক, পারিবারিক, রাজনৈতিক বা ঝগড়াঝাটি, চাকরী না পাওয়া, প্রমোশন না হওয়া, মকদ্দমায় জেতার জন্য, পরীক্ষায় সফলতার জন্য বিয়েতে বিঘ্ন, স্বামী স্ত্রীর মতান্তর, ব্যবসার উন্নতি, রোগ, শত্রু থেকে রক্ষা সকল বিষয়ের জন্য এই মন্ত্র অব্যর্থ।

বিধিঃ বগলামুখী দেবী বা যে কোন দেবীর চিত্র সামনে রাখতে পারেন নতুবা নিজ গুরু চিত্র অন্যথায় আয়নার সামনে বসে ফুল, ধুপ, দীপ, দিয়ে নিজ মনোবাসনা পূর্ন করার জন্য ৩১ থেকে ৫১ বার মন্ত্র জপ করতে হবে। যত শুদ্ধতা ও পবিত্রতার সঙ্গে কায় মনে মন্ত্র জপ করা হবে তত তাড়াতাড়ি ফল পাওয়া যাবে। বগলামুখী মন্ত্র জপে সাধকের মনোবাসনা অবশ্যই পূর্ন হয়।

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मंगलबार दिन मां बगलामुखी की बीज मंत्र 21, या 51 या 108 बार जप करने सर्व प्रकार

शत्रु विनाश  होते है।

बगलामुखी बीज मंत्र है:--

"ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।"

यह मंत्र, मंगलबार दिन हल्दी की माला पर इस मंत्र का जप करना शुभ माना जाता है।

21 या 51 या 108 बार जप करनेसे 

शत्रुओं को निष्क्रिय करने, शत्रुओं से रक्षा करने, और मानसिक शांति प्रदान करने में सहायक माना जाता है।

शत्रुओं से रक्षा और जीवन की हर समस्या का समाधान के लिये इससे उत्तम मंत्र और कुछ भी नहीं हीं।

अतः इस मंत्र का जप शत्रुओं को पराजित करने और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। 

मंत्र का जप शरीर और मन में जितनी शुद्धता और पवित्रता से किया जाएगा, परिणाम उतनी ही शीघ्रता से प्राप्त होंगे.

बगलामुखी मंत्र जप से साधक की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

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Monday, November 10, 2025

খুব গুরুত্বপূর্ণ! জেনেরাখা ভালো::---

 🔴 খুব গুরুত্বপূর্ণ! অবশ্যই পড়ুন!

           জেনেরাখা ভালো::---

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🔴 🙌🙋‍♂🙆 হাত তোলা মানে    

                        আত্মসমর্পণ নয় — 

   এটি এক সহজ সরল শ্রেষ্ঠ কৌশল, 

   জীবন/ প্রাণ বাঁচাবার শ্রেষ্ঠ কৌশল।


☘ "আমি এক বন্ধুর সঙ্গে রাতের খাবার খাচ্ছিলাম, হঠাৎ সে মাছের কাঁটায় শ্বাসরোধের সমস্যায় পড়ে।

তখন আমি তাকে বললাম, “হাত তোলো 🙋‍♂!”

🙆 সে হাত তুলতেই, সত্যিই খুব সহজেই কাঁটাটি বেরিয়ে এল।


🔴 শ্বাসরোধে করণীয় — শুধু "হাত তুলুন 🙋‍♂"


একবার ঠাম্মার গলায় জেলির টুকরো আটকে গিয়েছিল।

তিনি নিজের পেট চেপে ধরেও জেলি বার করতে পারছিলেন না, কথা বলতেও পারছিলেন না।


নাতি জিজ্ঞেস করল, “ঠাম্মি, তোমার কি দম বন্ধ হয়ে আসছে?”


তারপর বলল, “তুমি হয়তো শ্বাসরোধে পড়েছ। এটা করো —

দু’হাত উপরে তোলো 🙆!”

নাতি বারবার বলছিল, “হাত তোলো ঠাম্মি, হাত তোলো 🙆”।

সাথে বলছিল, “তুমি ঠিক হয়ে যাবে ঠাম্মি।”


ঠাম্মা নির্দেশ মতোই হাত তুললেন — এবং জেলির টুকরোটা বেরিয়ে এল।


“দেখলে ঠাম্মি, আমি বলেছিলাম না তুমি ঠিক হয়ে যাবে!”


নাতি একেবারে শান্ত ছিল — সে বলেছিল, এটা সে স্কুলে শিখেছে।


🙆 শ্বাসরোধে করণীয় — শুধু [হাত তোলো 🙆]


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🙆 এই প্রাথমিক চিকিৎসার পদ্ধতি পায়ে টান ধরলে (ক্র্যাম্প) ব্যবহার করা যায়।

যেমন, যদি বাঁ পায়ে টান ধরে, তাহলে ডান হাত 🙋‍♂ তোলো —

আর যদি ডান পায়ে ধরে, তবে বাঁ হাত তোলো —

সাথে সাথে আরাম মিলবে! এটা বারবার কাজ করে!


🔴🙌🙋‍♂ হাত তোলা একটি জীবনরক্ষাকারী পদ্ধতি — এটি ❤ হার্ট অ্যাটাক বা হৃদরোগের ক্ষেত্রেও কার্যকর!

এমনকি ❤ বুক ধড়ফড়, ❤ এনজাইনা ইত্যাদির ক্ষেত্রেও এটা কার্যকর।


একবার একজন বন্ধু ❤ হৃদ্যন্ত্রের সমস্যা নিয়ে রাস্তার মোড়ে দম বন্ধ হয়ে পড়ে গিয়েছিল।

সে হঠাৎ দুই হাত তুলে আকাশের দিকে চিৎকার করে বলল — “আমি মারা যাচ্ছি!”

ফলস্বরূপ সে এক ঝটকায় দম নিতে পারল,

এবং ঠিক তখনই অ্যাম্বুলেন্স এসে পৌঁছল — সে কথা বলতে পারল।


🔴 জীবনথেকে শেখা শ্রেষ্ঠ কৌশল::---

🙋‍♂🙌 হাত তোলা একটি জীবনরক্ষাকারী কৌশল।


অতি সাধারন অথচ জীবন রক্ষার এক গুরুত্বপূর্ণ কৌশল।

নিজেকে বাঁচাবার এক সরল শ্রেষ্ঠ কৌশল,

দুইহাত মাথার ওপরে তুলে আত্মসমর্পণ।

নিজের জীবন বাঁচাবার অপূর্ব কৌশল।


আমরা অনেক জানি তথাপি আরও একটু জানতে বা মনে করে নিতে লাভ ছাড়া ক্ষতি কোথায়!


(অবশ্যই পড়ুন! সকলকে জানান — হয়তো কারও জীবন বাঁচাতে পারে!) 💝

এটা সাহায্য করতে পারে — কিন্তু কোনও খরচ নেই।

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Thursday, October 23, 2025

| আদিত্য হৃদ্য় মন্ত্র-স্তবক |

       ||  আদিত্য হৃদ্য়  মন্ত্র-স্তবক ||

রাম রাবনের যুদ্ধ কালে তখন চিন্তাকুল পরিশ্রান্ত তো যুদ্ধ পরিশ্রান্তং সমরে চিন্তায়া স্থিতম

রামচন্দ্রকে অগস্ত্য মুনি ‘আদিত্য-হৃদয়’  মন্ত্র-স্তবক জপ করতে বলেছিলেন। এই মন্ত্রজপে শত্রুবিনাশ হয়। সংগ্রামে বিজয়লাভ হয়।

 যখন রামায়ণ রচনা হচ্ছে, তখন বৈদিক যুগের কল্পান্তর ঘটে থাকলেও সূর্য-মন্ত্র জপের বিধানই বিশেষ সংগত। 

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राम-रावण युद्ध के समय, जब राम चिंतित और थके हुए थे, तो ऋषि अगस्त्य ने उन्हें 'आदित्य-हृदय' मंत्र का जाप करने के लिए कहा, जिससे शत्रु का नाश होता है और संग्राम में विजय मिलती है। यह मंत्र सूर्य-मंत्र जप का विधान है, जो उस समय बहुत संगत था।  

युद्ध की स्थिति: जब राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था और राम थककर चिंतित हो गए थे, तब ऋषि अगस्त्य ने उन्हें 'आदित्य-हृदय' मंत्र का जाप करने की सलाह दी।

मंत्र का प्रभाव: इस मंत्र के जाप से शत्रु का नाश होता है और युद्ध में विजय प्राप्त होती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: जब 'रामायण' की रचना हुई, तब वैदिक युग से इतर होने पर भी सूर्य-मंत्र जप का विधान विशेष रूप से उपयुक्त था।

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आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित  करने से अप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है।

आदित्य हृदय स्तोत्रम अर्थ सहित::---

|| अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥ 01

उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया।

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।

उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥ 02

यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥ 03

सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो! वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे ।

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।

जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम्॥ 04

इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’ । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।

चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥ 05

सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।

रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥ 06

भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥ 07

संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।

महेन्द्रो धनदः कालो मः सोमो ह्यपां पतिः॥ 08

भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, महेंद्र, कुबेर, काल, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी प्रचलित हैं।

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।

वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥ 09

ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥ 10

इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले),

हरिदश्वः सहस्रार्चि: सप्तसप्ति-मरीचिमान।

तिमिरोन्मन्थन: शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान॥ 11

हरिदश्व, सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान,

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।

अग्निगर्भोsदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशान:॥12 

हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले),

व्योम नाथस्तमोभेदी ऋग्य जुस्सामपारगः।

धनवृष्टिरपाम मित्रो विंध्यवीथिप्लवंगम:॥13

व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले),

आतपी मंडली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।

कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भव:॥ 14

आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण),

नक्षत्रग्रहताराणा-मधिपो विश्वभावनः।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोस्तुते॥ 15

नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है।

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रए नमः।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥ 16

पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।      

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाए नमो नमः।

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥ 17

आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है।

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।

नमः पद्मप्रबोधाय मार्तण्डाय नमो नमः॥ 18

उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है।

ब्रह्मेशानाच्युतेषाय सूर्यायादित्यवर्चसे।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥ 19

आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषाम् पतये नमः॥ 20

आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।

तप्तचामिकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।

नमस्तमोsभिनिघ्नाये रुचये लोकसाक्षिणे॥ 21

आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।

नाशयत्येष वै भूतम तदेव सृजति प्रभुः।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥ 22

रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।

एष एवाग्निहोत्रम् च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम॥ 23

ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनाम फलमेव च।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥ 24

वेदों, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।

एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।

कीर्तयन पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव॥ 25

राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।

पूज्यस्वैन-मेकाग्रे देवदेवम जगत्पतिम।

एतत त्रिगुणितम् जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥ 26

इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।

अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणम् तवं वधिष्यसि।

एवमुक्त्वा तदाsगस्त्यो जगाम च यथागतम्॥ 27

महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए।

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोsभवत्तदा।

धारयामास सुप्रितो राघवः प्रयतात्मवान ॥ 28

उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परम हर्षमवाप्तवान्।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान॥ 29

और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर

रावणम प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत।

सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोsभवत्॥ 30

रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।

अथ रवि-रवद-न्निरिक्ष्य रामम। मुदितमनाः परमम् प्रहृष्यमाण:।

निशिचरपति-संक्षयम् विदित्वा सुरगण-मध्यगतो वचस्त्वरेति॥ 31

          ।।सम्पूर्ण ।।

उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘रघुनन्दन! अब जल्दी करो’ । इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र संपन्न होता है।

।। इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मिकीये आदिकाव्ये युद्दकाण्डे पञ्चाधिक शततम सर्गः ।।

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Monday, October 20, 2025

নারায়ণ অনন্ত মন্ত্র::--V V Imp

 নারায়ণ অনন্ত মন্ত্র::--V V Imp


"নারায়ণ অনন্ত হরে নৃসিংহ প্রহ্লাদ বাধা হরে কৃপালু" 


একটি শক্তিশালী মন্ত্র, যা ভগবান বিষ্ণুর বিভিন্ন রূপের (যেমন নারায়ণ, অনন্ত এবং নৃসিংহ) উদ্দেশ্যে উচ্চারিত হয়। 

এই মন্ত্রটি পাঠ করলে ঐশ্বরিক সুরক্ষা পাওয়া যায়, নেতিবাচক শক্তি দূর হয়, এবং প্রহ্লাদের মতো ভক্তি অনুশীলনকারীদের বাধা দূর হয়। 

এটি একটি শক্তিশালী মন্ত্র যা মানসিক শান্তি, চাপ মুক্তি এবং ইতিবাচক শক্তি আনতে সাহায্য করে। 


মন্ত্রটির অর্থ: এই মন্ত্রটি নারায়ণ, অনন্ত, হরে, নৃসিংহ—যারা প্রহ্লাদের বাধা দূর করেছিলেন, সেই কৃপালু বা দয়ালু ঈশ্বরের কাছে প্রার্থনা।

এর উপকারিতা:

সুরক্ষা: এটি পাঠ করলে ঐশ্বরিক সুরক্ষা পাওয়া যায় এবং নেতিবাচক শক্তি ও বাধা দূর হয়।

মানসিক শান্তি: মন্ত্র জপ করলে মন শান্ত হয় এবং চাপ কমে।

শুভ প্রভাব: এটি গ্রহের অশুভ প্রভাব, কালো জাদু এবং অশুভ দৃষ্টি দূর করতেও সহায়ক বলে মনে করা হয়।

ইচ্ছা পূরণ: এই মন্ত্রের মধ্যে সমস্ত ইচ্ছা পূরণ করার ক্ষমতা রয়েছে বলে বিশ্বাস করা হয়। 

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श्री नारायण अनंत मंत्र:-- ( नृसिंह मंत्र)

 "नारायणानन्त हरे नृसिंह प्रह्लादबाधा हरेः कृपालु"

" नारायण,अनंत, हरे नृसिंह  प्रह्लाद बाधाओं

हरने वाले दयालु हैं।" 

यह मंत्र भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित है। इसका अर्थ है कि जिस प्रकार भगवान नरसिंह ने अपने भक्त प्रह्लाद के संकटों को दूर किया था, उसी तरह वह सभी भक्तों की बाधाओं को भी दूर करते हैं। 

 इस पूरे श्लोक का अर्थ है: "हे नारायण, अनंत, हरे, नृसिंह, जो प्रह्लाद की पीड़ा हरने वाले दयालु हैं! 

भय, डर और संकट से छुटकारा पाने के लिए तुरंत बोले ये शब्द, हर दुख होगा दूर ..

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Tuesday, September 9, 2025

হাততালি দিয়ে করো হরিনাম,

 সকাল, সন্ধ্যা,হাততালি দিয়ে করো হরিনাম,

পূর্ণ-হবে-সকল মনস্কাম।

হাততালি দিয়ে করলে হরিনাম,

পালাবে সব পাপ তাপ, মন-হবে 

আনন্দ ধাম।


যেমন গাছের নীচে দাঁড়িয়ে হাততালি দিলে গাছের সকল পাখি উড়ে যায়,

তেমনি হাততালি দিয়ে হরিনাম করলে

গাছ রুপি দেহ  থেকে সকল অবিদ্যারূপ পাখি উড়ে পালায়।

                 শ্রীশ্রী ঠাকুর রামকৃষ্ণ দেব।




ঈশ্বর কে--?--তিনি সর্বসায়, তিনি নিজে

     সকল কিছু সহ্য করেণ।

  যত দুঃখ, কষ্ট,রোগ,ভোগ,তিনি সকলি

সহেন।

ঈশ্বর সকলের সকল সয়,

তিনি সর্ব শক্তি মান--সর্বসায়,

তিনিই রোগ, তিনিই ভোগ, তিনিই

সর্ব ভোগ-সর্ব সহায়।

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ওঁ কৃষ্ণায় বাসুদেবায়

 ওঁ কৃষ্ণায় বাসুদেবায় হরয়ে পরমাত্মনে। প্রণত ক্লেশনাশায় গোবিন্দায় নমো নমঃ।। 


 হে কৃষ্ণ করুণাসিন্ধু দীনবন্ধ জগৎপথে।

 গোপেশ গোপীকা কান্ত রাধা কান্ত নমহস্তুতে ।।


হরে কৃষ্ণ হরে কৃষ্ণ কৃষ্ণ কৃষ্ণ হরে হরে

হরে রাম হরে রাম রাম রাম হরে হরে।।

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"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।" 


श्री कृष्ण गोविंद ll हरे मुरारी ll हे नाथ नारायण ll वासुदेवा ll हरे मुरारी ll मधु कैट भारे ll गोविन्द गोपाल मुकुंद कृष्ण ll यज्ञेश नारायण कृष्ण विष्णु निराश्रियम्म मां जगदीश्वराय ll जय जय श्री कृष्ण ll राधे राधे ll

हरे कृष्ण हरे कृष्ण ।। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।

हरे राम हरे राम ।। राम राम हरे हरे।।

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Wednesday, August 13, 2025

18>|| "ওঁ সর্বে ভবন্তু সুখিনঃ---"

 18>||   "ওঁ সর্বে ভবন্তু সুখিনঃ---"


"ওঁ সর্বে ভবন্তু সুখিনঃ সর্বে সন্তু নিরাময়াঃ

সর্বে ভদ্রাণী পশ্যন্তু মা কশ্চিদ দুঃখ ভাবভবেৎ।।"


অর্থ- সকলে সুখী হোন,নিরোগ হোন এবং শান্তি লাভ করুন, কেউ যেন দুঃখ ভোগ লাভ না করে।। 


ওঁ শান্তি, ওঁ শান্তি, ওঁ শান্তি।।


ওঁ স্থাপকায় চ ধর্মস্য সর্ব ধর্ম স্বরূপিণে।

অবতার বরিষ্ঠায় রামকৃষ্ণায় তে নমঃ ।।


ওঁ যথাগ্নের্দাহিকাশক্তিঃ রামকৃষ্ণে স্থিতা হি য়া।

সর্ববিদ্যাস্বরূপাং তাং সারদাং প্রণমামি-অহম্।।


ওঁ জননীং সারদাং দেবীং রামকৃষ্ণে জগদগুরুম্।

পাদপদ্মে তয়োঃ শ্রিত্বা প্রণামামি মুর্হুমুহুঃ৷।


ওঁ নমঃ শ্রীযতিরাজায় বিবেকানন্দ সুরয়ে।

সচ্চিৎ সুখস্বরূপায় স্বামিণে তাপহারিণে।।

【 এই শ্লোকের অর্থ হল: "যতিদের রাজা, বিদ্যার আলো, যিনি সত্য, চিৎ (জ্ঞান), এবং আনন্দ স্বরূপ, যিনি স্বামী এবং যিনি তাপ (কষ্ট) হরণ করেন, সেই বিবেকানন্দের উদ্দেশ্যে প্রণাম।"


এই শ্লোকে, স্বামী বিবেকানন্দকে 'যতিরাজ'---> (যতিদের রাজা), 'বিবেকানন্দ সুর'--> (বিবেকানন্দের আলো), 

'সচ্চিৎ সুখস্বরূপ'---> (যিনি সত্য, জ্ঞান ও আনন্দ স্বরূপ), 

এবং 'তাপহারী'---> (দুঃখ দূরকারী) হিসাবে বর্ণনা করা হয়েছে। 

এই শ্লোকটি মূলত স্বামী বিবেকানন্দের উদ্দেশ্যে শ্রদ্ধা ও ভক্তি নিবেদনের একটি মন্ত্র। 】



ওঁ পরতত্ত্বে সদালীনো রামকৃষ্ণসমাজ্ঞয়া।

যো ধর্মস্থাপনরতো বীরশং তং নমাম্যহম্।।

【এই শ্লোকটির অর্থ হল: যিনি পরতত্ত্বে (পরম সত্যে) সদা লীন এবং রামকৃষ্ণের আজ্ঞা দ্বারা ধর্ম সংস্থাপনে রত, সেই বীরকে আমি প্রণাম করি।

অর্থাৎ, শ্লোকটিতে পরম সত্যের সাথে একাত্ম হওয়া এবং শ্রীরামকৃষ্ণের আদর্শে ধর্ম সংস্থাপনে রত একজন বীরকে প্রণাম জানানোর কথা বলা হয়েছে।


এই শ্লোকের মূল শব্দগুলির অর্থ: 

ওঁ: -->একটি পবিত্র মন্ত্র যা ঈশ্বরের প্রতীক।

পরতত্ত্বে:--> পরম সত্য বা সর্বোচ্চ সত্য।

সদালীনো:--> সর্বদা নিমগ্ন বা যুক্ত।

রামকৃষ্ণসমাজ্ঞয়া:--> শ্রীরামকৃষ্ণের আজ্ঞা বা নির্দেশ অনুসারে।

যো:--> যিনি।

ধর্মস্থাপনরতো:--> ধর্ম প্রতিষ্ঠায় রত।

বীরশং:--> বীরকে, সাহসী ব্যক্তিকে।

তং:--> তাকে।

নমাম্যহম্:--> আমি প্রণাম করি।】



জয় ভগবান রামকৃষ্ণদেব কী জয়,

জয় মহামায়েকী জয়,

জয় স্বামীজি মহারাজ কী জয়,

জয় গুরু মহারাজ কী জয়,,,

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